किसी भी प्रकार का मोह
मुक्ति में बाधक है
जो मोह ग्रस्त है
वह कितनी भी पूजा पाठ
व्रत उपवास कर ले
मुक्त नहीं हो सकता है
मोह के कई प्रकार होते है
भौतिक सम्पदा से मोह
साधनो से मोह ,व्यक्ति विशेष से मोह,इत्यादि
मोह और प्रेम में अंतर होता है
प्रेम परमात्म भाव है
प्रेम में कोई अपेक्षा नहीं रहती
जबकि मोह में कई प्रकार की
अपेक्षाएं होती है
प्रेम कर्म की प्रेरणा है ऊर्जा है
जबकि मोह कर्म का बंधन है
प्रेम से उपजा कर्म
धर्म पालन में सहायक है
जबकि मोह ग्रस्त व्यक्ति
कर्म से विमुख हो निज धर्म से
पलायन कर लेना है
शास्त्रों में मोह रूपी अन्धकार कहा गया है
मंत्रो में मोह रूपी अन्धकार को
दूर करने की प्रार्थना की गई है
मोह रूपी अन्धकार से ग्रस्त हो
कई तपस्वी अपना तपोबल खो देते है
बरसो की साधना
एक क्षण में नष्ट कर देते है
प्रेम भक्ति का स्वरूप है
वात्स्ल्य का प्रतिरूप है
मोह कामना है वासना है
जबकि प्रेम सच्ची साधना है
कला से प्रेम व्यक्ति को कलाकार बना देता है
कुदरत से प्रेम व्यक्ति को
पर्यावरण विद
और साहित्य से प्रेम व्यक्ति को
महान कृतियों का जनक बना देता है
इसलिए हे !प्रभो
आप हर प्राणी के जीवन में
प्रेम का भाव भर दो मोह से मुक्त कर दो