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Monday, March 29, 2021

तरुण भटनागर का एक बेहतरीन कहानी संग्रह

भाषा , भाव और शिल्प की ताजगी के साथ आईसेक्ट पब्लिकेशन से प्रकाशित लेखक, कहानीकार , उपन्यासकार श्री तरुण भटनागर की दस कहानिया जंगल, जमीन, दारिद्र्य और यथार्थ पर आधारित है । प्रत्येक कहानी का विशिष्ट कथ्य है ।

                इस कहानी संग्रह में में जहाँ तिब्बती शरणार्थियों की पीड़ा को "भूगोल के दरवाजे "के माध्यम से व्यक्त किया गया है । वही "कातिल की बीवी "दरिद्रता और अभावो और सँकरी गलियों में रहने वाले दो परिवारों के आपसी जुड़ाव और मन मुटाव को बयाँ करता है । जहां एक और विशाल भू भागो पर रह कर भी कुछ लोग अतृप्त है । वही भिन्न धर्मो के दो निर्धन परिवार किस प्रकार से एक एक इंच जमीन के लिए संघर्षरत है ।दोनों परिवार के पुरुषों में चाहे कितना भी द्वेष हो महिलाओ में आत्मीय जुड़ाव की यह कथा है 
     "जंगल मे चोरी "आदिवासी अंचल चल रहे विकास की कथा है ।जिसमे सीमेंट के गोदाम ठेकेदार और मूल निवासियों को वस्त्र प्रदान किये जाने का रोचक उल्लेख है । एक दिन शासन की और से वस्त्र वितरणकर्ता किराने वाला दुकान बंद कर लम्बे समय के लिए चला जाता है तो आदिवासी ठंड को दूर करने के लिए सीमेंट की खाली पड़ी बोरियो की चोरी करते है ।उनके लिए सीमेंट का कोई मूल्य नही होता ।यह एक करारा व्यंग्य  भी है 
         "बीते समय शहर "की कहानी अतीत के पन्नो को पलटने की कहानी है । प्रेमिका के बहाने ट्रैन में यात्रारत युवक एक ऐसे शहर और उससे जुड़ी स्मृतियों को याद करता है । जहां उसने शैक्षणिक काल मे समय गुजारा था। शहर के पास  खड़े पहाड़ को बुजुर्ग की उपमा देकर लेखक जब कहता है ।बुजुर्ग हमारे लिये उपयोगी हो या न हो उनकी उपस्थिति मात्र आश्वस्त करती है कि हमारे कंधे पर किसी का हाथ है । बीते शहर की कहानी का सम्मोहन अदभुत है । लेखक ने कहानी  को बहुत ही सूक्ष्मता से  उंकेरा है  यात्रा को विविध आयाम और स्वरूप प्रदान किये है यह कहना अतिश्योक्ति नही  होगी कि लेखक की सम्पूर्ण से प्रतिभा इस कहानी के माध्यम से हम परिचित हो जाते है 
                   और अंत मे  "दवा सांझेदारी और आदमी" नामक शीर्षक कहानी के माध्यम से लेखक ने दवा विक्रेता और ग्राहक के बीच हुए संवाद को बेहतरीन तरीके से विषय को अभिव्यक्त किया  है व्यवसायिक मजबूरिया और पेट की भूख के सामने इंसान कितना विवश हो जाता है । आदर्शो की बात करना आसान है जीना कितना मुश्किल है  

