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Saturday, February 27, 2016

अकर्मण्यता का निवारण एवम उपाय

 
व्यक्ति के व्यक्तित्व को परखने की 
कसौटी यह है कि
 वह पुरुषार्थी है या अकर्मण्य  । 
पुरुषार्थी व्यक्ति उद्यमशील होता है 
उद्यमशीलता व्यक्ति का वह गुण है
 जो उसे कर्मरत होने की प्रेरणा देती रहती है
 सच्चा पुरुषार्थी व्यक्ति वह है 
जो शून्यवत रिक्तता को भर दे 
जहा असुविधाओं को सुविधाओ में बदल दे
 अभावो अल्प साधनो में कार्य कर 
परिणाम सामने ले आये 
कहने का तात्पर्य यह है 
मरुथल की धरा को हरा कर दे 
अपनी दीनता हीनता को प्रगट न करे । 
स्वाभिमान की भावना रखे ।
ऐसे पराक्रमी पुरुषार्थी व्यक्तित्व की 
 सकारात्मक ऊर्जा को पाकर 
मानवता धन्य हो जाती है
 इसके विपरीत अकर्मण्य व्यक्ति 
मात्र पूर्व की जुटायी व्यवस्था के 
उपयोग में विश्वास करते है 
व्यवस्थाये सुविधाये मिल जाने पर
 उनमे दोष निकालते है 
अकर्मण्यता यही समाप्त नहीं होती 
वे निज सुख के लिए दूसरे व्यक्तियो की 
सुविधाओ को को भी छीन कर 
उनका उपयोग उपभोग करते है 
दुनिया में पुरुषार्थी व्यक्तियो की अपेक्षा 
 अकर्मण्य व्यक्तियो का अनुपात 
कही ज्यादा है । 
अकर्मण्य व्यक्ति अकारण 
थकान का अनुभव करता है 
वह कितना भी विश्राम कर ले 
उसकी थकान दूर नहीं होती ।
 अकर्मण्यता निवारण का उपाय क्या है?
 अकर्मण्यता नियमित दिनचर्या 
और उचित व्यायाम से दूर की जा सकती है।
अकर्मण्यता योग ध्यान उपासना अपनाने से 
दूर की जा सकती है ।
अकर्मण्यता ऊर्जा से भरपूर व्यक्तियो का 
सानिध्य पाकर दूर की जा सकती है । 
यदि सूर्य नमस्कार को 
किसी धर्म से न जोड़ा जाए 
तो नियमित सूर्य नमस्कार करने से
अकर्मण्यता दूर की जा सकती है
 

Friday, February 26, 2016

परीक्षा का दौर

वर्तमान में शैक्षणिक  परीक्षाओ का दौर चल रहा है
छात्र तनावग्रस्त होकर परिश्रमरत है
कुछ छात्र जो वर्षभर से सतत अध्ययनरत है
वे इस बात को लेकर चिंता में है कि 
क्या वे आखिरी समय में अपनी मेहनत को प्रश्नपत्र पर उतार पायेगे या नहीं
कुछ छात्र जो वर्ष भर अध्ययन नहीं कर पाये है 
वे अवसादग्रस्त है असफल होने के भय से वे  पलायनवादी मानसिकता के शिकार हो रहे है  
परीक्षा के समय परीक्षार्थियों के लिए भगवान कृष्ण की अर्जुन के लिए बोली गई गीता की वह उक्ति महत्वपूर्ण है जिसमे वे कहते है" न दैन्यं न पलायनम "
शैक्षणिक परीक्षाओ के अतिरिक्त जीवन में अनेक प्रकार की परीक्षाये व्यक्ति को देनी होती है 
कभी परिस्थितिया व्यक्ति की परीक्षा लेती है 
तो कभी अपने परायो का व्यवहार
 व्यक्ति के धैर्य की परीक्षा लेता है 
बीमार व्यक्ति की परीक्षा की परीक्षा टूटता हुआ बदन 
होता हुआ दर्द परीक्षा लेता है 
आर्थिक अभाव में कटती हुई जिंदगी 
प्रतिभा और ईमान की परीक्षा लेती  है 
परीक्षा एक कसौटी है जो व्यक्ति को 
उसकी क्षमता से परिचित कराती है 
परीक्षा व्यक्ति को स्वयं की प्रतिभा बारे में
 रची गई भ्रांतिया को दूर करती है 
परीक्षा यह बताती है कि 
 हमारे प्रयासों में कहा कमी रही है 
जीवन में प्रतिपल हमें अनेकानेक 
छोटी छोटी परीक्षाओ से गुजरना होता है 
कुछ विद्यालयों में तो जितनी  पढ़ाई नहीं होती 
उससे अधिक परीक्षाये और टेस्ट होते है 
ऐसा प्रतीत होता है कि  वे छात्रों को परीक्षा का भय दिखा दिखा कर अध्ययन करने को बाध्य कर रहे है 
परन्तु कृत्रिम रूप से रचा  गया यह
 परीक्षा का आतंक
 परीक्षार्थियो को कमजोर बना रहा है 

