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Wednesday, July 10, 2019

सुभाषित

मणिना वलयं वलयेन मणिः मणिना वलयेन विभाति करः।
कविना च विभुः विभुना च कविः कविना विभुना च विभाति सभा॥
शशिना च निशा निशया च शशी शशिना निशया च विभाति नभः।
पयसा कमलं कमलेन पयः पयसा कमलेन विभाति सरः॥

मणि से कंगने की और कंगन से मणि शोभित होती है, एवं इन दोनों से हाथ की शोभा बढ़ती है।
कवि से राजा और राजा से कवि की शोभा होती है व दोनों की उपस्थिति से सभा शोभित होती है।
चंद्रमा से रात्रि व रात्रि से चंद्रमा की शोभा होती है, व इन दोनों से आकाश शोभित होता है।
जल से कमल की और कमल से जल की सुंदरता बढ़ती है, व इन दोनों से सरोवर शोभित होता है।

विपदि धैर्यमथाभ्युदये क्षमा
सदसि वाक्पटुता युधि विक्रमः ।
यशसि चाऽभिरुचिर्व्यसनं श्रुतौ
प्रकृतिसिद्धमिदं हि महात्मनाम् ॥

विपत्ति में धैर्य, अभ्युदय में सहिष्णुता, सभा में वाक् चातुरी, युद्ध में वीरता, यश में उत्कण्ठा, वेद-शास्त्रों विषयक अनुराग, ये गुण महानुभावों के स्वभाव में ही पाये जाते हैं ।