Saturday, March 27, 2021

गुनाहों का देवता -समीक्षा

गुनाहों का देवता  सुप्रसिध्द लेखक डॉ. धर्मवीर भारती का बहुत लोकप्रिय उपन्यास है । विगत दिनों यह उपन्यास मुझे ऑडियो बुक के रूप में डॉ. कुमार विश्वास की आवाज में स्टोरी टेल ऐप पर सुनने का अवसर मिला।  निस्वार्थ प्रेम पर आधारित यह उपन्यास दिल को बहुत सकून देता है । बुध्दि को खुराक और हृदय की अतल गहराईयों को स्पर्श करता है । 
      यह उपन्यास इलाहाबाद में निवासरत चंदर नामक युवक की दास्तान है । चंदर कपूर एक प्रतिभावान छात्र होता है  जिसको डॉ.शुक्ला नामक प्रोफेसर अपने पास रख कर पढ़ने और आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करते है । डॉ शुक्ला की लड़की सुधा जो चंदर को निश्छल और निस्वार्थ प्रेम करती है । चंदर सुधा के पवित्र प्रेम की गहराईयों को जानता है। शारीरिक वासनाओ से परे आत्मीयता से ओत प्रोत प्रेम को महत्व देता है और वैसा ही चरित्र सुधा को गढ़ने हेतु उत्प्रेरित करता है । चंदर प्रेम की मर्यादा समझता है और प्रेयसी सुधा को समझाता है।
                चंदर एक अन्य महिला पम्मी के संपर्क में भी रहता है जो वासना के संसार को छोड़कर चंदर के पवित्रतम प्रेम पर मुग्ध हो जाती है। सुधा की चचेरी बहन विनीता जो सुधा के पास आकर रहने लग जाती है । जो सुधा और चंदर के प्रेम से बेहद प्रभावित हो जाती है । कालांतर में सुधा का विवाह कैलाश नामक व्यक्ति से विवाह हो जाता है । सुधा की दृष्टि में चंदर प्रेम का देवता रहता है ।सुधा का उसके ससुराल में स्वास्थ्य गिरता जाता है और एक दिन उसका देहान्त हो जाता है 
       उपन्यास को पढ़ते और सुनते जीवन के कई दार्शनिक पहलू सामने आते है ।बिम्बो के माध्यम से धर्मवीर भारती जी ने जो भाव भरी अनुभूतियों का चित्रण किया है वह अदभुत है । जगह जगह लगता है कोई कविता पढ़ रहे है । सम्पूर्ण उपन्यास आत्मीयता का अहसास देता है। बार बार पढ़ने का मन करता है 
              

Wednesday, March 24, 2021

तथाकथित धार्मिक लोग

धार्मिक होना अलग बात है और मार्मिक होना अलग बात है । सच्चा धार्मिक व्यक्ति करुणा दया सहानुभूति संवेदना से भरा होता है। कार्य के प्रति समर्पण और ईमानदारी उसकी पहचान होती है ।धार्मिक व्यक्ति स्वयं कठोर परिश्रमी होता है ।वह दूसरों के पसीने और मेहनत का मूल्य पहचानता है । अहंकारी नही स्वाभिमानी और स्वालंबी होता है ।दुसरो की कड़वी बाते न तो सुनना पसंद करता हैऔर नही किसी को कटु वचन बोलता है ।
                   कुछ लोग दिन रात पूजा पाठ धार्मिक अनुष्ठान प्रवचन कहते सुनते रहते है ।परंतु निरन्तर नकारात्मक विचारों का प्रवाह उनके मस्तिष्क में चलता रहता है ।ईश्वर से भी मांगते है स्वयम के लिए ।दुसरो के  अनिष्ट करने के तरह तरह के उपाय उनके दिलों दिमाग मे उठते रहते है । दान देते है यश की इच्छा के लिये लोक कल्याण की भावना न तो उनमें होती है और नही किसी का कल्याण कर सकते है ।निरन्तर निंदा स्तुति करना ही उनके जीवन का मूल मंत्र होता है ।साधना से ज्यादा साधनों को महत्व देते है । ढकोसला पाखण्ड उनकी नस नस में भरा होता है ।लोगो को भृमित करने के वे इतने अभ्यस्त होते है कि उन्हें पहचान पाना आसान नही होता
     धर्म के प्रति आम जनता का विश्वास तथाकथित ऐसे धार्मिक लोगो के कारण ही उठ जाता है । ऐसे धार्मिक लोगो के कारण धर्म काफी क्षति उठाता है । ईश्वर के प्रति श्रध्दा कम हो जाती है । सज्जनता के प्रति लोगो के मन मे आदर घट जाता है । लोग देवस्थानों और संतो के पास जाना बंद कर देते है । व्यक्ति का विश्वास अच्छाई और सच्चाई से टूट जाता है ।  एक सच्चा व्यक्ति ईश्वर से रुठ जाता है
     तथाकथित धार्मिक लोगो में हीनता की भावना इतनी गहराई तक भरी रहती है । कि वे अपने से उच्च स्तर के साधक को फूटी आंख देखना नही चाहते। वे जैसे ही ऐसे साधक को देखते उनमे एक प्रकार का शत्रु भाव पैदा हो जाता है । उनको ऐसा लगता है जैसे उनके अस्तित्व को किसी ने चुनोती दे दी है ।  येन केन प्रकारेण  उनका यह प्रयास रहता  है कि ऐसा साधक उनकी नजरो से ओझल हो जाए। ऐसे तथाकथित धार्मिक लोगो से भगवान बचाये