Thursday, February 25, 2016

दृष्टिकोण

बात केवल समझने की है हो सकता है जिसे हम पागल समझते है वो अपनी धून में मगन कोई ज्ञानी हो और जिसे हम ज्ञानी माने बैठे है वो कोई धुर्त हो जिसने रटंत विद्या सिद्ध कर रखी हो और विद्वता का छद्म आडंबर ओढ रखा हो
यह अंतर बड़ा ही सूक्ष्म होता है

अंतर केवल दृष्टिकोण का है....

यह भी संभव हे की जिसे हम आज सुख मान रहे हे वो निकट भविष्य में असंतोष देने वाली क्षणिक मृगतृष्णा हो और जिसे हम  आज दुखः समझ रहे हे वो दुःख के रूप में वो गुरू हो जो हमारे भविष्य को सँवारने के लिए हमारा वर्तमान में तांडन  कर रहा है जैसे कोई कुम्हार घड़ा बनाने के लिए चक्के पर उसे घुमाता हे उसे पीटता है  और अंत में वही घड़ा अपने में शीतल जल धारण कर लोगों को जीवन देकर पूजनीय बन जाता है

इस अंतर को समझना हम पर निर्भर करता है और यह भी की हम उस अंतर को समझना चाहते भी हे या नहीं
ये एक फाईन लाइन होती हे जो सत् - असत्  में भेद करती है हमारा दृष्टिकोण जितना समग्र होगा हमारे लिए उस अंतर को देख पाना उतना ही सरल होगा

Saturday, February 20, 2016

स्मार्ट सिटी के बीच भिक्षा वृत्ति

वर्तमान में स्मार्ट सिटी योजना के तहत
 देश के प्रमुख शहरों को सजाया संवारा जा रहा है शहरों को प्रदुषण मुक्त बनाने 
और स्वच्छता पूर्ण  बनाने का प्रयास किया जा रहा है इस हेतु शहरों में हौड़ सी मची हुई है
 परन्तु इस दिशा में किसी का ध्यान नहीं जा रहा है कि शहरों भिक्षावृत्ति के कारण 
कितनी अव्यवस्था गन्दगी 
और अपराधिक् गतिविधियों पनप रही है 
बड़े शहरों में ही नहीं 
प्रमुख तीर्थ स्थलो में भी 
बदते भिखारियो की संख्या चिंताजनक है 
वृध्द .अशक्त. विकलांग  और विक्षिप्त .अर्धविक्षिप्त भिखारियो की फौज के बीच 
युवा हृष्ट पुष्ट महिला पुरुष
 भिखारियो को देख कर ऐसा लगता है 
कि शासन द्वारा इन लोगो के लिए 
कोई योजनाये बनाई ही नहीं गई है 
या शासन द्वारा बनाई गई 
योजनाये परिश्रम की प्रधानता के कारण 
ये लोग भिक्षा वृत्ति कर रहे है 
महत्वपूर्ण यह होगा कि 
इन युवा और स्वस्थ भिखारियो की पहचान कर 
इन्हें कार्य कुशल बना श्रम प्रधान रोजगार में लगा कर इन्हें आर्थिक रूप से स्वालम्बी बनाया जाए ।
इनमे जो भिखारी निकम्मे और अकर्मण्य हो 
उनसे स्थानीय निकायों द्वारा 
नगर के स्वच्छता के कार्यो में
 उपयोग लिया जा सकता है 
इसके लिए सामाजिक सांस्कृतिक 
स्वयं सेवी संगठनो का सहयोग भी लिया जा सकता है
वे भिखारी जो नदियो के पावन घाटो पर
 भिक्षा वृत्ति कर रहे है 
उनसे सप्ताह में एक बार घाटो की 
साफ़ सफाई कराई जा सकती है 
इस कार्य के लिए उन्हें शासन द्वारा निर्धारित पारिश्रमिक दिया जा सकता है 
उपरोक् कदम से भिक्षा वृत्ति की समस्या से
 बहुत हद तक मुक्ति मिल सकती है
 और स्मार्ट सिटी के मुखड़े से 
भिक्षा वृत्ति का कलंक मिटाया जा सकता है 

