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Monday, November 26, 2018

मुक्ति का मार्ग

जीवन और मृत्यु जीवन के शाश्वत सत्य है 
आत्मा के अस्तित्व को प्रत्येक धर्म ने स्वीकारा है 
परन्तु पुनर्जन्म को मात्र सनातन हिन्दू धर्म
 एवं जुडी भिन्न भिन्न शाखाओ ने मान्यता दी है 
पुनर्जन्म कहा होगा कैसे होगा ?
यह व्यक्ति के कर्म निर्धारित करते है 
योग की सर्वोच्च अवस्था मुक्ति होती है 
मोह से मुक्ति बंधनो से मुक्ति 
बहुत से लोग पुनर्जन्म के अभिलाषी होते है 
तो अल्प  मात्रा में वे लोग होते है 
जो मोक्ष की कामना करते है 
मोक्ष अर्थात जन्म जन्मांतर से मुक्ति 
पूर्ण रूपेण निराकार ईश्वर में समाहित हो जाना 
प्रश्न यह है कि मुक्ति का मार्ग क्या है ?
कई सालो की साधना से वरदानी सिद्धिया प्राप्त की जा सकती है
 पर मुक्ति नहीं 
 संसार से पलायन कर संन्यास लिया जा सकता है 
पर मुक्ति नहीं 
व्यक्ति जहा जाता है वहा मोह और कर्म के बंधन 
उसका पीछा पकड़ते जाते है 
मुक्ति प्राप्त करने के लिए कर्तव्य से
 पलायन की आवश्यकता नहीं है 
कर्तव्यों के समुचित पलायन करते हुए 
कर्म में शुध्दता से मुक्ति का मार्ग पाया जा सकता है 
यह सदैव देखने में आता है 
व्यक्ति जिस वस्तु या विषय से भागता है 
वह उसका पीछा करती है
 इसलिए संसार में रहते हुए 
पूर्ण योग्यता और प्रखरता से अपेक्षता से रहित
 कर्म किया जाए 
तो  कर्म से जुड़े व्यक्ति या विषय में 
आसक्ति रही रहती 
आसक्ति नहीं रहने से हम उन्मुक्त हो जाते है 
उन्मुक्तता जब आत्मा का 
संस्कार बन जाता है 
तो मृत्यु के पश्चात उस  आत्मा के लिए 
मुक्ति द्वार खुल जाते है 

 

Saturday, November 24, 2018

संयुक्त परिवार

संयुक्त परिवार धीरे धीरे विघटित होते जा रहे है वैसे वैसे सामाजिक समस्याएं विकराल होती जा रही है| परम्पराये संस्कार विलुप्त होते जा रहे है आज भी मझौले शहरों में और ग्रामीण क्षेत्रों में संयुक्त  परिवारों का कही कही अस्तित्व दिखाई देता है तो सुखद अनुभूति होती है संयुक्त परिवारों में एक प्रकार का अनुशासन दिखाई देता है |छोटे सदस्यों का बड़ो के प्रति आदर का भाव बड़ो का छोटे सदस्यों के प्रति स्नेह आशीष और सरंक्षण दृष्टिगत होता है|भारतीय संस्कृति और सस्कारो अस्तित्व बहुत हद तक संयक्त परिवारों से जुड़ा हुआ है जैसे जैसे संयुक्त परिवार विघटित होते जा रहे है|व्यक्ति आत्म केंद्रित होता जा रहा है तलाक और गृह कलह जैसे परिस्थितिया  निर्मित होती जा रही है| संयुक्त परिवार में कार्य का विभाजन मह्त्वपूर्ण कारक होता है|आर्थिक और सामजिक विषयो में घर के वरिष्ठ सदस्य के निर्णयो को अधिक महत्व दिया जाता है उनके मत को बहुत अधिक गंभीरता से सूना जाता है क्रियान्वित किया जाता है संयुक्त परिवारों में व्यवसाय हेतु पूंजी का अभाव नहीं रहता है क्योकि प्रत्येक सदस्य की थोड़ी थोड़ी पूंजी मिल कर व्यवसायिक आवश्यकता हेतु वृहत रूप धारण कर लेती है सभी सदस्यों के पास आभूषण और वस्त्र समान रूप से विध्यमान रहते है किसी के पास अधिक हो तो दूसरी महिला सदस्य उसका उपयोग कर लेती है किसी सदस्य के रुग्ण होने पर उसके उपचार की व्यवस्था स्वतः हो जाती है परिवारमें विपत्ति आती है सभी महिलाये उनके पास विध्यमान आभूषणों को परिवार के हित  के लिए अर्पित कर देती है कमजोर सदस्य को आर्थिक और सामजिक सुरक्षा की आश्वस्ति रहती है  संयुक्त परिवार प्रबंधन के जीवंत उदाहरण है महाभारत हो या रामायण दैत्य हो दानव प्राचीन भारतीय परिस्थितियों में संयुक्त परिवार की अवधारणा को सभी ने अपनाया है संयुक्त परिवार के माध्यम से अपने परिवार समाज राज्य को समृध्द और पुष्ट बनाया है कई प्रकार के प्रतिरोधों का सामना किया है पर संयुक्त परिवार वह कवच  रहा है जहा से परिवार समाज  राज्य ने पुनः अपना सामर्थ्य पाया है|