Monday, March 22, 2021

सौंदर्य और सौरभ

गुलाब और जीवनबाहरी सौंदर्य के साथ व्यक्ति में आंतरिक सौन्दर्य भी हो तो वह गुलाब की तरह महकता है । विचारो की सुगन्ध जब चारो और फैलती है तो व्यक्तित्व विशालता पाता है । जैसे कोई बरगद और वट वृक्ष तले राही विश्राम पाता है । कोई थका हुआ खगदल डालियो से खेलता , तिंनको को चुनता  घोसला बनाता आश्रय पाता है । व्यक्तित्व की सुरभि पाकर जो भी किसी के पास आता है । निकट आकर बैठता है बैठा रह जाता है । यह जरूरी नही कि जो बाहर से सुन्दर हो वह भीतर से उतना ही सुरभित हो । भीतर का सौंदर्य तो तब सामने आता है जब कोई व्यक्ति मुस्कराता है । मधुर बोलो से कोई स्वर गुनगुनाता है । चित्रकला संगीत नृत्य और कविता,लेखन सृजन के माध्यम से आनंद

परिवेश में बिखराता है| आंतरिक सौदर्य का महत्व हमे तब समझ मे आता है जब कोई इंसान लगातार हमारे संपर्क में रहता है और अचानक हमे छोड़ कर सदा के लिए बिछुड़ जाता  है । इस दुनिया को छोड़ कर चला जाता है। तब रह जाती है उसकी वैचारिकता चरित्र और कृतित्व की खुशबू  जिसकी स्मृति मात्र हमे सुरभित कर देती है 
     सुंदरता वस्तु या व्यक्ति में नही होती ।देखने वाले की दृष्टि में होती है । जिसे हम चाहते है भले ही वह औसत चेहरे का हो हमे विश्व का सम्पूर्ण सौंदर्य उसमे दिखाई देता है । जिसे हम न चाहे वह चाहे कितना भी खूबसूरत हो हमे बिल्कुल सुहाता नही  निरन्तर आंखों में खटकता रहता है।
दुर्लभ और खुरदरा पाषाण का पिण्ड भी अमूल्य हो जाता है और चिकना संगमरमर के पत्थर भी शिल्पकार की राह तकता रह जाता है । हमारा देखने का दृष्टिकोण हमारे वैचारिकता को नवीन आयाम देता है । हमारी कल्पनात्मकता सृजनात्मकता का स्त्रोत होती है । इसलिए हमें वैचारिक दृष्टि सदा समृध्द रहना चाहिये । हम जिन लोगो के बीच मे रहे भले ही आर्थिक रूप से अधिक सम्पन्न न हो ज्ञान और अनुभव और प्रतिभा की दृष्टि से वे हमसे अधिक श्रेष्ठ हो