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Saturday, January 30, 2016

जन्म मरण और महानता

जन्म मरण जीवन का शाश्वत सत्य है
यह घटना हर व्यक्ति के जीवन में घटित होती है
किसी व्यक्ति का जन्म कहा हो ?
कैसे हो?
 यह कोई व्यक्ति स्वयं निर्धारित नहीं कर सकता 
परन्तु जन्म लेने के बाद 
व्यक्ति अपने शुभ और महान कर्मो से 
अपने जन्म को सार्थक बना सकता है 
असल में ऐसे सार्थक जीवन के जन्म को ही याद रखा जाता है ऐसे व्यक्तियों जन्म दिवस को उत्सव के रूप इसलिए नहीं मनाया जाता कि
वह विशेष कुल गौत्र में पैदा हुआ
 अपितु इसलिए मनाया जाता है कि 
वह कितनी विषम परिस्थितियों मे जीकर भी 
उसने विशेष और सराहनीय 
और समाज उपयोगी कार्य किये 
इसलिये महान व्यक्ति अपना जन्मदिवस 
स्वयं नहीं मनाते
 समाज याद करता है ठीक उसी प्रकार से मरण 
सुनिश्चित होने पर भी
 व्यक्ति पवित्र उद्देश्य के लिए 
जीवन का बलिदान देता है 
तो उसे शहीद कहा जाता है 
परन्तु जितना महत्वपूर्ण जीवन का बलिदान होता है उतना ही महत्वपूर्ण 
समाज और देश के लिए 
तिल तिल कर जीना होता है
 महान व्यक्तियो के जीवित रहते
 उनकी विशेषताओ से समाज परिचित नहीं हो पाता है लेकिन पूरा जीवन जी लेने के बाद 
उनके द्वारा जिन महान विचारो और प्रकल्पों का बीजारोपण किया गया था 
अंकुरण होने पर समाज ऐसे व्यक्तियो को 
महापुरुष के रूप में प्रतिष्ठित करता है

Wednesday, January 27, 2016

एक वृक्ष सौ पुत्र के समान क्यों?

शास्त्रो में वृक्ष को सौ पुत्रो के समान कहा गया है
 ऐसा क्यों? 
ऐसा इसलिए की पुत्र प्राप्ति के लिए 
विवाह करने के पश्चात 
दाम्पत्य जीवन का पालन करना पड़ता है 
उसकी शिक्षा दीक्षा की जिम्मेदारिया उठानी पड़ती है उसके बावजूद वह योग्य और समर्थ बन गया तो 
वह बुढ़ापे में साथ छोड़ कर 
आजीविका कमाने हेतु अन्यत्र चला जाता है 
साथ छोड़ देता है 
पिता वृद्धावस्था में पुत्र के सुख से
 वंचित रह जाता है यह तो तब होता है
 जब पुत्र संस्कारित हो 
परन्तु पुत्र अयोग्य निकल जाए तो
 कुसंस्कारों से युक्त व्यसनों से ग्रस्त होकर 
पिता को जीवन भर कष्ट देता रहता है 
 पुत्र पराश्रयी होकर
 पिता और परिवार पर भार बन जाता है 
जबकि वृक्ष को अंकुरित करने के लिए 
मात्र तनिक नियमित जल थोड़ा खाद ही 
कुछ दिनों के लिए देना पड़ता है 
बड़े होने पर वृक्ष कही नहीं जाता 
फल फूल छाया देता रहता है 
जहा भी रहता है 
वातावरण में प्राण वायु प्रवाहित करता रहता है 
कितना भारी तूफान आये जब तक वह खड़ा है
 उसके आस पास निर्मित मकान सुरक्षित रहते है
 और सुखी लकडिया गिरा कर 
शीत में ऊष्णता देता है 
शीतल छाया देकर ग्रीष्म में 
शीतलता प्रदान करता है 
वृक्ष जिस मकान पास रहता है 
उस मकान के सारे वास्तु दोष समाप्त हो जाते है मकान प्राकृतिक सौंदर्य से आच्छादित हो जाता है

