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Monday, October 29, 2012

पूनम से हे! देव मिले ,सरस सुधा रसपान


शरद शीत प्रारम्भ है , हुई सर्द हर रात
शरद पूर्णिमा  मे करता है,नभ अमृत बरसात

शारदीय नवरात गई,शक्ति भक्ति के साथ
तापमान गिरता गया,हिमवत भए जजबात

क्षीर पीकर संतृप्त हुये,त्रप्त हुआ अब व्योम
त्रिशक्ति जो साध सके,मिलते उसको ओ३म्

चन्दा मामा झाँक रहे ,झिल-मिल चंचल नीर
मातु हमे भव तार दे,मन से हर ले पीर

देवो से है स्वर्ग भरा, धरा मनुज का गाँव
शरद चन्द्रमाँ  बरस रहा ,हर्षित है उर भाव

रहे चन्द्र सा मेरा मन ,तन मन हो घनश्याम
पूनम से हे देव मिले ,सरस सुधा रसपान
 

शरद पूनम की अति भायी

कोमल कोपल पर ठहरी बुँदे
निशा  की उमस में इतराती है
उषा से ऊर्जा  ले  रूप पाती है
पाकर ठंडक वह हिम लाती है
दूब की हरीतिमा  है उसकी माई
दूब के भीतर से ही वह बन पाई
खग ,भ्रमर भी अब खुशिया लाये
सर्दी के भीतर रह पल मुस्काये
शरद के संग संग अब मन गाये
चेतनता को पा हम बन पाये
सूरज से शीतलता सकुचाई
शीतलता भीतर तक अब आई
प्राणों ने दीप्ती है चमक पाई
शरद पूनम  की अति भायी
हर पल के भीतर खुशबू छाई