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Thursday, June 11, 2020

चन्दावती-उपन्यास की समीक्षा

अनुज्ञा  प्रकाशन से प्रकाशित उपन्यास चन्दावती जो सुप्रतिष्ठित नवगीतकार श्री भारतेन्दु मिश्र द्वारा लिखित है ।एक ऐसी ग्रामीण महिला जिसका नाम चन्दावती है के जीवन पर आधारित है ।जो बाल विधवा हो गई है और उसे उसके ससुराल वालों ने ससुराल से बहिष्कृत कर दिया है ।चन्दावती तेली समाज की हैऔर वह रामलीला में सीता जी की भूमिका निभाती रही है ।गांव में ही रहने वाले और चन्दावती से आयु में अधिक ब्राह्मण समाज के विधुर व्यक्ति हनुमान दादा जो रामलीला में रावण की भूमिका निभाते रहे है और पहलवानी के शौकीन है का चन्दावती से प्रेम हो जाता है ।दोनों एक दूसरे से विवाह कर लेते है ।बाद में चन्दावती को पता चलता है कि हनुमान दादा कुश्ती में आई चोट के कारण संतानोत्पत्ति में असमर्थ है । मैले में लगने वाले जड़ी बूटियों के दवाखाने में उपचार हेतु सपत्नीक जाते है जहाँ बाबा चन्दावती को नियोग की सलाह देते है चन्दावती उपरोक्त परिस्थितियों में स्वयं को ठगा हुआ पाती है 
       चन्दावती को ब्राह्मण समाज से भिन्नं तेली समाज की सदस्य होने के कारण हनुमान दादा के परिवार के लोग उनके भाई और भतीजा शिवप्रसाद तरह तरह से अपमानित करते है।एक बाल विधवा को कितनी प्रकार की मानसिक यातनाएं झेलना पड़ती है यह उपन्यास में बहुत अच्छी तरह से दर्शाया है लोग ऐसी महिलाओं से अनैतिक संबंध बनाना चाहते है पर विवाह कोई नही करना चाहता है ।निचले तबके की विधवा महिला से विवाह करने वाले सवर्ण पुरुष को भी हेय दृष्टि से देखा जाता है ।चन्दावती जिसने अपने भतीजे शिवप्रसाद को पुत्रवत स्नेह दिया ।शिवप्रसाद के विवाह उत्सव के दौरान जिस उत्साह का प्रदर्शन किया ।उसी के द्वारा चन्दावती के पति की मृत्यु हो जाने पर जिस प्रकार से चन्दावती को घर से बाहर निकाल दिया जाता है ।वह अत्यंत हृदय विदारक है लेखक द्वारा विवाह उत्सव पर बारात प्रस्थान के पश्चात महिलाओं द्वारा किये जाने वाले प्रहसनों को जिस मनोरंजक अंदाज में प्रस्तुत किया गया है वह अद्भुत है ।चन्दावती को उसके भतीजे शिव प्रसाद द्वारा घर से बाहर निकालने पर चन्दावती द्वारा जिस प्रकार प्रतिकार किया जाता है वह उल्लेखनीय है धरना प्रदर्शन देवी दल का गठन, ग्रामीण महिलाओं में रचनात्मक शक्ति का निर्माण , अपनी आवाज को सर्वोच्च स्तर पर पहुचाना, इन सभी उपक्रमो का उपन्यास में बहुत अच्छी प्रकार से समावेश किया गया है ।ग्रामीण आंचलिक महिलाओं की कठिनाइयों के बारे नगरों की अभिजात्य वर्ग की महिलाओं और उनसे जुड़े आंदोलनों को पता ही नही है 
        उपन्यास में आगे चन्दावती के उसके पति की सम्पति के अधिकारों के संघर्ष को लेकर गांव की कुंताबाई और उसकी लड़कियों द्वारा सहयोग दिया जाता है ।चन्दावती के संघर्ष में उसका भाई शंकर भोजाई रजना भी सहयोग करती है ।गांव की राजनीति , पुलिस प्रशासन का धन बल के सहारे  चन्दावती भतीजे शिवप्रसाद द्वारा अपने पक्ष में उपयोग कर चन्दावती को कुचलने के किस प्रकार प्रयास किया जाता है ।यह हमारे पंचायती राज और प्रशासनिक व्यवस्था पर कई प्रश्न चिन्ह खड़े कर देता है इसी कड़ी में एक हद तक लोक तंत्र के चौथे स्तम्भ को भी उपन्यास ने कठघरे में खड़ा किया है । अंत मे चन्दावती और कुंता शिव प्रसाद द्वारा रचे गए षडयंत्रो के तहत मारी जाती है परन्तु चन्दावती द्वारा जो आंदोलन स्वयम के अधिकारों के लिए प्रारम्भ किया गया था। वह अंचल की समस्त नारी समुदाय के लिये बन जाता है। जिस मकान से चन्दावती को बहिष्कृत किया गया था।वह देवी दल का कार्यालय और जो जमीन उसे मिलना थी उस विद्यालय निर्माण की प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाती है
         उपन्यास की अंतर्वस्तु और भाषा सरस हैं ।मूल रूप यह उपन्यास अवधी भाषा मे लिखा गया है बाद में हिंदी में अनुवाद किया गया है इसलिए अवधी भाषा के अंचल में प्रचलित लोक गीतों को पढ़ने का अवसर भी मिल जाता है।कुल मिला कर इस उपन्यास की विशेषता यह है कि जो पाठक इसके कथानक से जुड़ जाता है तो वह पढ़ते चला जाता है कथा में निरन्तर प्रवाह है । कथानक की परिस्थितियां कृत्रिम नही लगती ।पात्र जीवंत प्रतीत होते है