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Saturday, December 10, 2022

देवों के व्यक्तित्व में समाहित सन्देश

गणेश  जी  का  व्यक्तित्व  जहा  हमे  स्थिरता  का  सन्देश  देता  है  वहीं  कार्तिकेय  का  व्यक्तित्व  निरन्तर  सक्रियता  और  भ्रमण  शीलता  की  प्रेरणा  प्रदान  करता  है l गणेश  जी  हमे  बताते  है  कि  स्थिर  रहो  तो  इस  तरह  से  कि  आप सम्पूर्ण  व्यवस्था  के  केंद्र  बन  जाओ  l आप  के  बिना  कोई  व्यवस्था  गति  न  ले  पाये  l कार्तिकेय  बताते  कि  सक्रिय  रहो  तो  इस  तरह  से  रहो  कि  यह  पृथ्वी  ही  नहीं  सम्पूर्ण  ब्रह्माण्ड  आपके  पुरुषार्थ को  नमन  करे l दोनों  ही  भ्राता  शिव  और  शक्ति  के  अंश  है  शिव  जहा  लोक  कल्याण  के  देवता  है  वहीं  शक्ति  दुष्टता  का  दमन  करने  वाली  देवी  है l इसलिए  कार्तिकेय  जी  निरंतर  सक्रियता  दुष्टता  का  दमन  और  उसके  मद  का  हरण करती  है  , वहीं  गणेश  जी  की  स्थिरता  शांति  स्थापित  कर व्यक्ति  परिवार  समाज और  राष्ट्र  तथा  विश्व को  समृध्दि और अन्वेषण  की  ओर  ले  जाती  है 
                         व्यवहारिक  जगत  मे  बहुत  से  ऐसे  लोगों  को  जानते  है न तो स्थिर  होकर  कोई  भी  कार्य नहीं  कर  पाते  है  और  न  हो  सक्रिय रह  पाते  है  l ऐसे  व्यक्तियों  का  परिवार  समाज  मे  कोई  मूल्य  नहीं  होता l वही  समाज  मे  ऐसे  लोगों  को  भी  देखते  है  l स्थिर  और  दत्त  चित्त  होकर  प्रत्येक  कार्य करते  है  वे  व्यवस्था  के  केंद्र  होते  है l स्थिरता  और  जड़ता  मे  भेद  होता  है  l अस्थिरता  का  तात्पर्य  सक्रिय  नहीं  अपितु  अव्यवस्थित  दिशाहीनता  होती  है  इसलिये  दोनों  देव  य़ह  बताते  है  कि  जड़ता नहीं  स्थिरता   प्राप्त  करो l अस्थिरता  नहीं  सक्रियता  प्राप्त करो l

Monday, October 24, 2022

सूर्य ग्रहण


कर्मशील और  श्रमजीवी  व्यक्तियों  कोई  भी  ग्रहण  प्रभावित  नहीं  कर  सकता  है  l सतत  कर्म  में  रत व्यक्ति  को  कहा फ़ुरसत  मिल  पाती  है  कि  वह  सिर उठा  कर  सूर्य  चंद्रमा  आसमान  और  तारों  को  निहारे l यह  कार्य  उन  लोगों  का  है  जिनके  जीवन  मे  कोई  काम  नहीं  है  , मात्र  दूसरे  लोगों  की  निंदा  स्तुति  करते  रहना  उनका  कार्य  है  l देखने  वालों  को  तो  जमीन  पर  ही  सौंदर्य दिखाई  देता  है उसे  आसमान  देखने  की  आवश्यकता  नहीं  होती है l
    अकर्मण्य  और  आलसी  लोगों  को  चाहे  चंद्र  ग्रहण  हो  या सूर्य   ग्रहण  हो  या  कोई  भी  ग्रहण  न भी  हो  तो  भी  वह  दुष्प्रभावित होता  रहता  है  l उसे  सभी  प्रकार  के  ग्रह  चाहे  मंगल  हो  बुध हो  शनि  हो  या  शुक्र  हो  दुष्प्रभावित करते  रहते  है l