Friday, November 23, 2018

समय क्या है ?

समय क्या है ? 
समय एक प्रवाह है 
परिस्थितियों का 
समय एक अवसर है जिसको जिसने पहचान लिया 
उसी का हो गया
समय और शख्स को बहुत जरुरी है 
पहचानने के लिए अंतर्दृष्टि चाहिए 
जो हर किसी के पास हो यह जरुरी नहीं है 
जिन लोगो में समय और शख्स को पहचानने की दृष्टि नहीं होती 
वे समय के प्रवाह और भावनाओ  में बहे जाते है
और नित्य नवीन परिस्थितियों में ठगे जाते है 
समय के अश्व को थामा नहीं जा सकता है 
परन्तु समय को बदला जा सकता है 
निरंतर पुरुषार्थ परिश्रम और सतत साधना है
समय भूत है वर्तमान है भविष्य है 
भूत के साथ अनुभव  है ज्ञान है बोध है 
वर्तमान के साथ अनुभूतिया संवेदनाये नित्य नवीन होते रहे शोध है 
भविष्य में अपेक्षाएं महत्वकांक्षाये निरंतर सम्भावनाये है 
समय की सत्ता को जिसने समझा है जाना है 
ईश्वर के अस्तित्व को उसने सही प्रकार से पहचाना है

Thursday, November 8, 2018

गोवर्धन पूजा

गोवर्धन पूजा का भारतीय सांस्कृतिक परम्परा का अत्यधिक महत्व है। पशुपालन के साथ पर्यावरण के प्रश्न भी जुड़े है द्वापर युग मे जब बिगड़ते पर्यावरण के कारण मौसम का संतुलन बिगड़ने लगा था तो गोकुल की जनता अतिवृष्टि से त्राहि त्राहि करने लगी थी ।उस समय भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत का आश्रय लेने का विचार सामने रखा और उसकी पूजा की परंपरा प्रारम्भ की ।गोवर्धन पर्वत की पूजा का आध्यात्मिक अर्थ के साथ इस उद्देश्य को हमे समझना होगा कि पर्वत और पेड़ हमारे रक्षक है ।वृक्ष पर्वत पर होने से भूमि पर्वत श्रंखलायें हमे तेज हवाओं से बचाती है ।वर्षा का जल भूमि के भीतर पहुचाने में  और मिट्टी के कटाव को रोकने में पेड़ की जड़े  अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है ।गोवर्धन पर्वत को उंगली पर धारण करने का तात्पर्य यह है कि हम सभी यदि अंश मात्र भी पर्यावरण संरक्षण में सहयोग कर पाए तो हमे किसी भी प्रकार की प्राकृतिक आपदा का सामना नही करना पड़ेगा ।इसलिए आओ हम गोवर्धन पूजा के इस पर्यावरण की रक्षा का संकल्प ले ।यदि हम एक वृक्ष को बड़ा न कर पाए तो कम से कम किसी पेड़ के ध्वंस का कारण तो न बने यही सच्ची गोवर्धन पूजा होगी

Monday, November 5, 2018

धनतेरस

धन तेरस का धन से कोई संबंध नहीं है।धन तेरस वास्तव में धन्वंतरि(आयुर्वेद और स्वास्थ्य के देव) जयंती है,कालांतर में यह अपभ्रंश होकर धन तेरस हो गया
शास्त्रों में है प्रथम सुख निरोगी काया
हमारा शरीर सबसे बड़ा धन है इस पंचतत्व के शरीर को स्वस्थ रखने समाज और राष्ट्रहित मे इसका उपयोग ही
ईश्वर की पूजा है

 *धन्वन्तरि जी के जन्मदिवस पर सभी को शुभकामनाएं*