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Wednesday, July 18, 2018

मोह से मुक्त कर दो


किसी भी प्रकार का मोह 
मुक्ति में बाधक है 
जो मोह ग्रस्त है 
वह कितनी भी पूजा पाठ 
व्रत उपवास कर ले
 मुक्त नहीं हो सकता है 
मोह के कई प्रकार होते है 
 भौतिक सम्पदा से मोह 
साधनो से मोह ,व्यक्ति विशेष से मोह,इत्यादि
मोह और प्रेम में अंतर होता है
 प्रेम परमात्म भाव है 
प्रेम में कोई अपेक्षा नहीं रहती 
जबकि मोह में कई प्रकार की 
अपेक्षाएं होती है
प्रेम कर्म की प्रेरणा है ऊर्जा है 
जबकि मोह कर्म का बंधन है 
प्रेम से उपजा कर्म 
धर्म पालन में सहायक है 
जबकि मोह ग्रस्त व्यक्ति 
कर्म से विमुख हो निज धर्म से 
पलायन कर लेना है 
शास्त्रों में मोह रूपी अन्धकार कहा गया है 
मंत्रो में मोह रूपी अन्धकार को 
दूर करने की प्रार्थना की गई है 
मोह रूपी अन्धकार से ग्रस्त हो 
कई तपस्वी अपना तपोबल खो  देते है 
बरसो की साधना
एक क्षण में नष्ट कर देते है 
प्रेम भक्ति का स्वरूप है 
वात्स्ल्य का प्रतिरूप है 
मोह कामना है वासना है 
जबकि प्रेम सच्ची साधना है 
कला से प्रेम व्यक्ति को कलाकार बना देता है 
कुदरत से प्रेम व्यक्ति को 
पर्यावरण विद 
और साहित्य से प्रेम व्यक्ति को 
महान कृतियों का जनक बना देता है 
इसलिए हे !प्रभो
  आप  हर प्राणी के जीवन में
 प्रेम का भाव भर दो मोह से मुक्त कर दो

धार्मिक या धर्मांध

 धर्म कोई सा भी हो
 धार्मिक होना बहुत अच्छा है
परन्तु धर्मांध होना बिलकुल गलत है 
धार्मिक व्यक्ति उदार सहिष्णु 
उदार मना होता है 
जबकि धर्मांध मात्र 
अपने धर्म को ही श्रेष्ठ समझता है 
दुसरो के धर्म को
 हेय  और निकृष्ट समझता  है 
धर्मांध व्यक्ति के मस्तिष्क की स्थिति
 उस कक्ष की तरह होती है 
जिसमे मात्र एक ही दरवाजा होता है 
हवा और प्रकाश के आने जाने के लिए कोई खिड़किया उजालदान नहीं होते है 
जिस प्रकार से बंद कक्ष में 
ऑक्सीज़न की कमी से घुटन सी होती है 
उसी प्रकार धर्मांध व्यक्ति का 
मस्तिष्क जीवन के संजीवनी 
प्रदान करने वाले चिंतन के अमृत से 
वंचित रह जाता है
धार्मिक व्यक्ति अपने धर्म को 
अच्छा मानने के अतिरिक्त 
प्रत्येक धर्म के 
सकारात्मक पक्ष को महत्व देता है 
उसके चिंतन के झरोखो से
 निरंतर ताजे विचारो की प्राण वायु 
आंतरिक चेतना की
 अभिसिंचित करती  रहती है 
धर्मांध व्यक्ति क्रूर हो सकता है 
जबकि धार्मिक व्यक्ति 
संवेदना  से भरपूर होता है 
धार्मिक व्यक्ति कला साहित्य संगीत का 
मर्मज्ञ  होता है प्रगतिशील होना
 उसकी पहचान होती है 
इसलिए जो व्यक्ति धार्मिक होते है 
वे निरंतर प्रगति पथ पर उन्मुख रहते है
इसलिए धार्मिक बनो धर्मांध नहीं