Friday, February 19, 2016

सार्वभौमिक नियम भाग - 1

भौतिक का एक सार्वभौमिक नियम है जो पूरे ब्रह्मांड पर एक समान लागू होता है वह नियम है Gravity यानी गुरुत्वाआकर्षण का नियम और यह नियम कहता है कि  Space   अर्थात् अंतरिक्ष में जिस का भार (सघनता) जितना अधिक होगा उसका गुरुत्वाकर्षण बल उतना ही अधिक होगा  और गुरुत्वाकर्षण बल  का  अपने से लघु को अपनी और आकर्षित करना ही इसकी विशेषता है
लघु इस आकर्षण में फस कर बंध कर या यह कहना भी गलत नहीं होगा के स्वयं अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए बाध्य हो कर लघु का अपने से महान की सुरक्षा
में बंधकर उसकी  सुरक्षित कक्षा में उसकी परिक्रमा करता रहता है वह भलीभाँति जानता  है कि वह  इस सुरक्षा  के बिना इस विशाल अंतरिक्ष
में लक्ष्य विहीन  भटकता पिन्ड मात्र बन कर रह जायेगा अभी उस का कोई परिचय तो है
उदाहरण के लिए  जैसे हमारा सौर मंडल -

हमारे  सौर मंडल का केन्द्र हमारा महान सूर्य है जो हमे उष्मा , प्रकाश, ऊर्जा और जीवन देता है उसकी महानता के आगे हम अर्थात् पृथ्वी और सौर परिवार के अन्य सभी सदस्य लघु है  हम इसकी कृपा पर आश्रित है हम इसके कर्तग्य है , इस बात का  ज्ञान किसी भी वैज्ञानिक परिकल्पना और विशाल वैज्ञानिक ब्रह्मांडिय टेलिस्कोप  के आविष्कार से भी पहले से पहले हमारे ज्ञानी मुनि पुर्वजो को था जिन्होंने सूर्य को भगवान के रूप में पूजा व सूर्य को जल चढ़ाने की परम्परा हमें विरासत में दी ताकि हम अपने जीवनदाता  काे धन्यवाद ज्ञापित कर सके     
                                             शेष भाग ......
 

