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Friday, June 19, 2020

हसीनाबाद-उपन्यास समीक्षा

लेखिका गीता श्री द्वारा अभिलिखित उपन्यास जो वाणी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित हुआ है ।यह उपन्यास समाज के एक ऐसे वर्ग की पीड़ा को बयान करता है जिनके बारे में लोग खुले मुँह बात करना पसंद नही करते  अर्थात ग्रामीण क्षेत्र के सामन्तवादी लोगो की वासनाओ की तृप्त करने वाली महिलाओं और उनके बच्चों की दास्तान का नाम है हसीनाबाद।
           वैसे तो देश के कई हिस्सों में हसीनाबाद जैसी बस्तियां दिखाई देती है परंतु उपन्यास में उल्लेखित हसीनाबाद बिहार के वैशाली जिले से सम्बंधित है  उपन्यास की केंद्रीय पात्र सुंदरी जिसे कुछ लोग बचपन मे उसके गांव उठाकर ले जाते है और बाद में उसे है हसीनाबाद में ठाकुर सजावल सिह ठाकुर की कामनाओ का शिकार होना पडता है ।सुंदरी जिसे अपनी नियति मान लेती है । कालांतर में सुंदरी को ठाकुर सजावल सिंह से एक पुत्र रमेश और एक पुत्री गोलमी पैदा होती है । उपन्यास की सम्पूर्ण कथा सुंदरी की पुत्री गोलमी के इर्द गिर्द घूमती है ।हसीना बाद में सुंदरी जैसी अनेक स्त्रियां होती है जो अलग अलग ठाकुरों की यौन इच्छाओ की पूर्ति की साधन मात्र होती है ।परम्परा के तहत ठाकुर उनके जीवन यापन की सारी व्यवस्था करते है ।ऐसी महिलाओं की लड़कियों को पुनः अनैतिक कृत्यों में लिप्त होना पड़ता है कला संगीत नृत्य के माध्यम से ठाकुरों अगली संतति की तृष्णाएं शांत करनी पड़ती है ।लड़को को ठाकुरों सेवा में रह कर लठैतों की भूमिका निभाना पड़ती है ।।                                 कथानक के अनुसार हसीनाबाद मूल भूत सुविधाओ से वंचित रहता है ।महिलाओं के बच्चे अशिक्षित ।ऐसे में एक दिन सुंदरी गांव के मंदिर में अन्य स्थान से आई भजन मंडली के सदस्य  सुगन महतो के साथ प्रेम प्रसंग के रहते अपनी पुत्री गोलमी को लेकर भाग जाती है और सूजन महतो जो पूर्व से अन्य महिला से विवाहित है रहने लगती है । सुंदरी की पुत्री गोलमी और उसकी सहेली रज्जो गांव के अन्य लड़के खेचरु और अढाई सौ के बचपन को उपन्यास में लेखिका द्वारा बहुत खूबसूरती से चित्रित किया गया है। कथा के अनुसार सुंदरी गोलमी को पढ़ाना चाहती है परंतु गोलमी नृत्य और संगीत में रुचि रखती है । उधर सुंदर पुत्र रमेश जिसे वह मालती देवी के पास छोड़कर आ गई थी। वह उपेक्षित बचपन बीताते हुए बड़ा होता जाता है अपनी माँ और बहन के प्रति मन मे घृणा का भाव रखता है । रमेश अपने मित्र उस्मान जो ईट के भट्टे पर मजदूर है तथा ठाकुरों के निर्देशों पर क्रूर कृत्यों को अंजाम देता है के साथ आत्मीयता और सामीप्य का अनुभव करता है ।गोलमी अपनी नृत्य और संगीत में रुचि के चलते नृत्य कला मंडली का गठन कर गांव गांव में लोगो का मनोरंजन करती है । नृत्य कला मंडली में गोलमी का साथ रज्जो खेचरु अढाई सौ देते है इसी दौरान एक राजनेता राम बालक सिंह की दृष्टि गोलमी पर पड़ती जो गोलमी की नृत्य और गीत की कथ्य शैली से प्रभावित होकर उन्हें अपनी पार्टी के चुनाव के प्रचार हेतु मना लेते है ।
         समय के साथ गोलमी कला के सोपान के माध्यम से राजनीति के शिखर पर पहुँच जाती है और रमेश कुशल राजनेता के रूप में स्वयम को स्थापित कर लेता है 
          उपन्यास  अंग्रेजो के समय के पुराने सामन्तवाद  को आजादी के नवीन रूप धारण करते बताया गया है । किस प्रकार राज नेता राम खिलावन के पिता संग्राम सिंह जो प्रथम कोटि के शराबी थे फर्जी तौर पर स्वतंत्रता संग्राम सेनानी घोषित रोचक कथा के माध्यम से प्रगट किया गया है  । सामंतवादियों द्वारा यौन शोषण की गई महिलाएं जब वृध्दावस्था को प्राप्त होती उनकी मानसिक स्थितियों को सूक्ष्मता से विश्लेषित  किया गया है ।कथा में वरिष्ठ लेखक प्रभात रंजन जी की कृति "कोठागोई" में उल्लेखित चतुर्भुज और उनसे जुड़ी नृत्यांगनाओ और उनके जुड़े संदर्भो को स्पर्श किया है ।उपन्यास की भाषा मे कही कही काव्यात्मकता नज़र आती है ।