छाबड़ा साहब की एक मात्र लड़की मनु जो मन ही मन ऋषि की और आकर्षित होती है , वह कॉलेज की छात्रा होते हुए ऋषि से ट्यूशन पढ़ने का आग्रह करती है ।ऋषि के मना करने पर उसे भावनात्मक दबाव में ले लेती है, फिर मनु को पढ़ाने के लिये मान जाता है। अंततः मनु और ऋषि में निश्चय अनिश्चय के बीच मन मोहक संवादों और भाव भंगिमाओं के बीच प्रेम की परिणीति होती है । इसी दौरान बिहार में सूर्य पूजा के त्यौहार हलछठ पर मनु और ऋषि के मध्य उपस्थित हुए प्रेम प्रसंग महत्वपूर्ण हो जाते है ।लेखक ने हलछठ के उत्सव और उससे जुड़ी परम्पराओ का उल्लेख बहुत ही विस्तृत किया है । प्रेमी युगल के बीच उपजे प्रसंगों और भावनाओं को काव्यात्मक रूप से रेखांकित किया है ।
उपन्यास में मोड़ तब आता है जब देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री की उनके अंग रक्षको की हत्या के परिणाम स्वरूप सिख समुदाय के विरुध्द लोगो आक्रोश घृणा पैदा होता है ।जिसके कारण ऋषि द्वारा उसकी प्रेमिका मनु और उसके परिवार को आक्रामक भीड़ से बचाने के प्रयास किये जाते है और इन प्रयासों के दौरान भीड़ का हिस्सा रहते हुए चुनोतियो का सामना करना पड़ता है ।हिंसा के दृश्यों को लेखक द्वारा शब्द चित्रों के माध्यम बहुत ही बेहतर तरीके से दर्शाया है। दंगा समाप्त होने के उपरांत ऋषि द्वारा मनु और उसके परिवार को सफलता पूर्वक बचा लेने के बाद जो प्रेमी और प्रेमिका का बिछोह होता है वह दुखांत है जो गंगा सागर की यात्रा तक समाप्त होता है