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Monday, March 22, 2021

सौंदर्य और सौरभ

गुलाब और जीवनबाहरी सौंदर्य के साथ व्यक्ति में आंतरिक सौन्दर्य भी हो तो वह गुलाब की तरह महकता है । विचारो की सुगन्ध जब चारो और फैलती है तो व्यक्तित्व विशालता पाता है । जैसे कोई बरगद और वट वृक्ष तले राही विश्राम पाता है । कोई थका हुआ खगदल डालियो से खेलता , तिंनको को चुनता  घोसला बनाता आश्रय पाता है । व्यक्तित्व की सुरभि पाकर जो भी किसी के पास आता है । निकट आकर बैठता है बैठा रह जाता है । यह जरूरी नही कि जो बाहर से सुन्दर हो वह भीतर से उतना ही सुरभित हो । भीतर का सौंदर्य तो तब सामने आता है जब कोई व्यक्ति मुस्कराता है । मधुर बोलो से कोई स्वर गुनगुनाता है । चित्रकला संगीत नृत्य और कविता,लेखन सृजन के माध्यम से आनंद

परिवेश में बिखराता है| आंतरिक सौदर्य का महत्व हमे तब समझ मे आता है जब कोई इंसान लगातार हमारे संपर्क में रहता है और अचानक हमे छोड़ कर सदा के लिए बिछुड़ जाता  है । इस दुनिया को छोड़ कर चला जाता है। तब रह जाती है उसकी वैचारिकता चरित्र और कृतित्व की खुशबू  जिसकी स्मृति मात्र हमे सुरभित कर देती है 
     सुंदरता वस्तु या व्यक्ति में नही होती ।देखने वाले की दृष्टि में होती है । जिसे हम चाहते है भले ही वह औसत चेहरे का हो हमे विश्व का सम्पूर्ण सौंदर्य उसमे दिखाई देता है । जिसे हम न चाहे वह चाहे कितना भी खूबसूरत हो हमे बिल्कुल सुहाता नही  निरन्तर आंखों में खटकता रहता है।
दुर्लभ और खुरदरा पाषाण का पिण्ड भी अमूल्य हो जाता है और चिकना संगमरमर के पत्थर भी शिल्पकार की राह तकता रह जाता है । हमारा देखने का दृष्टिकोण हमारे वैचारिकता को नवीन आयाम देता है । हमारी कल्पनात्मकता सृजनात्मकता का स्त्रोत होती है । इसलिए हमें वैचारिक दृष्टि सदा समृध्द रहना चाहिये । हम जिन लोगो के बीच मे रहे भले ही आर्थिक रूप से अधिक सम्पन्न न हो ज्ञान और अनुभव और प्रतिभा की दृष्टि से वे हमसे अधिक श्रेष्ठ हो