लोग कहते है
संस्कृत और संस्कृति मर रही है
संस्कृत और संस्कृति के स्थान पर
पाश्चात्य भाषा और संस्करहीनता
विद्रूप रूप धर रही है
परन्तु संस्कृत और संस्कृति कभी मरा
नही करती है
संस्कृत जीवित है
मंत्रो के उच्चारण में ।
श्लोको में हिंदी की व्याकरण में
संस्कृत जीवित है
हिंदी के संधि विच्छेद में
अलंकार में बिम्ब में प्रतिबिम्ब में
संस्कृत से जुड़कर
हिंदी समृध्द हो जाती है
विज्ञान में जब हिंदी में
तकनीकी शब्दावलिया नही मिली पाती है
तो संस्कृत याद आती है
संस्कति वहा याद आती है
जब संयुक्त परिवार की परम्पराए समाप्त
हो जाती है और विचारों और संस्कारों में
लघुता आ जाती है
संस्कृति वहा याद आती है
जब विदेशो में बसे भारतीय की आँख
अपनी मिट्टी की याद से भींगो जाती है
इसलिये संस्कृत और संस्कृति
कभी मरा नही करते है
वे सदैव अपनो परम्पराओ रूढ़ियों
पुरातन और सनातन ज्ञान की धाराओं में
बहा करते है