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Thursday, May 28, 2020

उपन्यास -शिगाफ

राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित उपन्यास शिगाफ  महिला लेखिका मनीषा कुलश्रेष्ठ द्वारा लिखित है। उपन्यास का आरम्भ कश्मीर से विस्थापित कश्मीरी पंडित परिवार की एक युवती अमिता जो स्पेन के बार्सिलोना और मेड्रिड शहर में निवास करती है कि आत्मकथा के रूप में लिखी जाने वाली डायरी से होता है । लेखन और अनुवाद के व्यवसाय से जुड़ी  कश्मीरी युवती का संपर्क प्रकाशन व्यवसाय से जुड़े इयान ब्रान से होता है। अमिता और इयान के प्रेम और प्रणय की परिस्थितियों के बीच उपन्यास की कथा आगे बढ़ती है , जो बार बार स्पेन और कश्मीर के बीच की सामाजिक परिस्थितियों और राजनैतिक पृष्ठभूमियो के विश्लेषण तक पहुचती है 
        अमिता उपन्यास की कथा के अनुसार आत्मानुभव अपने  भाई अश्वथ से ब्लॉग के माध्यम  से बाँटती है ।कालांतर में अमिता भारत में आ जाती है। दिल्ली शहर में अमिता उसके पिता और उसके अंकल जो कश्मीर से विस्थापित हो कर कठिन परिस्थितियों में रह रहे है ।उनके कश्मीर की समस्या के प्रति दृष्टिकोण और अनुभूतियो को देखती है ।जम्मू के शरणार्थी शिविरों में कश्मीरी पंडितों की यंत्रणा पूर्ण जिन्दगो को यह उपन्यास परिचित कराता है 
   उपन्यास की कथा के दौरान अमिता कश्मीर के श्रीनगर और पहलगाम पहुचती है जहाँ उसके भाई अश्वत्थ का रंगकर्मी मित्र वजीर मिलता है जो उसके पैतृक निवास स्थान पर ले जाता है अमिता के सामने वे भावुक पल होते है जब उन्हें आधी रात को उसके परिवार सहित कश्मीर से खदेड़ा गया था । कश्मीर में अमिता उसके शिक्षक रहमान सर से मिलती है ।रहमान सर की लड़की यास्मीन जो अमिता की बचपन की सहेली होती है उसकी डायरी जब अमिता को रहमान सर से प्राप्त होती है ।तब उपन्यास यास्मीन की आत्मकथा के रूप में प्रारम्भ होता है ।जिसमे यास्मीन का निकाह एक विधुर से कर दिया जाता है।।कश्मीरी युवतियों को आतंकवादियों द्वारा प्रेमपाश में फांस कर किस प्रकार मानवबम के रूप में प्रयुक्त किया जाता है ,यह उपन्यास में अच्छी तरीके से बताया गया है ।कश्मीर समस्या पर उपन्यास के माध्यम से विभिन्न दृष्टि से देखने का प्रयास किया गया है । कश्मीर समस्या के फलस्वरूप उपन्यास में यह तो बताया ही गया है कि कश्मीर में किस प्रकार कश्मीरी पंडितो पर नृशंस अत्याचार कर बेदखल किया है साथ मे यह भी बताया गया है एक आम कश्मीरी किस प्रकार से आर्मी और आतंकवादियों के बीच मे बुरी तरह फंसा हुआ है ।कई गांव पुरुष विहीन हो चुके है मात्र महिला, बच्चे और वृध्द बचे हुए है ।उपनयास का अंत भूकम्प की त्रासदी से होता है
       उपन्यास की मुख्य पात्र अमिता निरन्तर प्रेम और प्रणय के निश्चय अनिश्चय में झूलती रहती है ।कभी वह इयान ब्रान के प्रति तो कभी कश्मीरी पत्रकार जमाल के तो कभी आर्मी के जवान शांतनु में अपना प्रेम तलाशती है ।उपन्यास में अलग अलग प्रक्रमो पर अलग अलग पात्र आत्मकथा के रूप उपन्यास की कहानी को आगे बढ़ाते है ।उपन्यास में पात्रो द्वारा स्वयम से संवाद भी किया गया है ।संवाद की भाषा और भाव काव्यात्मक होकर अनुभूतियो की प्रखरता को प्रकटित करते है 