Sunday, January 17, 2016

आक्रोश एवं क्रोध

आक्रोश वैचारिक विरोध  और अन्याय 
शोषण के कारण परिलक्षित होता है 
क्रोध व्यक्तिगत स्वार्थ पर
  आघात होने कारण प्रगट होता है 
दीर्घ कालीन आक्रोश क्रान्ति और परिवर्तन का 
कारक होता है
असहमति की उग्रता मानसिक हिंसा का रूप
 धारण करती  है
 तब क्रोध में परिणित हो जाती  है 
क्रोध जब शाब्दिक हिंसा का रूप धारण 
तब विवाद और कलह में परिणित होता है 
क्रोध जब दीर्घ काल तक बना रहता है तो वह शारीरिक आक्रमण के  रूप में सामने आता है 
हिंसा में परिवर्तित हो जाता है 
व्यक्ति जब क्रोधित होता है 
तो वह भीतर में पल रही 
नकारात्मक ऊर्जा का मात्र
 २०प्रतिशत ही क्रोध के कारण ही प्रगट हो पाती है 
इसका आशय यह है करने वाला व्यक्ति क्रोध अभिव्यक्त करने के पूर्व
 अपने भीतर भीषण नकारात्मक ऊर्जा को झेलता है 
जो अभिव्यक्त होने वाले क्रोध से 
५ गुना अधिक होती है 
भीतर की नकारात्मक ऊर्जा व्यक्ति के
 हारमोन को विपरीत रूप से प्रभावित करती है 
व्यक्ति धीरे धीरे रोग ग्रस्त होने लगता है
 शारीरिक दौर्बल्य को प्राप्त कर हीनता की 
भावना से ग्रस्त हो जाता है
अध्यययन में सामने आया है 
की शारीरिक रूप से पुष्ट व्यक्ति 
क्रोध की प्रवृत्ति अल्प होती है 
क्रोध के एक स्वाभाविक प्रक्रिया है 
परन्तु क्रोध को सृजनात्मक दिशा दी जाए 
तो व्यक्ति में अपरिमित क्षमताये उदित हो जाती है

Wednesday, January 13, 2016

सौंदर्य बोध और अश्लीलता

सुंदरता देह में नहीं व्यक्तित्व में होती है
सुंदरता उसे दिखाई देती है 
जिसे सौंदर्य का बोध होता है 
सौंदर्य के कई मानदंड हो सकते है 
कलात्मक सौंदर्य
गुणात्मक सौंदर्य 
भावात्मक सौंदर्य और दैहिक सौंदर्य
सौंदर्य बोध से विहीन व्यक्ति की 
दृष्टि मात्र दैहिक सौंदर्य को ही देख पाती है 
जहा सौंदर्य की दृष्टि दैहिक होती है
अश्लीलता वही से आरम्भ होती है 
जब तक हम अपने सौंदर्य बोध  को 
समुन्नत नहीं कर पाऐगे 
स्वयं को अश्लीलता के प्रदूषण से 
मुक्त नहीं कर पायेगे 
सौंदर्य बोध से दृष्टि सम्पन्न व्यक्ति 
जब सौंदर्य को कलात्मक दृष्टि से देखता है
 तो वह रचनात्मक प्रवृत्ति की और अग्रसर होता है कभी उसकी रचनात्मक वृत्ति 
चित्रकार के रूप में प्रकट होती है
 तो कभी गीत और संगीत के रूप में
 अभिव्यक्त होती है 
भावात्मक सौंदर्य बोध व्यक्ति को 
भक्ति और उपासना मार्ग की और अग्रसर करता है कभी वह नारी के सौंदर्य में प्रेयसी के रूप में 
राधा जी के दर्शन करता है 
तो कभी माँ के रूप में जगदम्बा से 
साक्षात्कार करता है 
बालसुलभ सौंदर्य में श्रीकृष्ण से 
स्वयं को निकट पाता है

Tuesday, January 12, 2016

संकल्प सेवा और विवेकानंद


संकल्प में बल होता है |
संकल्प में साहस होता है|
संकल्प के दम पर मधुमास आस पास होता है | 
संकल्प में दिशा है |
सुधर जाती हर दशा है
संकल्प के भीतर कितने लक्ष्य है
|
हर लक्ष्य के भीतर परिश्रम है
धैर्य रचा बसा है |
संकल्प वह दीप है
|
जो निर्विकल्प निर्विकार है
संकल्प से भरे हुए हृदय में रहे शुध्द विचार है
संकल्प से संसार ने भागीरथी को पाया है
संकल्प के सहारे महापुरुषों ने की मानवता की सेवा
हर इंसान के भीतर नारायण को विवेकानंद ने पाया है
संकल्प गीता है उपनिषद है वेद की ऋचा है
संकल्प से ब्रह्मा ने रची है सृष्टि
बृम्हाण्ड अनन्त प्रकाश वर्षो को रचा है
संकल्प जिसने पाया है
सुख चैन उसने त्यागा है
समस्त कामनाओ को छोड़
साधक वैराग्य और भक्ति की और भागा है
इसलिए संकल्पों की शिखा से  ही
मुश्किल और धुंधला अक्स भी दिखा है
संकल्पों से भरा इंसान कितना भी हो जाए मजबूर 

