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Wednesday, November 21, 2012

राधा क्रष्ण

राधा अौर क्रष्ण प्रेम शब्द के प्रतीक है
प्रेम शब्द जब अध्यात्मिक स्तर तक पहुॅच जाता है
तब परमात्मा श्रीक्रष्ण तथा अात्मा राधा का 
  रुप धारण कर लेती है
राधा अौर श्रीक्रष्ण भगवान के प्रेम की गहराई त
था उसकी अलौकिक ऊॅचाई
संत, महंत ,सूर ,मीरा ने अपने अपने तरीके से अभिव्यक्त की है
पर उनके प्रेम की व्याख्या अाज भी अधूरी है
राधा अौर क्रष्ण के सम्बन्ध मे किसी प्रकार का अनुबंध नही है
अनुबंध तो सम्बन्ध को संकीर्ण बना देता है
अनुबंध से जुडे सम्बन्ध देहिक होते है
राधा अौर क्रष्ण का सम्बन्ध किसी प्रकार की परम्पराअो
रिति रिवाजो के मोहताज नही रहे है
वैवाहिक समारोह की किसी सामाजिक मान्यता से परे
राधा अौर क्रष्ण का प्रेम तो अात्मा की 
  परमात्मा से अासक्ति है
अौर सामाजिक बन्धनो से मुक्ति है विरक्ति है
यदि हम स्वयम को किसी कर्म काण्ड विधी-विधान से
परमात्मा तत्व से जोडते है
तो परमात्मा की सीमित क्रपा ही प्राप्त होती है
अात्मा को हम राधा के समान
किसी लौकिक मर्यादा अनुष्ठानो से परे
परमात्मा से जोडते है तो
परमात्म रूप क्रष्ण तत्व स्वयम
हमारी अात्मा की अोर खींचा चला अाता है
तब परमात्मा रूपी श्री क्रष्ण की
अानन्द की बाॅसुरी की ध्वनि हमारे अतिरिक्त
अौर किसी को सुनाई नही देती है