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Saturday, February 2, 2013

सीता जी का सत्याग्रह


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प्राचीन काल में हिन्दू धर्म में महान नारियो की
लम्बी श्रृंखला रही है
जब कभी विद्वता की बात आती है
तो गार्गी और मैत्रेय ऋषि पत्नियों के नाम सामने आते है
चारित्रिक गुणों के आधार पर भी नारियो ने
अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किये है
चारित्रिक गुणों के आधार पर महान स्त्रियों को
सतियो के रूप में संबोधित किया है
महान सतियो में दैत्य कुल की स्त्रिया भी थी
जिनमे दशानन की पत्नी मंदोदरी
मेघनाथ की पत्नी सुलोचना ने जो आदर्श स्थापित किये
इससे इस तथ्य को बल मिलता है
की चरित्र किसी समाज या कुल की संपदा न
होकर सार्वदेशिक गुण है
जब सतित्त्व की बात आती है तो
सती सावित्री का उदाहरण दिया जाता है
जिसने अपने पति सत्यवान के प्राणों के लिए
मृत्यु के देव यमराज से संघर्ष कर लिया था
परन्तु महानता की पराकाष्ठा को पहुचने वाली नारियो में
महान सती श्रीराम भार्या सीता एवं
 ऋषि पत्नी अनुसूया रही है
सीता जी सतीत्व अन्य नारियो की अपेक्षा श्रेष्ठ क्यों है
ऐसा इसलिए है की कोई भी नारी 
अपहरण होने की अवस्था में
स्वयं को असहाय अनुभव करती है
किन्तु सीता ने तत्कालीन दैत्य शक्ति और वैभव के द्योतक
रावण के बंदी रहते मात्र सत्य के बल पर लंबा संघर्ष किया
जिसकी तुलना वर्तमान में अहिंसक आन्दोलन
या सत्याग्रह से हम कर सकते है
सीता जी का सत्याग्रह विश्व में सत्य का सर्वप्रथम प्रयोग था
सीता जी का सत्याग्रह मात्र लंका में ही नहीं
बल्कि श्रीराम की रावण पर विजय के बाद भी जारी रहा
अयोध्या आगमन के पश्चात श्रीराम द्वारा परित्याग
किये जाने के उपरान्त
सीता जी चाहती तो अपने पिता राजा जनक 
के पास चली जाती
या प्रतिकूल परिस्थितियों में
किसी अन्य व्यक्ति का आश्रय प्राप्त कर लेती
परन्तु सीता जी ने ऐसा न कर घनघोर वन में भी
सात्विक प्रकृति के संत वाल्मीकि जी के आश्रम
को अपना आश्रय स्थल बनाया
और अपने अबोध शिशुओ का लालन पालन किया
सीता जी के जीवन का यह पक्ष उन स्त्रियों के लिए दिशा -निर्देश है जिनको पतियों द्वारा परित्यक्त किया जा चुका है