सरलता के साथ सफलता

कहते है संत का स्वभाव सरल होता है
सरल स्वभाव से परिपूर्ण व्यक्ति को
अल्प साधना में ही 
ईष्ट की कृपा प्राप्त हो जाती है
जिसका स्वभाव सरल नहीं हो
भले वह संन्यास धारण कर ले 
संत नहीं हो सकता है
हर वह व्यक्ति संत है जिसका स्वभाव सरल है
चाहे उसने सांसारिक जीवन का 
त्याग नहीं किया है
प्रश्न यह उठता है 
सरल स्वभाव की कसौटी क्या है
सरल स्वभाव को किस प्रकार से परिभाषित
किया जा सकता है
जिस व्यक्ति के पास छुपाने लायक कुछ नहीं हो
जिसके भीतर की निश्छलता बाहर से
साफ़ साफ़ पढ़ी जा सके
 वह सरल है
उसका स्वभाव निर्मल जल की तरल है
सरल स्वभाव के व्यक्तियो को मुर्ख समझना
सबसे बढ़ी मूर्खता होगी
ऐसा नहीं है कि 
सरल व्यक्ति दूसरे के मंतव्यों को न पढ़ सके 
सरलता के बल पर 
सरल व्यक्ति सूक्ष्म अनुभूतियों का स्वामी होता है इसलिए उसकी संवेदनाये प्रखर होती है 
वह सीघ्र ही दुष्ट व्यक्ति और उसके मंतव्यों को 
 पहचान लेता है
 जीवन में सरलता का सुख जिसने पाया है 
उसे वैराग्य धारण करने की
 आवश्यकता भी नहीं रहती
 वह तो सहज वैरागी 
भगवद सत्ता का सहज अनुरागी होता है 
सरलता महानता की पहली कसौटी है
 जो भीतर से पावन है वह सरल है 
जो भीतर से प्रसन्न है वह सरल है 
इसलिए सरलता मार्ग ही सर्वोत्तम है 
सरल व्यक्ति के सारे कार्य सरलता से
 निष्पादित हो जाते है 
जीवन के जटिल से जटिल प्रश्नो के समाधान 
उसे सरलता से प्राप्त हो जाते है

Thursday, February 18, 2016

पुरुषार्थ क्या है ?

पुरुषार्थ क्या है ?
पुरुषार्थ  जीवन का मध्य है 
पूर्वार्ध्द है उत्तरार्ध है
 पुरुषार्थ जीवन का भावार्थ  है 
पुरुषार्थी व्यक्ति के लिए यह खुला गगन है
क्षितिज तक विस्तृत्त  धरा है
विपत्तियाँ हुई बौनी विश्व हरा भरा है
पुरुषार्थ के बल पर विश्वामित्र ने
 ब्रह्म ऋषि का पद पाया था 
स्वर्ग और धरा के अतिरिक्त 
अपना एक अलग स्वर्ग  बनाया था 
पुरुषार्थ एक क्रान्ति है जिसके बल पर चाणक्य ने महान मौर्य सामार्ज्य  
और आर्यावर्त अखंड भारत बनाया था
पुरुषार्थी व्यक्ति 
जीवन में सभी महान लक्ष्यों को पाता  है 
परिस्थितिया  कितनी भी भीषण हो 
कठिनाईयों के सुनामी चक्रवातों से टकराता है 
पुरुषार्थ पुरुष होने का अर्थ है 
पुरुष होने का तात्पर्य 
पुरुषार्थ पाकर होना समर्थ है 
पुरुषार्थी परशुराम थे
 जिन्होंने पुरुषार्थी परशु पाकर 
पितृ ऋण  चुकाया था 
मार्कण्डेय ने अल्पायु से 
अमरता का वरदान पाया था
पुरुषार्थ ज्ञान अर्जन की अभिलाषा है 
मौन साधना है तपस्या की भाषा है
सीधे शब्दों में कहे तो आक्रामक नहीं 
सकारात्मक और रचनात्मक जीवन जीने की आशा है
 पुरुषार्थी  साधनो का नहीं 
प्रेरणा का मोहताज होता है
प्रेरणा के अभाव में व्यक्ति अपनी ऊर्जा खोता है 
इसलिए पुरुषार्थी बन कर 
भौतिक और आध्यात्मिक उपलब्धिया पाओ 
मानवीय संवेदना से हो परिपूर्ण हो 
जीवन को  सृजनात्मक विधाओ से सजाओ 





 


Wednesday, February 17, 2016

नर्मदा का हर कंकर शंकर क्यों?

