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Tuesday, April 13, 2021

कोरोना पुराण

कोरोना एक बीमारी नही एक सोच है । सोच जो आदमी को निकम्मा बना देती है । कुछ लोगो को कोरोना भयावह लगता है तो कुछ लोगो को कोरोना काल न काम करने का उपाय ।कोरोना आया है चला जायेगा परन्तु सोच ऐसी है जो रहती आई है रह जायेगी। कोरोना की आड़ में कई घपले है । कोरोना कब कहा आएगा, कब जाएगा ,यह उसकी इच्छा पर नही है । नीति निर्धारकों की इच्छा पर  निर्भर है । आकड़ो के लिहाज से कितने संक्रमित हुए ,कितने संक्रमण से मुक्त हुए हुए ।कितने मरे यह या तो चिकित्सक जाने या पैथालॉजी प्रयोगशालाएं  जाने ।बेचारा आम नागरिक तो लक्षणों के भरोसे ही यह उपधारणा कर सकता है कि वह कोरोना से संक्रमित है या नही । कोई बोलता है तेज बुखार के साथ सूखी खांसी  तो कोई बोलता है कि स्वाद चखने और सुगंध सूंघने की ग्रंथियों की क्षमता में कमी , कोई बोलता है कि शरीर मे असाधारण दर्द ,कोई बोलता साँस लेने में कठिनाई सबके अपने अपने विचार है । इन सब उलझनों से मुक्त होने के लिए विशेषज्ञ लोगो ने एक नया विचार दिया है "बिना लक्षणों वाला कोरोना "मानो कोरोना एक बीमारी न हुई एक बला हो गई जो कभी भी किसी भी रूप कही भी प्रकट हो जाने को तैयार हो।
       कहते है बिना लक्षण वाला कोरोना को पहचानना मुश्किल ही नही नामुमकिन है ।डॉन  को तो सोलह मुल्कों की पुलिस तलाश कर रही थी परन्तु कोरोना को सम्पूर्ण विश्व की पुलिस भी तलाश नही कर पा रही है । उसके स्वरूप और प्रकृति को जानने के लिए कितने ही जीव वैज्ञानिक दिन रात एक कर लगे हुए है । तरह तरह के वैक्सीन नुमा हथियार एक छोटे से सूक्ष्मजीवी के लिए तैयार भी कर लिए है । हर देश अपने वैक्सीन को श्रेष्ठ और दूसरे के वैक्सीन को कमतर बताने में कोई कसर नही छोड़ रहा है । अपनी अपनी मान्यताये है, पर हमारे देश ने विश्व बंधुत्व और शांति  पूर्ण सह अस्तित्व की भावना को अंगीकार करते हुए अपने देश के वैक्सीन को निर्यात करने तथा अन्य देशों द्वारा निर्मित वैक्सीन को आत्मसात करने का  फैसला कर लिया है । 
   अब तो कोरोना के नये नये स्टैन आ जाने से बुध्दिजीवीयो और छिद्रान्वेषी लोगो को बोलने का मौका दे दिया है । लोग यह कहने से भी नही चुक रहे है कि क्या फायदा  वैक्सीन  लगवाने से ?जो वैक्सीन उपलब्ध है वे पुराने कोरोना प्रतिरूप से सामना करने के लिए निर्मित है।कोरोना के नए प्रतिरूप के लिए नही ।इसके लिए जब तक कोई वैक्सीन नहीं आएगा तब तक वे वैक्सीनशन नही करवायेगे। इस तरह के तर्क देकर वे कितने ही बार वैक्सीन लगवाने से बच चुके है । यदि शरीर मे ऑक्सिजन का स्तर जांच के दौरान कम पाया जाये वे इसे अपनी योगशक्ति प्राणायाम की उपलब्धि बताते हुए सनातन भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों पर अपनी श्रध्दा व्यक्त करने लगते है । उनके इसी भ्रांति ने कितने लोगों को मौत के समीप पहुंचा दिया है और स्वयं की श्वसन क्षमता को अत्यधिक कम कर चुके है । उन्हें पता ही नही उनके फेफड़े कितनी मात्रा में क्षतिग्रस्त हो चुके है। उन्हें कोई किसी प्रकार की जांच करवाने के लिये कहना भी अपराध है ।
       कोरोना से होने वाली मौतों के आंकड़ों को देखते हुए तथाकथित आधुनिक मनीषियों ने नए जीवन सूत्र दिए है ।उनका चिन्तन कोरोना समाधान के नवीन आयाम स्पर्श कर रहा है । उनका सोच यह यह है जितने लोगो कोरोना के संक्रमण से नही मर रहे है उससे कही ज्यादा कोरोना के भय और अकेलेपन के अवसाद से मर रहे है । इस सोच से आकृष्ट होकर शासन ने ऐसे कोविड सेंटर बनाये है , जो कोरोना संक्रमितों के अकेलेपन को दूर कर रहे है । आजकल कोविड सेंटरो में सांस्कृतिक और साहित्यिक आयोजन की खबरे भी सुनने में आने लगी है । विधान सभा , लोकसभा चुनाव में जुटाने वाली भीड़ इसी प्रयास के उपक्रम है । कोरोना में चुनावी सभाओ में एकत्र भीड़ की आलोचना उन्हें लोकतंत्र विरोधी भावना प्रतीत होती है । 
        लोग व्यर्थ ही कोरोना को कोसने में लगे हुए है ।कोरोना ने कई लाइलाज बीमारियों का इलाज किया है ।जो आंदोलन दिल्ली पुलिस लाखो प्रयासों के बाद नही तोड़ पाई । ऐसे शाहीन बाग धरना कार्यक्रम और किसान आन्दोलन की कोरोना ने ही तो कमर तोड़ी है । देश की अर्थ व्यवस्था में कोरोना का अद्भुत योगदान है । चाहे कर्मचारियों की वेतन वृध्दि हो या वेतन आयोग की सिफारिशो का क्रियान्वयन उन पर तब तक स्थगन रहेगा ।जब तक कोरोना रहेगा । प्रदूषण मुक्ति की योजनाओ को भी कोरोना से भारी बल मिला है ।नदियों की स्वच्छता , वायु की गुणवत्ता में काफी अनुकूल प्रभाव कोरोना देव के कारण ही तो पड़ा है । जरूरत से ज्यादा आस्तिक प्रकृति के लोगो की ओर  से तो यह घोषणा भी की जाने लगी है कि कोरोना महामारी नही ईश्वरीय अवतार है ।जो समाज मे संतुलन और अनुशासन स्थापित करने आये है