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Monday, September 2, 2019
आत्मा क्या है
Wednesday, July 10, 2019
सुभाषित
मणिना वलयं वलयेन मणिः मणिना वलयेन विभाति करः।
कविना च विभुः विभुना च कविः कविना विभुना च विभाति सभा॥
शशिना च निशा निशया च शशी शशिना निशया च विभाति नभः।
पयसा कमलं कमलेन पयः पयसा कमलेन विभाति सरः॥
मणि से कंगने की और कंगन से मणि शोभित होती है, एवं इन दोनों से हाथ की शोभा बढ़ती है।
कवि से राजा और राजा से कवि की शोभा होती है व दोनों की उपस्थिति से सभा शोभित होती है।
चंद्रमा से रात्रि व रात्रि से चंद्रमा की शोभा होती है, व इन दोनों से आकाश शोभित होता है।
जल से कमल की और कमल से जल की सुंदरता बढ़ती है, व इन दोनों से सरोवर शोभित होता है।
विपदि धैर्यमथाभ्युदये क्षमा
सदसि वाक्पटुता युधि विक्रमः ।
यशसि चाऽभिरुचिर्व्यसनं श्रुतौ
प्रकृतिसिद्धमिदं हि महात्मनाम् ॥
विपत्ति में धैर्य, अभ्युदय में सहिष्णुता, सभा में वाक् चातुरी, युद्ध में वीरता, यश में उत्कण्ठा, वेद-शास्त्रों विषयक अनुराग, ये गुण महानुभावों के स्वभाव में ही पाये जाते हैं ।
Thursday, May 16, 2019
मानसिक नपुंसकता
दुष्ट कितना भी शक्तिशाली हो वीर उनका सामना कर उन्हें परास्त कर दंड देते है विद्वानों गुणवानों का सम्मान करते है कमजोरो को अभयदान देते है विपत्ति ग्रस्त लोगों को सहयोग करते है वीरता कप यह भाव लुप्त होता जा रहा है वीरता के भाव के स्थान पर मानसिक नपुंसकता अधिक मात्रा में व्याप्त होने लगी है
मानसिक नपुंसकता पारिवारिक सामाजिक प्रशासनिक राजनैतिक स्तरों पर पाई जाने लगी है मानसिक रूप से नपुंसक्त व्यक्ति प्रभावशाली और शक्तिशाली दुष्ट व्यक्तियों से दुष्प्रभावित होकर उन्हें सुविधाएं और अवसर प्रदान करते है कमजोर व्यक्तियों का शोषण करते है और विपत्ति ग्रस्त व्यक्तियों की सहायता से मुख मोड़ते है इस प्रकार मानसिक नपुंसकता से ग्रस्त व्यक्ति हमारे समाज परिवार और प्रशासन को खोखला कर रहे हैं मानसिक रूप से नपुंसकता स्तर स्थानीय से लगा कर अंतरराष्ट्रीय हो सकता है अंतरराष्ट्रीय स्तर की नपुंसकता दुर्बल राष्ट्र का दमन करती है
Monday, April 22, 2019
शरीर से अशरीर की यात्रा
शरीर से अशरीर की यात्रा अध्यात्म का मार्ग है आत्मा से जुड़ी अनुभूतिया जितनी प्रखर होगी आध्यात्मिक गहराईयां उतनी गहरी होती जाती है व्यक्ति जब तक जीवित रहता है उसकी अनुभूतिया इन्द्रियों से जुड़ी रहती है परंतु व्यक्ति की मृत्यु के पश्चात के शरीर का अंतिम संस्कार हो जाता है इंद्रिया नष्ट हो जाती है आत्मा शेष रहती आत्मानुभूतिया बची रहती है आत्म बल शेष रहता है आत्म ज्ञान शेष रहता है आत्मा से जुड़े संस्कार और विचार शेष रहते है इसलिए व्यक्ति के लिए यह अनिवार्य हो जाता है कि वह जीवित रहते वह आत्मा ऐसा कार्य करे कि उसके आत्म बल आत्म ज्ञान में वृध्दि हो प्राणों की सिध्दि हो
Saturday, April 6, 2019
बेटी में सपना साकार रहा
न मानव के अधिकार रहे
न करुणा पावन प्यार रहा
मानव मानव से दुखी रहा
और हृदयविहीन व्यापार रहा
मन के भीतर न ख़ुशी रही
नहीं खुशिया का श्रृंगार रहा
आंसू अविरल है नयन बहे
सुख सपनो का संसार ढहा
दुःख से धरती माँ सिसक रही
जन अपमानित मन चीत्कार रहा
दीन दुर्बल को यहाँ चुन चुन कर
शव क्षत विक्षत होता संहार रहा
हम दिवस मनाते अधिकारो के
हर पल हमको धिक्कार रहा
बीता जीवन अंधियारे में
और उजियारा उनके द्वार रहा
ढोता बचपन है बस्तों को
नाजुक कंधो पर भार रहा
बेटो में वत्सलता बाँट रहे
बेटी में सपना साकार रहा
Wednesday, April 3, 2019
भाग्यशाली
Monday, March 11, 2019
गहना तो बहना है
भावो की मृदुलता उसने यहाँ पाई है
गहना तो बहना है बहना का भाई है
रिश्ता एक प्यारा है आँखों तारा है
राखी पे बहना की चिठ्ठी एक आई है
रौनक है वह घर की खुशियो सी आई है
दुःख दर्द गहरे है फिर भी मुस्काई है
सब कुछ ही सहना है दुखियारी बहना है
राखी पर बहना की आँखे छलक आई है
Tuesday, January 15, 2019
संक्रांति
संघर्ष जीवन की नियति है संघर्ष के बिना सफलता की कल्पना नही की जा सकती है इस दुनिया मे ऐसा कोई व्यक्ति नही जिसने जीवन मे दुख नही देखा है लेकिन इतिहास उसी का बनता है जिसने दुख देखने के बाद संघर्ष करके सफलता पाई है दुख से कातर व्यक्ति किसी व्यक्ति की करुणा सहानुभूति पा सकता है पर यही करुणा सहानुभूति उस व्यक्ति को कमजोर बना देती है इसलिए आवश्यकता से अधिक सहानुभूति व्यक्ति मानसिक रूप से अशक्त बना देती है धीरे धीरे वह दूसरे की दया पर आश्रित हो जाता है संघर्ष शील व्यक्ति सफलता प्राप्त नही होती तब तक निरन्तर कर्मरत रहता है संघर्ष के पथ पर एक मुकाम ऐसा आता जब व्यक्ति विचलित होने लग जाता है लक्ष्य समीप हो तो ऐसा विचलन अधिक मात्रा में होने लगता है तब व्यक्ति की धैर्य की परीक्षा होने लगती है उस परिस्थिति में जिस व्यक्ति ने धैर्य नही खोया वह ही विजेता कहलाता है मंतव्य से गंतव्य की यात्रा के क्षण अत्यधिक महत्वपूर्ण होते है इसी यात्रा को हम संघर्ष यात्रा या संक्रमण का दौर कह सकते है यह हमारे जीवन के परिवर्तन का दौर मौन क्रांति का परिचायक होता है इसे ही हम संक्रांति के नाम से संबोधित कर सकते है संक्रांति अर्थात सकारात्म दिशा में परिवर्तन
इसलिए हम परिस्थितियों में आक्रांत नही स्वस्फूर्त ऊर्जा से भरपूर रहे संक्रांत रहे । यह सक्रांति का भाव ही हमारे उत्थान करेगा