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Sunday, April 22, 2012

दस इन्द्रियों के रथी दशरथ

दशरथ जो भगवान् श्रीराम के पिता थे  
रामचरितमानस ग्रन्थ के अनुसार कहा जाता है
 उन्होंने श्रीराम जो उनके पुत्र थे के वियोग में प्राण दे दिए थे  
किन्तु प्रश्न यह उठता है
 की प्राचीन काल में यथा गुण तथा नाम रखे जाने का प्रचलन था दशरथ का तात्पर्य यह होता है 
की दस रथो पर एक साथ नियंत्रण रखने वाला व्यक्ति 
दस  रथ कौनसे ?
इसका आशय यह है की मानव शरीर में दस इन्द्रिया होती है 
जिनमे पांच ज्ञान इन्द्रिया पांच कर्म इन्द्रिया  
महाराजा दशरथ वे व्यक्ति थे जिन्होंने दसो इन्द्रियों को एक साथ साध रखा था  
गीता में ऐसा व्यक्ति जिसने सुख दुःख से  उत्पन्न  प्रवृत्तियों पर विजय प्राप्त कर ली हो स्थित प्रज्ञ कहा गया है
सामान्यत कोई भी व्यक्ति इन्द्रियों के वशीभूत होकर गलत कार्य कर बैठता है इन्द्रियों के वशीभूत होकर राग द्वेष काम क्रोध ,लोभ ,मोह ,इत्यादी वृत्तियों के अधीन रहता है
 किन्तु महाराज दशरथ जिन्होंने दस इन्द्रियों पर नियंत्रण कर लिया हो का पुत्र वियोग में रोना और प्राणों का त्याग कर देना अस्वाभाविक प्रतीत होता है  
तार्किक दृष्टि से दशरथ जैसे स्थित प्रज्ञ एवम दस इन्द्रियों के रथी का श्रीराम के वनवास गमन के दौरान प्राण त्याग करने का अर्थ सामने यह आता है 
कि महाराजा दशरथ एक न्याय प्रिय राजा थे 
वे किसी भी परिस्थिति में किसी भी पक्ष के साथ अन्याय नहीं कर सकते थे 
परन्तु कैकयी को दिए गये वचन के कारण जो श्रीराम के साथ जो अन्याय हुआ वे उसके कारण अत्यंत विचलित हो गये थे 
जीते जी वे श्रीराम के साथ हुए अन्याय को देख पाने में समर्थ नहीं थे इसलिए उनका प्राण त्यागना अपरिहार्य हो गया था 
दूसरी और श्रीराम ने अपने पिता के वचन की लाज रखने हेतु वनवास प्रस्थान इसलिए किया 
क्योकि श्रीराम विष्णु के अवतार थे 
विष्णु भगवान के परम भक्त महाराजा दशरथ थे 
भगवान् सदा भक्त द्वारा दिए गए वचन की लाज रखते है 
जिसके लिए चाहे उन्हें कुछ भी क्यों न करना पड़े कलयुग में इसका उदाहरण नरसिंग मेहता भगत है सतयुग में भक्त प्रहलाद है 

2 comments:

  1. Lekh ati Utm lga.
    abhi tk Sri Ram naam ki mhima suni thi ab Dshrath naam ki mhima ka bhi gyan hua.

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