नर्मदा का हर कंकर शंकर होता है यह कहना जितना आसान है इसका समझना इतना ही मुश्किल है मूलतः
शिव जी का ज्योतिस्वरूप जो पाषाण के शिवलिंग होते है नर्मदा नदी जब उसके उत्पत्ति स्थल अमरकंटक से निकलती तो वह अपने प्रवाह से अपने भीतर और तटो पर स्थित चट्टानों को चीरती हुई उन्हें तोड़ती हुई आगे बढती है जल की निर्मलता कोमलता का स्पर्श पाकर पाषाण की कठोरता द्रवित होने लगती है और वे सहज ही नैसर्गिक सौंदर्य को पा शिव स्वरूप को धारण करने लग जाते है इसका आशय यह है कि व्यक्ति कितना भी निष्ठुर और पाषाण ह्रदय हो निरन्तर करुणा और निर्मल निश्छल कोमल स्नेह को सतत प्राप्त करता है तो वह उसका बाहरी स्वरूप निखर जाता है उसके भीतर की पवित्रता को प्रतिबिंबित करता है नर्मदा के कंकर को शंकर बनते हुए आपने देखा है परन्तु हम आपको ऐसे शिवलिंग से परिचित कराना चाहते जो निरन्तर नर्मदा में जलमग्न रहते है वीडियो में  दर्शित शिवलिंग का दर्शन कर नर्मदा में  जलमग्न नर्मदेश्वर शिव शंकर के में निहित अद्भुत ऊर्जा और आध्यात्मिक अनुभव प्राप्त कर सकते है

Tuesday, February 16, 2016

UNIVERSE: मौन की महत्ता

UNIVERSE: मौन की महत्ता

मौन की महत्ता

मौन रहने के कई फायदे है 
मौन वह शैली है 
जिसके कई कायदे है 
मौन वह आवरण है 
जो मूर्खता को ढंक लेता  है 
मर्यादा दूसरे की और अपनी रख लेता है 
मौन से व्यक्ति शान्ति प्रिय कहलाता है 
दूसरा कितना भी अशांत हो 
खुद शान्ति को पाता  है 

मौन एक तपस्या है तप  का प्रतीक है 
मौन संकेतो की व्याख्या 
नहीं की जा सकती ठीक ठीक है 
मौन एक अनुशासन है 
मौन की अपनी व्यवस्थाये है 
छुप  जाती है सभी कमजोरिया 
परिलक्षित नहीं हो पाती शिथिलताये है 
मौन रहने वाला कभी नहीं पछताता है 
क्योकि जो  वह नहीं बोला 
वह होने पर उसे बोला हुआ माना जाता है 
और कुछ नहीं होने पर न बोलना काम आता है 

मौन एक कला है 
संवेदना के स्तर पर 
व्यक्ति का व्यक्तित्व निखरा है ढला है 
मौनी व्यक्ति को 
मौन रहने से मिलती  खुशिया 
दुगुनी चौगुनी सौगुनी है 
मौन रहने वाले व्यक्ति के साथ 
कभी नहीं होती अनहोनी है 
क्योकि जो बात  होनी है वह होनी है 
नहीं होनी है वह कभी नहीं होनी है 
इसलिए झूठ और कटु बोलने से 
बचना हो तो मौन रहो 
तटस्थ और निष्पक्ष दिखना है तो मौन रहो 

मौन वह शस्त्र है 
जो मुस्कान को जन्म देता है 
व्यक्ति जब मुस्कराता है 
तो भाव कई अर्थ लेता है 
कितना भी कर ले पाप 
वह अपने माथे पर नहीं लेता है 
वर्ष में मात्र एक बार मौन अमावस्या आती है 
जो मौन रहने की महिमा सिखला कर 
चुपचाप चली जाती है
इसलिए बंधुओ मौन की ताकत को 
पहचानो समझो और जानो 
कुछ अनर्गल बोलने से पहले 
मौन रहने में अपना भला मानो  

