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Thursday, October 18, 2012

वृत्त ,वृत्ति एवं वृत्तांत


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व्रत का व्रत्तियो से गहरा सम्बन्ध है
यदि हम दुष्प्रव्रत्तियो का शमन न कर पाये तो 
व्रत करना निरर्थक है
वर्तमान मे नवरात्री के नौ दिवस हमे 
अपनी दुष्प्रव्रत्तियो का शमन करने
तथा इन्द्रिय जनित समस्त कामनाओं ,वासनाओं  का
दमन करने की प्रेरणा देते है
हम यह देखते है कि नवरात्री के अवसर पर 
प्राय महिलाये,और पुरुष
निराहार व्रत का पालन करते है 
तथा दुर्गा सप्तशती का पाठ करते है
क्या यह व्रत उपासना कि परिपूर्णता है ?
सभी साधक तथा,उपासना से जुड़े लोग 
यह  जानते है कि पांच  कर्मेन्द्रिया और  
पांच ज्ञानेन्द्रिया प्रत्येक मानव को प्राप्त होती है
निराहार व्रत से तो मात्र जिव्हा इन्द्री से जुड़ी  
स्वाद तथा उदर से जुड़ी भूख को
ही शमन करने का ही प्रयास होता है
जिव्हा से जुडी वाक प्रव्रत्ति का शमन नही होता
यदि हम वाचाल प्रव्रत्ति को कुछ समय के लिये विराम दे सके तो
हमे कितनी आत्म शांती प्राप्त हो सकती है
यह केवल अनुभूति की विषय वस्तु है
जिसे केवल सच्चा साधक ही अनुभव कर सकता है
मौन साधना सर्वोच्च कोटि की साधना मानी जाती है
साधक और  साध्य के मध्य साधना के उच्च स्तर पर 
मौन सम्वाद होता है
व्यक्ति के मन को ही नही ,परिवार को ,समाज को 
सम्पूर्ण विश्व को शांती की कामना वेद मंत्र 
शांति पाठ मे की गई है
जो साधना व्यक्ति को आत्म शांती न दे सके
परिवार ,समाज ,देश ,विश्व मे शांती स्थापित न कर सके
वह सच्ची साधना नही हो सकती
शांती का भाव कही अन्यत्र से आयातित नही किया जा सकता
वह तो भीतर से से बाहर की और विस्तारित होता जाता है
परन्तु कितने साधक नवरात्री मे मौन व्रत धारण करते है
यह चिन्तन का विषय होना चाहिये
साधना के क्षणो मे  हम स्वयम को अन्तर्मुखी कर पाये
स्वयम को समझ पाये तो ईश्वरीय तत्व को
 समझने की स्थिति मे पहुँच  पायेगे
अन्यथा परम्परा का निर्वाह करते हुये देह से जुड़ी 
देवी की साधना मे रत हो
एक अन्तहीन और  निरर्थक थका देने वाली व्रत 
एवम व्रतान्तो से जुड़ी यात्रा ही हमारी नियती बन जायेगी
http://www.ahmedabadcity.com/tourismtest/images/navratri2.JPG

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