आपदा प्रबंधन कोई दुर्घटना हो या कोई प्राकृतिक आपदा या अकस्मात आई ऐसी परिस्थिति जिससे निबटने के लिये कोई पूर्व में कोई कार्य योजना निश्चित नही की गई है से सम्बंधित है । किसी व्यक्ति की आपदा प्रबंधन की क्षमता अत्यंत धैर्य ,स्थित प्रज्ञता ,त्वरित निर्णय लेने की क्षमता इत्यादि गुणों पर निर्भर करती है। इसमें प्राथमिकता निर्धारण का क्रम अत्यंत महत्वपूर्ण होता है । एक से अधिक वैकल्पिक समाधान के मार्ग मनो मस्तिष्क में होना भी आवश्यक है । कार्य योजना ऐसी हो जो व्यवहारिक धरातल उतारी जा सके। योजना में लचीलापन ऐसा हो जो परिस्थितिया परिवर्तित होने पर योजना में वांछित बदलाव किया जा सके
आपदा प्रबंधन में यह अधिक महत्वपूर्ण होता है कि उपलब्ध संसाधनों के आधार पर समस्या के तात्कालिक समाधान । ऐसे उपाय जो बिना किसी विशेष प्रयास के आसानी से हम सहज रूप से उपलब्ध वस्तुओ से क्रियान्वित कर पायें। ताकि समस्या के स्थाई समाधान के लिये हमें थोड़ा सा समय मिल सके। ।
इतिहास साक्षी है युध्द ,अकाल, महामारी, भूकम्प , सुनामी जैसी आपदाओं में ऐसा समाज और राष्ट्र ही विजय पा सका है । जिसने संभावित आपदाओ हेतु स्वयं को तैयार कर लिया है ।आपदा प्रबंधन में सर्वप्रथम तो यह प्रयास होना चाहिये कि बिल्कुल क्षति ही नही हो फिर क्षति होने से रोकी न जा सके तो क्षति आनुपातिक रूप कम से कम हो।
आपदा प्रबंधन में सबसे महत्वपूर्ण मनोवैज्ञानिक पक्ष होता है ।यह देखने मे आया है कि आपदा के समय मनोवैज्ञानिक पक्ष की सदा उपेक्षा की जाती है ।जो गम्भीर विषय है । सामान्य रूप देखा जाता है आपदा से ग्रस्त जन समूह मानसिक रूप से इतना अधिक विचलित हो जाता है कि क्षति का मात्रा बढ़ जाती है ।हड़बड़ी में व्यवस्था में गड़बड़ी होने लगती है ।योजनाकार की समस्त योजनाये ध्वस्त होने लगती है ।ऐसी स्थिति में समाज , परिवार या राष्ट्र हो के मुखिया की जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है ।मुखिया का यह दायित्व होता है कि वह जन मानस उठने वाली तरह तरह की आशंकाओं को दूर करे भय का निवारण करे।
समाज का मनोवैज्ञानिक पक्ष मजबूत करने के लिए साहित्य ,कला, संगीत अध्यात्म का योगदान अत्यंत महत्व पूर्ण होता है ।साहित्य, कला , संगीत जहाँ हमे बौद्धिक खुराक प्रदान करते है ।वही हमारी रचनात्मकता में वृध्दि कर मानसिक ऊर्जा के उन्नयन का कार्य करते है ।यही प्रवृत्ति हमे आपदा के समय हमें गहरे अवसाद से उबारने में सहायक होती है । व्यक्ति की आध्यात्मिकता इस बात पर निर्भर नही करती कि वो कितना धार्मिक है , यह इस बात पर निर्भर करता है कि व्यक्ति की जीवन शैली कैसी है आंतरिक ध्यान ,प्राणायाम, योग ,व्यायाम का उस व्यक्ति के जीवन मे कितना महत्व है । आध्यात्मिक चेतना से उपजा आस्तिक भाव व्यक्ति को विपरीत समय मे सम्बल प्रदान करता है । समस्त सम्भावनाये समाप्त हो जाने पर भी व्यक्ति को निरन्तर आशावान बनाये रखता है ।