Friday, May 22, 2020

उपन्यास 84

सत्य व्यास द्वारा लिखित 84 चौरासी उपन्यास 1984 के सिख विरोधी दंगो पर आधारित है । उपन्यास का प्रारम्भ लेखक द्वारा उपन्यास के महत्वपूर्ण पात्रो मनु , मनु की माँ मनु के पिता छाबड़ा साहब और ऋषि जो मनु के मकान का किरायेदार होता के परिचय कराने से प्रारम्भ होता है । छाबड़ा साहब बाहर कही से आकर ओद्योगिक नगर में रहने के लिए आते है और वे मकान खरीद कर अपने व्यवसाय  चलाते है ।मकान का किरायेदार ऋषि स्कूल के बच्चो को ट्यूशन पढ़ाता है ।मोहल्ले के अंदर जो ऋषि की साफ छवि होती है, मोहल्ले के बाहर इसके विपरीत उसका उद्दंड व्यक्तित्व होता है 
        छाबड़ा साहब की एक मात्र लड़की मनु जो मन ही मन ऋषि की और आकर्षित होती है , वह कॉलेज की छात्रा होते हुए ऋषि से ट्यूशन पढ़ने का आग्रह करती है ।ऋषि के मना करने पर उसे भावनात्मक दबाव में ले लेती है, फिर मनु को पढ़ाने के लिये मान जाता है। अंततः मनु और ऋषि में निश्चय अनिश्चय के बीच मन मोहक संवादों और भाव भंगिमाओं के बीच प्रेम की परिणीति होती है । इसी दौरान बिहार में सूर्य पूजा के त्यौहार हलछठ पर मनु और ऋषि के मध्य उपस्थित हुए प्रेम प्रसंग महत्वपूर्ण हो जाते है ।लेखक ने हलछठ के उत्सव  और उससे जुड़ी परम्पराओ का उल्लेख बहुत ही विस्तृत किया है । प्रेमी युगल के बीच उपजे प्रसंगों  और भावनाओं को काव्यात्मक रूप से रेखांकित किया है  । 
   उपन्यास  में मोड़ तब आता है जब देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री की उनके अंग रक्षको की हत्या के परिणाम स्वरूप सिख समुदाय के विरुध्द लोगो आक्रोश घृणा  पैदा होता है ।जिसके कारण ऋषि द्वारा उसकी प्रेमिका मनु और उसके परिवार को आक्रामक भीड़ से बचाने के प्रयास किये जाते है और इन प्रयासों के दौरान भीड़ का हिस्सा रहते हुए चुनोतियो का सामना करना पड़ता है ।हिंसा के दृश्यों को लेखक द्वारा शब्द चित्रों के माध्यम बहुत ही बेहतर तरीके से दर्शाया है। दंगा समाप्त होने के उपरांत ऋषि द्वारा मनु और उसके  परिवार को सफलता पूर्वक बचा लेने के बाद जो प्रेमी और प्रेमिका  का बिछोह होता है वह दुखांत है जो गंगा सागर की यात्रा तक समाप्त होता है 

