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Friday, February 19, 2016

सार्वभौमिक नियम भाग - 1

भौतिक का एक सार्वभौमिक नियम है जो पूरे ब्रह्मांड पर एक समान लागू होता है वह नियम है Gravity यानी गुरुत्वाआकर्षण का नियम और यह नियम कहता है कि  Space   अर्थात् अंतरिक्ष में जिस का भार (सघनता) जितना अधिक होगा उसका गुरुत्वाकर्षण बल उतना ही अधिक होगा  और गुरुत्वाकर्षण बल  का  अपने से लघु को अपनी और आकर्षित करना ही इसकी विशेषता है
लघु इस आकर्षण में फस कर बंध कर या यह कहना भी गलत नहीं होगा के स्वयं अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए बाध्य हो कर लघु का अपने से महान की सुरक्षा
में बंधकर उसकी  सुरक्षित कक्षा में उसकी परिक्रमा करता रहता है वह भलीभाँति जानता  है कि वह  इस सुरक्षा  के बिना इस विशाल अंतरिक्ष
में लक्ष्य विहीन  भटकता पिन्ड मात्र बन कर रह जायेगा अभी उस का कोई परिचय तो है
उदाहरण के लिए  जैसे हमारा सौर मंडल -

हमारे  सौर मंडल का केन्द्र हमारा महान सूर्य है जो हमे उष्मा , प्रकाश, ऊर्जा और जीवन देता है उसकी महानता के आगे हम अर्थात् पृथ्वी और सौर परिवार के अन्य सभी सदस्य लघु है  हम इसकी कृपा पर आश्रित है हम इसके कर्तग्य है , इस बात का  ज्ञान किसी भी वैज्ञानिक परिकल्पना और विशाल वैज्ञानिक ब्रह्मांडिय टेलिस्कोप  के आविष्कार से भी पहले से पहले हमारे ज्ञानी मुनि पुर्वजो को था जिन्होंने सूर्य को भगवान के रूप में पूजा व सूर्य को जल चढ़ाने की परम्परा हमें विरासत में दी ताकि हम अपने जीवनदाता  काे धन्यवाद ज्ञापित कर सके     
                                             शेष भाग ......
 

सरलता के साथ सफलता

कहते है संत का स्वभाव सरल होता है
सरल स्वभाव से परिपूर्ण व्यक्ति को
अल्प साधना में ही 
ईष्ट की कृपा प्राप्त हो जाती है
जिसका स्वभाव सरल नहीं हो
भले वह संन्यास धारण कर ले 
संत नहीं हो सकता है
हर वह व्यक्ति संत है जिसका स्वभाव सरल है
चाहे उसने सांसारिक जीवन का 
त्याग नहीं किया है
प्रश्न यह उठता है 
सरल स्वभाव की कसौटी क्या है
सरल स्वभाव को किस प्रकार से परिभाषित
किया जा सकता है
जिस व्यक्ति के पास छुपाने लायक कुछ नहीं हो
जिसके भीतर की निश्छलता बाहर से
साफ़ साफ़ पढ़ी जा सके
 वह सरल है
उसका स्वभाव निर्मल जल की तरल है
सरल स्वभाव के व्यक्तियो को मुर्ख समझना
सबसे बढ़ी मूर्खता होगी
ऐसा नहीं है कि 
सरल व्यक्ति दूसरे के मंतव्यों को न पढ़ सके 
सरलता के बल पर 
सरल व्यक्ति सूक्ष्म अनुभूतियों का स्वामी होता है इसलिए उसकी संवेदनाये प्रखर होती है 
वह सीघ्र ही दुष्ट व्यक्ति और उसके मंतव्यों को 
 पहचान लेता है
 जीवन में सरलता का सुख जिसने पाया है 
उसे वैराग्य धारण करने की
 आवश्यकता भी नहीं रहती
 वह तो सहज वैरागी 
भगवद सत्ता का सहज अनुरागी होता है 
सरलता महानता की पहली कसौटी है
 जो भीतर से पावन है वह सरल है 
जो भीतर से प्रसन्न है वह सरल है 
इसलिए सरलता मार्ग ही सर्वोत्तम है 
सरल व्यक्ति के सारे कार्य सरलता से
 निष्पादित हो जाते है 
जीवन के जटिल से जटिल प्रश्नो के समाधान 
उसे सरलता से प्राप्त हो जाते है