Sunday, February 14, 2016

अच्छाई का मूल्य

राकेश अपने माता पिता का इकलौता बेटा था
माता पिता का आज्ञापालक पर पढ़ने में कमजोर
संस्कारित पर एकांत प्रिय अपने काम से काम करने वाला खेलो चित्र कला में थोड़ी थोड़ी रूचि पर पूर्णता किसी में भी नहीं छोटी छोटी बात का बुरा  लगना उसका स्वभाव था चरित्र का दृढ स्वाभिमानी अभावो में रहने का अभ्यस्त संतोषी परन्तु जीवन में प्राथमिकताएं अभी उसने तय नहीं की थी ठीक उसके विपरीत विपिन जो उसका सहपाठी था उद्दंड शरारती अपनी मनमानी करने वाला परन्तु अच्छा वक्ता धुन का पक्का जो सोच लिया उस कार्य को पूरा कर लेना उसका स्वभाव था चरित्र ऐसा कि वातावरण में सीघ्र समन्वय स्थापित कर प्राथमिकता के आधार पर महत्वपूर्ण कार्य कर लेता था
विपिन की इसी आदत के कारण उसके पास मित्रो की लंबी फौज थी प्रश्न यह है कि क्या राकेश जैसे अच्छे लडके की कोई कीमत नहीं है क्या अच्छाई व्यक्ति के विकास के लिए उपयोगी नहीं है ऐसा नही है राकेश की अच्छाई का मूल्य हो सकता है परन्तु वह समय के अनुरूप वह स्वयं को ढालने सक्षम हो कार्य में पूर्णता हासिल करना उसकी प्रव्रत्ति हो  जीवन में उसने प्राथमिकताये तय की हो तभी अच्छाई और अच्छे व्यक्ति का मूल्य रह पायेगा

Saturday, February 13, 2016

Srijan: मात नर्मदे चपल तरंगे

Srijan: मात नर्मदे चपल तरंगे: पुण्य सलिला रेवा माता , तेरे सदगुण मानव गाता जप तप तेरे तट पर होते , जप तप से है मन हरषाता   मात नर्मदे चपल तरंगे , दर्शन प...

तू दे कला ,माँ वत्सला और लेखनी को धार दे

माँ शारदे तू तार दे
 जीवन मेरा संवार दे 
हुआ विषम कठिन जीवन 
 नवीन सृजन विचार दे

बढे चरण बढे चरण 
सदा मेरे बढे चरण 
है कामना  यही मेरी
 विमल मति तेरी शरण
तू दे कला ,माँ वत्सला 
और लेखनी को धार दे 

सरल तरल कमल नयन
 हो हंस सा धवल हो मन 
सृजन फसल का अंकुरण
 रहे गति ,नहीं क्षरण 
हो शत्रुता कही नहीं 
माँ मित्र दे और प्यार दे

Friday, February 12, 2016

भगवान पशुपतिनाथ

 





भगवान पशुपतिनाथ की यह मूर्ति
 माँ शिवना के तट  पर स्थित है
 प्रतिमा उत्कृष्ट प्रकृति के संगमरमर के पत्थर पर प्राचीन समय में दशपुर नगर के 
 महाराजा यशोधर्मंन  द्वारा 
तत्कालीन शिल्पकारों से तैयार करवाई गई थी 
दशपुर नगर को वर्तमान में 
मन्दसौर नगर के रूप में जाना जाता है 
मन्दसौर नगर पौराणिक काल में 
रावण की पत्नी मंदोदरी का पीहर था 
इसलिए दशानन की प्राचीन मन्दसौर के क्षैत्र 
जिसे खानपूरा नाम से सम्बोधित करते है
 में दशहरे पर दहन नहीं किया जाता 
अपितु जामाता होने से उसकी मूर्ति की 
पूजा की जाती है 
दशपुर के राजा यशोधर्मन अत्यंत शक्ति शाली थे उन्होंने आक्रमण कारी शक हूँण  को 
पराजित किया था 
भगवान पशुपतिनाथ की यह मूर्ति 
शिवना नदी में दबी हुई एक रजक को 
उस समय प्राप्त हुई थी 
जब वह नित्य प्रतिदिन मूर्ति के मस्तक पर
 वस्त्र प्रक्षालन करता था 
काफी समय व्यतीत होने पर रजक को
 भगवान पशुपतिनाथ ने रजक को 
स्वप्न में दर्शन देकर कहा की
 मुझे नदी में से निकालो 
इस पर रजक द्वारा स्थानीय निवासियों को 
 स्वप्न की बात सुनाने पर 
जब खुदाई प्रारम्भ की गई तो
 विशाल मूर्ति जो इस वीडियो में दिखाई दे रही है मिली मूर्ति को स्वामी प्रत्यक्षानन्द महाराज द्वारा स्थापित किया गया तब से यह मूर्ति विश्व में विद्यमान  भगवान  पशुपतिनाथ की सबसे वृहद
 अष्टमुखी प्रतिमा है