Sunday, May 17, 2020

"प्रेम लहरी " एक उपन्यास

हाल ही में राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित "प्रेम लहरी " एक ऐसा उपन्यास है जो मुग़ल  बादशाह शाहजहाँ के शासन काल के समय प्रचलित व्यवस्था सामाजिक परिवेश उनकी पारिवारिक स्थितियो को दर्शाता है शाहजहाँ  की बेगम मुमताज के प्रति उनके प्रेम की परतो को खोलता है शाहजहां की १४ सन्तानो की उत्पत्ति को लेकर उनकी प्रेम के नाम पर कामुक भावनाओ का परिचय देता है |   वैसे तो इस उपन्यास में मुस्लिम शासन काल में हिन्दुओ के प्रति तीर्थ यात्रा को लेकर लिए जाने वाले कर का उल्लेख किया गया है तथा बिना शासकीय अनुमति के हिंदु  मंदिरो के निर्माण  किये जाने के निषेध सम्बंधित विधि की और ध्यान दिलाया गया है |  परन्तु  शाहजहाँ और उसके पुत्र दाराशिकोह को  हिन्दू मान्यताओं पर विश्वास  करने सम्बंधित प्रसंग भी बताये गए है |  त्रिलोकी नाथ पांडेय द्वारा अभिलिखित इस उन्यास को पढ़ते समय लगता है कि  हम उस युग में प्रवेश कर रहे है ।उपन्यास को पढ़ते समय कथानक के समस्त पात्रो के चित्र और स्थान हमारी कल्पना के पटल पर उतरते चले  आते है |
 उपन्यास का मुख्य पात्र पंडित जगन्नाथ के व्यक्तित्व का प्रभावी रूप से उल्लेख किया गया है पंडित जगन्नाथ की काव्यात्मक प्रतिभा और शारीरिक क्षमता का एक साथ होना शाहजहाँ  की सबसे छोटी पुत्री लवंगी के ह्रदय में प्रेम अंकुरित कर देता है | जहाँ  पंडित जगन्नाथ और लवंगी के बीच निश्छल प्रेम जो आध्यत्मिक उंचाईयों को छूता  है | वही शाहजहाँ  की बड़ी पुत्री जहां आरा  के बादशाह के साथ अनैतिक सम्बन्ध और रोशन  आरा के कामुकता  पूर्ण स्वेच्छाचारिता विचलित  कर देती है |  उपन्यास में पंडित जगन्नाथ के गुरु पंडित कवींद्र  के बारे में काफी अच्छे तरीके से बताया गया है | तत्कालीन समय में जो उनकी हिन्दू समाज में उपस्थिति दर्शाई गई है वह काफी महत्वपूर्ण है |  उपन्यास में एक पात्र आता है वैद्य  सुखदेव | वैद्य सुखदेव आर्युवेदिक ओषधियो  को  बाादशाह हेतु तैयार कर करता है और किस प्रकार बादशाह तैयार की गई वाजीकारक ओषधियो का उपयोग कर अपनी वासनाओ की तुष्टि करते है यह बहुत ही चुटीले अंदाज बताया गया है | 
         उपन्यासकार द्वारा भाषा का चयन  पात्रो के अनुसार किया है |  उपन्यास में यथा  स्थान पात्रो के संवाद जिस चुटीली भाषा में अंकित किये गए है उनसे राग दरबारी की याद आ जाती है | विशेष रूप से काशी में एक निः संतान सेठ को संतान प्राप्ति पर शिव मंदिर निर्माण का घटनाक्रम में उपजे शब्द चित्र उपन्यासकार श्री  लाल शुक्ल के उपन्यास "राग  दरबारी "की याद दिला देते है |  प्रेम लहरी उपन्यास में पात्रो के माध्यम से लेखक ने कई भजनो ,श्लोको आर्युवेदिक ओषधियो के सूत्रों का उल्लेख किया है | उपन्यास पढ़ते समय लगता है लेखक ने उपन्यास  वर्णित काल को जिया है \उपन्यास के अंत में प्रेमी जोड़े पंडित जगन्नाथ एवं शहजादी लवंगी का विवाह धर्म की दीवारों के कारण असंभव होना दर्शाते हुए \बादशाह शाहजहाँ  को एक हिन्दू विधवा चंद्रशिला के शीलभंग  के प्रयास और प्रयास के दौरान चंद्रशिला द्वारा आत्महत्या की जा बताया है \ कुल मिलाकर यह उपन्यास पाठको की ऐतिहासिक  जिज्ञासाओं को शांत करता है \शाश्वत प्रेम के प्रति आस्था जाग्रत करता है \ मुग़ल बादशाह शाह जहां के तथाकथित प्रेम के प्रति भ्रांतियों का निवारण करता है