यह उपन्यास इलाहाबाद में निवासरत चंदर नामक युवक की दास्तान है । चंदर कपूर एक प्रतिभावान छात्र होता है जिसको डॉ.शुक्ला नामक प्रोफेसर अपने पास रख कर पढ़ने और आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करते है । डॉ शुक्ला की लड़की सुधा जो चंदर को निश्छल और निस्वार्थ प्रेम करती है । चंदर सुधा के पवित्र प्रेम की गहराईयों को जानता है। शारीरिक वासनाओ से परे आत्मीयता से ओत प्रोत प्रेम को महत्व देता है और वैसा ही चरित्र सुधा को गढ़ने हेतु उत्प्रेरित करता है । चंदर प्रेम की मर्यादा समझता है और प्रेयसी सुधा को समझाता है।
चंदर एक अन्य महिला पम्मी के संपर्क में भी रहता है जो वासना के संसार को छोड़कर चंदर के पवित्रतम प्रेम पर मुग्ध हो जाती है। सुधा की चचेरी बहन विनीता जो सुधा के पास आकर रहने लग जाती है । जो सुधा और चंदर के प्रेम से बेहद प्रभावित हो जाती है । कालांतर में सुधा का विवाह कैलाश नामक व्यक्ति से विवाह हो जाता है । सुधा की दृष्टि में चंदर प्रेम का देवता रहता है ।सुधा का उसके ससुराल में स्वास्थ्य गिरता जाता है और एक दिन उसका देहान्त हो जाता है
उपन्यास को पढ़ते और सुनते जीवन के कई दार्शनिक पहलू सामने आते है ।बिम्बो के माध्यम से धर्मवीर भारती जी ने जो भाव भरी अनुभूतियों का चित्रण किया है वह अदभुत है । जगह जगह लगता है कोई कविता पढ़ रहे है । सम्पूर्ण उपन्यास आत्मीयता का अहसास देता है। बार बार पढ़ने का मन करता है