भगवान् कृष्ण के बड़े भ्राता जिनका नाम बल भद्र है
के बारे में बहुत कम कथाकारों द्वारा प्रकाश डाला जाता है
जबकि भगवान् बल भद्र वर्तमान में भी प्रासंगिक है
बल +भद्र अर्थात ऐसा बल जो सभ्यता एवं कुलीनता
बल +भद्र अर्थात ऐसा बल जो सभ्यता एवं कुलीनता
सद्गुणों से परिपूर्ण हो बल भद्र के रूप में संबोधित किया जाता है सामान्य रूप से यह देखा जाता है
थोड़ा सा बल या शक्ति पाकर कोई भी व्यक्ति या परिवार ,
थोड़ा सा बल या शक्ति पाकर कोई भी व्यक्ति या परिवार ,
समाज या देश अपनी शालीनता खोकर आक्रामक हो जाता है
अधिक बल पाकर व्यक्ति अत्याचारी ,समाज हिंसक ,
देश आक्रामक हो जाता है
भगवान् बल भद्र के बल की कल्पना इससे की जा सकती है
भगवान् बल भद्र के बल की कल्पना इससे की जा सकती है
कि महाभारत के प्रमुख महाबली भीम एवं दुर्योधन उनके शिष्य थे दोनों को उन्होंने गदा युध्द की शिक्षा दी थी
इतना बल होने के बावजूद भगवान् बल भद्र
कभी हिंसक एवं आक्रामक नहीं हुए
परिस्थितिया चाहे कितनी भी प्रतिकूल रही हो
एक तरफ जहा महाभारत युध्द की भूमिका तैयार हो रही थी
दूसरी और भगवान् बलभद्र भविष्य के भूमिका का तैयार कर रहे थे
वे दूर दृष्टा थे उन्हें मालुम था की युध्द में होने वाले विनाश के दौरान यदि विकास रूपी बीज नहीं बचाया एवं संजोया नहीं गया
तो मानवीयता दम तोड़ देगी
और समाज पुन आदिम युग में चला जाएगा
भगवान् बल भद्र का हाथो में हल शोभायमान रहता है
इसका तात्पर्य यह है की वे भूमि को अपनी माता मानते थे
हल के माध्यम से कृषि कर पर्यावरण सरंक्षण हो
यह सन्देश वे यह देना चाहते थे
भगवान् बल भद्र शेष नाग के अवतार माने जाते है
इसका आशय यह है प्रलय या विनाश के पश्चात जो शेष
अर्थात बचा रहे उससे सृष्टि को जो विकसित कर सके
वे शेष नाग कहलाते है
ऐसे देव को ही कर्म के देव भगवन विष्णु
अपने मस्तक धारण करते है
इसलिए भगवान् बल भद्र बल शालीनता के द्योतक है
वे विनाश में विकास की आशा का बीज है
फिर क्यों न हम उनकी आराधना करे ?अपने मस्तक धारण करते है
इसलिए भगवान् बल भद्र बल शालीनता के द्योतक है
वे विनाश में विकास की आशा का बीज है
उनके द्वारा रचे गए पथ का हम क्यों न अनुसरण करे ?