Sunday, April 24, 2022

मित्रता और शत्रुता

मित्र होते नही ,मित्र बनाये जाते है ।उसी प्रकार से दुश्मन होते नही ,दुश्मन पैदा किये जाते है। जितना कठिन है अच्छे मित्र बनाना। उतना ही आसान है दुश्मन तैयार करना । बुरे लोगो में जितनी जल्दी मित्रता हो जाती है । उतनी ही जल्दी वे दुश्मन भी बन जाते है अच्छे लोगो में परस्पर मित्रता बहुत कठिनाई से हो पाती है । 
         सज्जन लोगो मे मित्रता का प्रारम्भ परिचय से होता है। भली भांति परिचित होने के बाद ही वे परस्पर विश्वास कर पाते है । विश्वास सहयोग और सहयोग घनिष्ठता में कब बदल जाता है पता ही नही चलता ।  फिर भी वे एक दूसरे को मित्र बताते नही पर सभी लोगो जो उन्हें जानते है वे मित्र के रूप में ही जानते है ।
     मित्र और परिचित के बीच एक और कड़ी होती वो हितैषी के रूप में कहलाते है । कुछ लोग वास्तव में हितैषी होते है तो कुछ लोग हितैषी होने का दम्भ भरते है और मुफ्त की सलाह दे दे कर भृमित करने में निपुण होते है । 
    कहा जाता है मूर्ख मित्र से बेहतर है समझदार शत्रु का होना। यह  कहावत वर्तमान परिस्थितियों में बिल्कुल स्टीक बैठती है । क्योकि शत्रु अगर समझदार हो तो वह कितनी चोट पहुंचाना कब चोट पहुचाना सब कुछ दूरगामी दृष्टिकोण रख कर तय करता है , जबकि मूर्ख मित्र नजदीकी का लाभ उठा कर स्वयं सबसे बड़ा हितचिंतक बताते हुए अपरिमित क्षति पहुचा भी देता है और स्वीकार भी नही करता है कि उसने कितनी बड़ी गलती की है । 
      कुछ लोग दुश्मन पैदा करने की कला में इतने दक्ष होते है कि उनके पास दुश्मन पैदा करने के अनेक तरीके होते है।अकारण किसी व्यक्ति की आलोचना करना । किसी के कार्य मे अनावश्यक हस्तक्षेप करना । दूर दूर तक संबंध नही होने के बावजूद किसी व्यक्ति के चरित्र और आचरण के बारे में  टीका टिप्पणी करना , सदैव अप्रासंगिक बातो को लेकर चिंतित रहना ।इनमें से कुछ तरीके हो सकते है ऐसे लोगो का कोई दुश्मन नही होता । वे स्वयं अपने दुश्मन होते है फिर उन्हें नित्य  और निरन्तर नवीन दुश्मनो की तलाश रहती है 

Sunday, January 2, 2022

अभिमान

सौंदर्य का अभिमान महिला को चरित्रहीन और ज्ञान का अभिमान व्यक्ति को मूर्ख बनाता है । धन का अभिमान व्यक्ति को कृपण और बल का अभिमान  व्यक्ति को अत्याचारी बनाता है । पद का अभिमान अधिकारी को निकृष्ट और भ्रष्ट बनाता है और सिध्दि का अभिमान तपस्या का क्षरण करता है । 
      स्वाभिमान व्यक्ति को स्वालम्बी कर्मठ और ईमानदार बनाता है ।अभिमान समृध्दि सामर्थ्य और वैभव के पलों में पैदा होता है और जैसे ही व्यक्ति सामर्थ्य समृध्दि से विहीन होता है वह  अभिमान से शून्य हो जाता है ।अभिमान तब पैदा होता है ।अपात्र व्यक्ति को बिना परिश्रम के धन और पद की प्राप्ति होती है ।बिना तपस्या के सिध्दि की प्राप्ति होती है ।बिना गुरु के ज्ञान की प्राप्ति होती है ।
             व्यक्ति में अभिमान की तब उत्पत्ति होती है । जब अनायास ही उसे सफलता प्राप्त होती है ।   पात्रता होने पर व्यक्ति को जब धन वैभव पद सिध्दियां प्राप्त होती है ।तब वह अभिमान से शून्य होकर उनका सदुपयोग करता है । जब महिला में आंतरिक गुणों का अभाव होता है ।तब वह अपने तनिक सौंदर्य को झूठी प्रशंसा के कारण अत्यधिक मान लेती है और झूठे प्रशंसको के प्रति आकृष्ट भी हो जाती है ।
            जब व्यक्ति पद के अभिमान से ग्रस्त हो जाता है तो वह उसकी झूठी प्रशंसा करने वाले व्यक्तियों से प्रभावित हो जाता है , इसका लाभ उठाकर लोग उस व्यक्ति की क्षमता का अपने हित उपयोग करने लगते है । ऐसे व्यक्ति के समस्त निर्णय दूसरे लोगो की धारणाओं पर आधारित होते है । स्वयम का विवेक शून्य हो जाता है 
             स्वाभिमान का जनक संघर्ष और जननी विपदा है । स्वाभिमानी व्यक्ति कितने ही अभावो में घिरा हो वह अपने ईमान की कीमत पर कभी समझौता नही करता । अभिमानी व्यक्ति स्वाभिमान व्यक्ति को झुकाने के लिए सदैव प्रयत्नरत रहते है। स्वाभिमान चरित्र का निर्माता है ।वही अभिमान चारित्रिक पतन का कारक ।इसलिए अभिमानी नही स्वाभिमानी बनो