किसी भी परिस्थिति में नहीं बिका है 

Monday, January 11, 2016

अर्ध्द सत्यवक्ता

वैसे तो अधिकतर लोग झूठ बोलने के 
अभ्यस्त होते है 
झूठ बोलने के तरह तरह के बहाने ढूंढते है 
परन्तु इस झूठ आंधी में 
कुछ सत्यवादी लोग भी विध्यमान है
ऐसे कुछ सत्यवादी लोगो में भी 
ऐसे लोगो की संख्या ज्यादा  है 
जो जिनका सत्य अर्ध सत्य होता है 
अर्ध सत्य वह कला जिसकी उत्पत्ति 
महाभारत काल में युध्द के दौरान 
सत्यवादी महाराज युध्दिष्ठर ने की थी 
जब से महाराज युध्दिष्ठर ने
 इस विधा का सृजन किया 
तब से तथाकथित सत्यवादी 
अर्ध्द सत्य ही बोलने में लगा हुआ है 
अर्ध्द सत्य बोलने का लाभ यह होता है 
सुनने वाले के विवेक पर छोड़ दिया जाता है कि 
वह वक्तव्य का क्या आशय लगाए 
सही आशय श्रोता समझ जाए तो अर्ध्द सत्य वक्ता 
को सत्य बोलने का पुण्य प्राप्त होता है 
पर ऐसा होता बहुत कम है 
जब द्रोणाचार्य जैसे विद्वान और योध्दा पुरुष 
अर्ध्द सत्य की तह तक नहीं पहुँच पाये तो
 सामान्य जीव की क्या हैसियत 
मूल रूप से जो व्यक्ति झूठ बोलने के दोष से बचना 
चाहता है वह अर्ध्द सत्य का आश्रय लेता है 
कभी कभी अर्ध्द सत्य इतना खतरनाक होता है 
सुनने वाला व्यक्ति संशय ग्रस्त होकर मरते दम तक 
वास्तविक तथ्य नहीं पहुंच पाता है 
और यदि संयोगवश वह वास्तविक तथ्य तक पहुँच भी 
जाए तो तब तक इतना विलम्ब हो जाता है 
कि ही ज्ञात तथ्य अनुपयोगी हो जाता है 
और अर्ध्द सत्यवक्ता का हेतुक पूरा हो जाता है 
दिनों दिन अर्ध्द सत्य की सफलता से अभिभूत हो 
आजकल लोगो ने झूठ बोलने के बजाय 
अर्ध्द सत्य का आश्रय लेना प्रारम्भ कर दिया है 
और हर व्यक्ति सत्यवादी युध्दिष्ठर का 
अनुसरण करने की और अग्रसर है

Wednesday, January 6, 2016

भीतरी शान्ति

जो व्यक्ति भीतर से  शांत होता होता है 
वह शान्ति बाहर नहीं ढूँढता है 
बाहर शान्ति ढूँढने के लिए
 मंदिर तीर्थ स्थलो पर नहीं भटकता 
अपने भीतर की शान्ति में डूबा रहता है
 भीतर की शान्ति में रहते 
आत्मतत्व से जुड़ा रहता है 
जो व्यक्ति भीतर से जितना अशांत होता है 
वह शान्ति हेतु बाहरी साधनो को ढूढता है 
शान्ति के बाहरी कृत्रिम साधनो से 
उसे क्षणिक शान्ति ही मिल पाती है 
चिर स्थाई शान्ति प्राप्त करना 
हर किसी के लिए संभव है 
भीतर से शांत
 हर व्यक्ति नहीं रह सकता 
भीतर से शांत वही व्यक्ति रह सकता है 
जिसने धर्म को धारण किया हो 
मन कर्म वचन से एक हो 
वह चाहे कितनी भी प्रतिकूलता में हो 
विचलित नहीं होता है 
ऐसे व्यक्ति को ध्यान मग्न होने में
 समय नहीं लगता क्योकि भीतर से शांत होने से उसका चित्त  एकदम से स्थिर हो जाता है
ईश्वरीय शक्तियों का सामीप्य उसे प्राप्त होता है 
अनुभूतियों की प्रखरता का स्तर उच्च होने से 
उससे नकारात्मक  या सकारात्मक दोनों प्रवृत्तियाँ 
छुप नहीं सकती