महाभारत कथा मे उपेक्षित पात्रो मे युधिष्ठर माना जा सकता है
क्योकि युधिष्ठर ने वैसा पराक्रम नही दिखाया जैसा भीम एवम अर्जुन ने दिखाया था ,
किन्तु युधिष्ठर ने युध्द मे जो स्थिरता दिखाई वह उनकी भूमिका को सार्थक बनाती है
युधिष्ठर ने उस समय भी धैर्य नही खोया जब उनके पिता पांडु की म्रत्यु हो गई थी
और उनकी दुसरी माता माद्री ने प्राण त्याग दिये थे
पांडवो के ज्येष्ठ भ्राता होने के कारण तथा परिवार मे एक मात्र वयस्क पुरुष होने के कारण यदि युधिष्ठर विचलित हो जाते
तो उनकी माता कुन्ति की मानसिकता पर विपरित प्रभाव पडता तथा वह अपने छोटे पुत्रो का भरण पोषण नही कर पाती परिणामस्वरुप अर्जुन एवम भीम जैसी प्रतिभाये काल के कुचक्र की शिकार हो जाती
युधिष्ठर की मति की स्थिरता का एवम सुयोग्य नियंत्रण का ही यह फल था
कि भीम एवम अर्जुन युध्द के समय आवेश एवम मूर्खता के कारण असमय वीरगती प्राप्त होने से बचे रहे
युधिष्ठर शब्द का अर्थ होता है युद्ध +स्थिर अर्थात जो व्यक्ति जैसी विपरीत परिस्थिति में अपने मन मस्तिष्क को स्थिर रखे
महाभारत काल में जितने भी योध्दा थे उन सभी व्यक्तियों में विपरीत परिस्थितियों में स्थिर मति केवल भगवान् कृष्ण एवम युधिष्ठर को ही प्राप्त थी
युधिष्ठिर एक कुशल प्रबंधक थे जिन्होंने अपने सभी अनुज भ्राताओं को भिन्न शास्त्र विद्याओं में पारंगत होने हेतु दिशाए प्रदान की
युधिष्ठिर एक कुशल प्रबंधक थे जिन्होंने अपने सभी अनुज भ्राताओं को भिन्न शास्त्र विद्याओं में पारंगत होने हेतु दिशाए प्रदान की
Very Nice.
ReplyDeleteMahabharat ke anya patro par bhi Chintan de.