चिंतन(chintan): वेश ,परिवेश ,विसंगति

चिंतन(chintan): वेश ,परिवेश ,विसंगति: मात्र बाह्य आकार , प्रकार ,वेश या परिवेश  किसी व्यक्ति या स्थान की वास्तविक पहचान नही करवा सकते है वास्तविक पहचान किसी भी...

Thursday, February 11, 2016

KOTA . (HADOTI) .RAJASTHAN . BHARAT


भगवत सत्ता का जीवन दर्शन

आस्तिक भाव धारण करने वाला व्यक्ति
 व्यवहारिक जगत में
 भगवद् सत्ता का अनुभव करता है 
          सकारात्मक ऊर्जा से परिपूर्ण व्यक्तित्व 
जीवन के हर क्षेत्र में ईश्वरीय शक्तियो की 
उपस्थिति को पाता है  
जो व्यक्ति इस प्रकार की अनुभूतियों से
 परिपूर्ण होता है 
उसे साधना उपासना के लिए
 विशेष प्रयत्न नहीं करना पड़ता है 
उसे स्वतः की ईष्ट का
 आशीष प्राप्त हो जाता है
 इस सिद्धांत का आधार यह है कि
 ईश्वर निराकार स्वरूप में 
प्रत्येक प्राणी और पदार्थ में विद्यमान है
  भौतिक जगत की समस्त रचनाये 
 उसी  की रची हुई है 
समय समय पर विशेष परिस्थितियों में ही
 वह केंद्रीकृत होकर साकार रूप धारण करता है 
तब उसके साकार स्वरूप को
 लोग अवतार के रूप में जानते है

Wednesday, February 10, 2016

Ancient Dhrmrajeshvar Tempal Madhya Pradesh Bharat






त्याग और निर्माण

जीवन का यह कटु सत्य है कि 
किसी भी निर्माण के पीछे 
किसी का बलिदान होता है 
गुरु अपने शिष्य को पूर्णता
 प्रदान करने के लिए 
अपने सुख चैन त्याग कर देता है 
अपना सम्पूर्ण ज्ञान अनुभव
 शिष्य पर उड़ेल देता है 
                 माता पिता अपने बच्चों के लिए
 कितने त्याग करते है 
तब जाकर संतानो का
 जीवन निखर पाता है
 बीज मिटटी में दब कर 
अपने अस्तित्व को पूर्ण रूप से
 मिटा कर एक पौधे को अंकुरित करता है
 जो समय के साथ घना और छायादार
 फलो से भरा वृक्ष बन जाता है
 यदि बीज यह तय कर ले कि
 वह अपने अस्तित्व को बचाकर रखे तो
 कभी भी वृक्ष रूपी विशालता 
उसके भीतर से प्रकट नहीं हो पाएगी
 त्याग से महान लक्ष्य प्राप्त किये जा सकते है
 महान पुरुषो का जीवन देखे तो
 किसी ने देश और समाज के 
उत्थान के  लिए अपने  मूल्य वान  समय का 
किसी ने रिश्तों का 
किसी सुखो का 
तो किसी ने स्थान और धन सम्पदा का
 त्याग किया है समय आने पर
 वे प्राणों का त्याग करने से भी नहीं चूके है

