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Tuesday, February 19, 2013

भगवान श्रीक्रष्ण की रानीया और तत्व ज्ञान




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श्री क्रष्ण जो ईश्वरीय अवतार थे की मुख्य रूप से तीन रानीया थी
प्रथम रूक्मणी द्वितीय सत्यभामा तृतीय जाम्बवती
तीनो से विवाह प्रसंग की कथा अलग-अलग प्रकार की है
रूक्मणी जो क्षत्रिय कन्या थी से विवाह हरण कर किया था
सत्यभामा जो वैश्य कन्या थी से विवाह का कारण मणि
के चोरी के आरोप से मुक्त होने के प्रयास का परिणाम था
जाम्बवती ॠक्षराज जाम्बावान की पुत्री थी
जो वनवास मे निवास करते थे से भी मणी चोरी के आरोप से
 मुक्त होने का प्रयास ही था
राधा जो भगवान की परम प्रेयसी थी 
से भगवान क्रष्ण ने विवाह नही किया
वह आजीवन  उनके ह्रदय मे रही
उपरोक्त रानीया और प्रेयसी राधा तो प्रतीक है
प्रतीको मे निहीतार्थ को समझना आवश्यकहै
राधा जो प्रेम तत्व का प्रतीक है का आशय यह है कि
प्रेम को सांसारिकता के संस्कारो की आवश्यकता नही रहती
उसे सदा ह्रदय बसाये रखना चाहिये
इसलिये राधा से भगवान क्रष्ण ने विवाह नही किया था
जाम्बवती भगवान के चरणो मे एक भक्त की भेट है
ॠक्षराज जाम्बवान जो भगवान विष्णु के परम भक्त थे
ने पराक्रम मे भगवान के अंश श्रीक्रष्ण से समान रूप से सामना किया
उसके बावजूद भक्ति भाव से ओत -प्रोत होकर फिर चोरी
हुई मणी सहित अपनी पुत्री जाम्बवती को भगवद चरणो को समर्पित कर दिया
भक्ति अहंकार विहीन होती समर्पण भक्ति का भाव होता है
इसीलिये जाम्बवती रानी रहते हुये भी पूर्ण समर्पण भाव से
भगवान क्रष्ण के प्रति पूर्ण रुपेण समर्पित रही
सत्य भामा जो वास्तव मे सत्य का भ्रम था
अर्थात कोई तथ्य सत्य नही होने के बावजूद सत्य होने का भ्रम पाल लेना
स्वयम मे सत्य समाहित होने का भ्रम होना सत्य भामा कहलाता है
सत्यभामा जो वैश्य की पुत्री थी के पिता ने यह भ्रम पाल लिया था
कि वह जो कह रहा है वही सत्य है वास्तव पूरे विश्व मे वह ही धनाढ्य है
इस भ्रम के कारण उसने सत्य के साक्षात स्वरूप भगवान श्री क्रष्ण को 
असत्य ठहराने मे संकोच नही किया 
भगवान क्रष्ण ने जब उसके भ्रम का निवारण किया
तब सत्य भामा के पिता ने अपने सारे भ्रम ईश्वर को समर्पित कर दिये
वर्तमान मे भी हम परिवेश मे ऐसे व्यक्तियो को देखते है
जो अकारण भ्रम पाल लेते अनेक प्रकार की आशंकाओं से ग्रस्त रहते है
दूसरो लोगो पर अकारण आक्षेप लगाते रहते
ऐसे व्यक्तियो के लिये सत्यभामा का प्रसंग अनुकरणीय है
रूक्मणी का हरण भगवान क्रष्ण को इसलिये करना पडा था
क्योकि रूक्मणी राज कुमारी होकर पराक्रमी राजा रुक्मी की बहन थी
भगवान क्रष्ण ने रुक्मी के अहंकार को नष्ट करने के लिये
रुक्मणी का हरण किया था
अहंकार की भावना नष्ट होने के बाद सौन्दर्य और सम्रद्धि की प्रतिमूर्ति
रूक्मणी भगवान क्रष्ण की जीवन संगीनी बनी और सदा उनके निकट रही
तात्पर्य यह है व्यक्ति को अहंकार से ग्रस्त नही रहना चाहिये
अहं भावना से ग्रस्त व्यक्ति से भगवान सब कुछ हर लेते है
जिस व्यक्ति मे अहंकार का नाश हो गया हो 
उसे सौन्दर्य सम्रद्धि और  आत्मीयता प्राप्त होती है