शिष्टाचार और आत्मीयता दोनों में बहुत भिन्नता है
आत्मीयता में दिखावा नहीं अपनापन होता है
जबकि शिष्टाचार कृत्रिम आवरण को ओढे मानवीय आचरण होता है
शिष्टाचार में औपचारिकताये अधिक होती है
संबोधन भले ही सम्मान जनक हो
पर दिलो में दूरिया दर्शाते है
वर्तमान में रिश्तो में आत्मीयता का स्थान
औपचारिकताओं ने ले लिया है
व्यवहार कुशलता का छद्म आवरण व्यक्ति की कुटिलता को छुपा लेता है
पर स्वभाव में स्वाभाविक सहजता सरलता
आत्मीयता को छुपा नहीं सकती
वह तो कभी गोकुल की गोपियों की तरह
तो कन्हैया की मैया यशोदा की तरह
भावनाओं का मीठी मिश्री और मख्खन की अनुभूति करा ही देती है
जब नदियों पर बढे -बढे घाट बने
नदियों से हमारे आत्मीय सम्बन्ध समाप्त हो चुके है
घाट पर कर्म काण्ड अनुष्ठान हो सकते है
परन्तु नदी के कल कल बहते जल का ममत्व तो
निर्मल तटों से ही प्राप्त हो सकता है
हमें शिष्टाचार के घाटो से पुन आत्मीयता के तटों की और लौटना होगा
तभी हम रिश्तो के भीतर नदी के कल कल प्रवाह की तरह चलते और पलते
दुःख और सुख की अनुभूति कर पायेगे
सही कह रहे है आप !
ReplyDeleteबुलेटिन 'सलिल' रखिए, बिन 'सलिल' सब सून आज की ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
lekh pdkr aanad hua sistachaar ke saath ydi aatmiyata ko ek kar diya jaye to rito mai ghnistta aur adhik ho jaye
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