Friday, February 5, 2016

मित्रता

मित्रता मानवीय रिश्तों का अनमोल उपहार है
मित्रता लिंगभेद उम्रभेद से परे होती है
बुजुर्ग व्यक्ति की मित्रता तरुण से हो सकती है
बशर्ते उनमे वैचारिक सामीप्य हो
एक सच्चा मित्र वह है जिससे व्यक्ति अपने मन की बात को निर्भीकता से कह सके
सच्चा मित्र वह है जो अपने मित्र की कमजोरियों को जानने के बावजूद उसका गलत फायदा न उठाये
एक अच्छा मित्र गुरु मार्ग दर्शक भ्राता की भूमिका भी निभाता है मित्रता में सद गुणों का अत्यधिक महत्व होता है दुर्गुणों से भरा मित्र पतन की राह पर ले जाता है स्वार्थी व्यक्ति कभी अच्छा मित्र नहीं हो सकता
कर्ण जैसा सदगुणी मित्र ने जहा दुर्योधन के जैसे दुर्गुणी मित्र की प्राण रक्षा के लिए 
बलिदान स्वयं का दे दिया
वही दुर्योधन जैसे स्वार्थी मित्र ने
 कर्ण को अपने स्वार्थ पूर्ति का साधन बना लिया मित्रता और रिश्ते समान स्तर पर अधिक निभते है ऐसे कई उदाहरण मिल जायेंगे 
जो किसी जमाने में अच्छे मित्र थे 
सामाजिक और आर्थिक स्थिति में 
बदलाव के कारण मित्र नहीं रहे
ऐसा सिर्फ स्वार्थ भावना के कारण ही हुआ 
मित्र वह है जो अपने मित्र को 
निराश और अवसाद से बाहर निकाल दे 
मित्र वह है जो मित्र को नई दृष्टि प्रदान करे
मित्र वह है व्यक्ति को आत्मबल प्रदान करे 
परिश्रम हेतु प्रेरित करे 
मित्र वह है जो सहायता करे 
पर उसे उपकृत करने का अहसास न होने दे

Tuesday, February 2, 2016

समय और सफलता

कुछ लोग का समय काटे नहीं कटता है
कुछ लोगों के पास समय का अभाव होता है
परन्तु समय का वास्तविक अभाव
 बहुत कम लोगो के पास होता है
समय के अभाव का रोना अक्सर वे लोग रोते है
जो समय का सबसे अधिक दुरुपयोग करते है
बीता हुआ समय कभी नहीं आता है
बुध्दिमत्ता यही है कि 
बीते हुए समय का अफ़सोस न किया जाए और वर्तमान का सही उपयोग किया जाए 
समय का समुचित उपयोग 
सभी लोग नहीं कर पाते है
व्यक्ति अपने व्यस्तता के पलो से भी 
समय चुरा सकता है 
समय की यह चोरी सीमित समय में 
व्यक्ति को कार्य करने में सक्षम बनाती है 
समय कभी एक सा नहीं रहता
 समय की गति जिसने पहचान कर 
सफलता हेतु जिसने रणनीति बनाई है 
सफल होकर उस व्यक्ति ने ही मंजिल पाई है
 समय को कोसने से कोई फ़ायदा नहीं है
समय को कोसने वाले व्यक्ति 
अपने दुर्भाग्य को आमंत्रित करते है
 समय से सामन्जस्य स्थापित करना एक कला है 
धन कमाया जा सकता है 
पर समय कमाया नहीं जा सकता है 
समय का मात्र सद उपयोग किया जा सकता है
 समय का सद उपयोग कर 
सुनहरा भविष्य बनाया जा सकता है 
अच्छे समय को याद कर वर्तमान में दुखी होना 
और अच्छे वर्तमान में 
बुरे समय की याद में डूबे  रहने से 
कोई फायदा नहीं है यह प्रवृत्ति मात्र 
अवसाद को जन्म देती है 
धीरे धीरे मनोरोग का कारण बन जाती है