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Monday, December 10, 2012

उर्मिला


रामायण मे जितना ध्यान
भगवान श्रीराम की भूमिका पर दिया गया है
उतना उनके अनुज लक्ष्मण
तथा उनकी पत्नि उर्मिला
की भूमिका पर नही दिया गया है
जबकि लक्ष्मण जैसा भ्राता
जिसने अपने भ्रात्र प्रेम के कारण अपनी नव विवाहिता पत्नि को
चौदह वर्षो के लिये त्याग दिया हो
विश्व मे कही भी ऐसा उदाहरण नही है
जितना त्याग लक्ष्मण ने किया उतना ही त्याग उनकी पत्नि
उर्मिला ने भी किया
चारो युग मे उर्मिला जैसी स्त्री मिलना संभव नही है
जिसने अपने पति लक्ष्मण को त्याग करने का अवसर दिया हो
वर्तमान मे जहॅा महिलाये अपने तुच्छ एवम संकिर्ण स्वार्थो की पूर्ति के लिये
परिवार मे कलह का वातावरण निर्मित कर देती है
उन महिलाअो के लिये महासति उर्मिला अनुकरणीय उदाहरण है
क्या कोई स्त्री का व्यक्तित्व इतना महान हो सकता है
जो विवाह के तुरन्त पश्चात चौदह वर्ष की दीर्घ अवधि तक
पति के विरह का दुख भोग सके
वास्तव मे इस प्रकार से कोई महिला तभी
तत्पर हो सकती है
जिसने अपने ह्रदय के अन्तकरण से किसी
पुरुष को चाहा हो वर लिया हो
मात्र देहिक अाकर्षण के अाधार पर जीवन साथी नही बनाया हो
इसलिये ऐसी महिला हो उर्मिला के रुप मे संबोधित किया गया है
उर अर्थात ह्रदय उर्मिला का अाशय यह है कि
जिसने ह्रदय से ह्रदय को जोडा हो
उर्मिला ने मात्र स्वयम को ही अपने अाप को
अपने पति लक्ष्मण के ह्रदय से नही जोडा
अपितु लक्ष्मण के ह्रदय को श्रीराम 
के ह्रदय को जुडने भी
महति भूमिका निर्वाह की
वर्तमान मे भी उर्मिला की भूमिका प्रासंगिक है
उर्मिला जैसे अाचरण की स्त्रिया जिस परिवार मे हो
वहा लक्ष्य प्राप्ति को तत्पर लक्ष्मण बनना
किसी भी व्यक्ति के लिये संभव है
अौर लक्ष्मण जैसे व्यक्ति को
श्रेष्ठ उद्देश्य रूपी राम को पाने से कौन रोक सकता है

अास्तिकता मे निज अस्तित्व का बोध


विश्व कितने ही धर्म हो दर्शन हो सिध्दान्त हो
सम्पूर्ण विश्व मे दो प्रकार के व्यक्ति विद्यमान है
पहले वे जो ईश्वर के प्रति अास्था रखते है
ऐसे लोगो को अास्तिक के रुप मे सम्बोधित किया जाता है
दूसरे वे लोग होते है जो ईश्वरीय सत्ता को नकारते है
ऐसे लोग नास्तिक कहलाते है
प्रश्न यह है कि दोनो प्रकार के व्यक्तियो के व्यवहारिक जीवन मे 
 भेद कहा होता है
अास्तिक रहने क्या लाभ है ?
नास्तिक व्यक्ति को किस प्रकार की हानिया होती है या उन्हें लाभ भी होते है
नास्तिक व्यक्ति या तो इसलिये होता है
कि उसे अतीत मे ईश्वरीय अास्था की भारी कीमत चुकानी पडी होगी
या उसे स्वयम की क्षमता पर जरूरत से अधिक विश्वास होता है
या उसे यह ज्ञात होता है कि अास्तिक बने रहने मे 
अत्यधिक कठिनाईया है
रीति -नीती परम्पराअो संस्कारो का पालन करना उसकी विवशता रहेगी
ईश्वरीय भय से निरन्तर उसे ग्रस्त रहना होगा
ऐसे मे वह सुविधा भोगी जिन्दगी जी नही पायेगा
परन्तु ऐसे मे नास्तिक व्यक्ति यह भुल जाता है
कि प्रत्येक व्यक्ति की सीमीत क्षमता होती है
व्यक्ति कितना ही परिश्रम कर ले असफलता की सम्भावना बनी रहती है
असफल होने के कारण नास्तिक व्यक्ति निराशा के अन्धकार से घिर जाता है
परिणाम स्वरूप वह तरह -तरह के व्यसनो मे लिप्त हो जाता है
अन्तत ऐसा व्यक्ति अात्म हत्या की अोर अग्रसर हो जाता है
नास्तिक व्यक्ति को ईश्वरीय सत्ता का भय न होने से
तरह-तरह के अधम कर्मो मे लिप्त रहता है
अन्तत वह अपराध जगत मे प्रवेश कर क्रूर अपराधो की अोर प्रव्रत्त होता है
अास्तिक होने के कई लाभ है
प्रथम लाभ यह है कि व्यक्ति निरन्तर निश्चिंत रहता है
सतत उसे स्वयम पर ईश्वरीय अाशीष की अनुभूति प्रतीत होती रहती है
कठिन परिश्रम करने पर उसे सफलता मिल जाती है
तो वह उसे ईश्वर का अाशीर्वाद समझ कर
सफलता को प्रसाद के रूप ग्रहण कर परम सन्तुष्टि 
परमानन्द का अनुभव करता है
अास्तिक व्यक्ति को असफलता प्राप्त होने पर वह निराश नही होता
उसे ईश्वर की इच्छा मान कर नये सिरे से 
लक्ष्य प्राप्ति हेतु प्रयत्न रत हो जाता है
समय अाने पर ऐसा व्यक्ति वांछित लक्ष्य तो प्राप्त करता ही है
साथ ही उसे ईश्वरीय अाशीर्वाद के रूप मे 
पूरक परिणाम भी प्राप्त हो जाते है
जिनसे उसके लक्ष्य का मूल्य कई गुना हो जाता है
अास्तिक व्यक्ति निराश होने पर कभी भी अात्म हत्या नही करता है
अास्तिक व्यक्ति व्यसनो का अादि नही होता
एेसे व्यक्ति जो अास्तिक रहते हुये व्यसनो के अादि होते है
उनमे व्यसनो से मुक्त होने की पर्याप्त सम्भावना बनी रहती है
अास्तिक होने का दूसरा लाभ यह है
ऐसा व्यक्ति के साथ ईश्वरीय सत्ता की
निरन्तर उपस्थिति उसे अधम कर्म करने से रोकती है
पाप पुण्य स्वर्ग -नरक की अवधारणाये
उसे अपराध की अोर प्रव्रत्त नही होने देती
जिससे व्यक्ति महानता को प्राप्त करता है
इसलिये हे नास्तिक तुम अास्तिक बनो
अास्तिक बन कर अच्छे नागरिक बनो