Total Pageviews

Friday, October 5, 2012

क्षमता का आकलन और कार्य में सिध्दी

व्यक्ति जीवन मे न तो स्वयम का आकलन कर पाता है
और नही परिस्थितियो का आकलन कर पाता है
जिसके कारण पूर्वानुमान सारे ध्वस्त हो जाते है
परिणामस्वरूप हमे जीवन मे असफलता हाथ लगती है
जीवन प्रबन्धन के विषय मे समुचित आकलन
उचित अनुमान आवश्यक  है
पवन पुत्र हनुमान का व्यक्तित्व इस दिशा मे हमारे सम्मुख
आदर्श प्रस्तुत करता है
रामायण मे यह प्रसंग महत्वपूर्ण है कि
सीता की खोज मे समुद्र के किनारे ॠक्षराज जाम्बवंत के द्वारा
हनुमान जी को उनमे निहीत शक्ति का आभास  कराया जाता है
तब हनुमान जी को शक्ति का आभास होता है
अपनी वास्तविक शक्ति का आभास होने पर भी
हनुमान जी समुद्र को लांघने के लिये तत्क्षण तत्पर नही होते है
अपितु सिंधु तट पर खडे रह कर समुद्र की चौडाई का 
ठीक ठीक आकलन  करते है
सोचते है तत्पश्चात अपनी क्षमता का आकलन  करते है
अनुमान लगाते है कि समुद्र लांघना  का कार्य उनकी क्षमता के अनुरुप है
या नही
समुचित आकलन  के पश्चात ही वे समुद्र लाघने  हेतु अग्रसर होते है
जिसमे कितनी बाधाये उपस्थित होने पर भी वे सफलता पूर्वक
समुद्र को पार कर लंका मे पहुचते ही नही
बल्कि सौपे गये कार्य का निष्पादन कर लंका दहन कर वापस लौट आते है
कहने का आशय यह है कि व्यक्ति को किसी की झूठी प्रशंसा से प्रसन्न न हो
अपनी क्षमता का समुचित मूल्यांकन कर उत्तरदायित्व का वहन करना चाहिये
अन्यथा असफलता ही हाथ लगती है

1 comment: