प्रतिमा जिसे शिल्पकार निर्मित करता है
वह प्रतिमा जो ईष्ट की हो मंदिर में स्थापित की जाती है
प्रतिमा को मंदिर स्थापित करने मात्र से वह पूजी नहीं जाती
बल्कि प्रतिमा में प्राण प्रतिष्ठा मंत्रो एवं विधि-विधान किये जाने के बाद ही प्रतिमा में परमात्मा का अंश स्थापित होने के पश्चात पूजा जाता है
प्रतिमा.में परमात्मा अंश किस मात्रा में प्रतिष्ठित हुआ
यह उस प्रतिमा के साधक की साधना पर निर्भर करता है
वह प्रतिमा जिसकी अधिक व्यक्तियों द्वारा दर्शन एवं पूजा की जाती वह उतनी मात्रा में चमत्कारिक परिणाम देती है
शनै शनै ऐसी प्रतिमा और मंदिर तीर्थ बन जाता है
दर्शनार्थियो.की अधिक संख्या से प्रतिमा में
परमात्म अंश की चैतन्यता का भी सम्बन्ध होता है
शास्त्रों के अनुसार आत्मा परमात्मा का अंश होती है
दर्शनार्थियों में स्थित आत्म तत्व जब निरंतर प्रतिमा के समक्ष समर्पण एवं श्रध्दा भाव से निहारता है अर्चना करता है तो श्रध्दा प्रतिमा में केंद्रीकृत हो जाती है
धीरे धीरे दर्शनार्थियों की बढती संख्या के अनुपात में
प्रतिमा के प्रति श्रध्दा बहु गुणित होती जाती है और प्रतिमा में परमात्म अंश में विस्तार होने लगता है
चेतना एवं ऊर्जा अनंत संचार होने लग जाता है तब ऐसी चेतना एवं ऊर्जा में
निराकार ब्रह्म का सहज ही वास होने पर
श्रध्दालुगण की मनोकामनाये पूर्ण होने लग जाती है