आज के युग में सबसे अधिक कोई शब्द प्रचलित हैं तो शायद वह शब्द गरीब होना चाहिये ,
आज - कल लोगों को इससे बहुत लगाव है खासकर के राजनैतिक दलों का तो अस्तित्व ही इस एक शब्द पर खडा है कुछ एक दलों ने तो इसी के सहारे सत्ता काे बरकरार रखा गरीब और गरीबी है तो सत्ता है यह मंत्र उन्हे कण्ढस्थ है तो गरीबी तो हटनी ही थी ?
खैर इसके लिये केवल राजनैतिक दलों को पुरा दोष देना भी उचित नही
क्योकि व्यक्ति गरीब पैदा अवश्य हो सकता है पर गरीबी में जीना और मरना यह उसके हाथों में हैं
यदि यहा आप गरीबी का आशय आर्थिक दरिद्रता से ही समझ रहे है तो में आपको स्पष्ट कर दूं की यह बहुत संकुचित अर्थ है और इसका अर्थ तो बहुत व्यापक हे
जैसे
मानसिक दरिद्रता
शारिरक दरिद्रता
और सबका परिचित आर्थिक दरिद्रता
आर्थिक गरीबी पाप नहीं है परन्तु मानसिक गरीबी होना बहुत बडा अपराध है यही वह गरीबी है जो व्यक्ति को आजीवन राजनैतिक दलों की निर्भरता और आर्थिक तंगी का मोहताज बनाये रखती है वरना किस की हिम्मत है कि वह मानसिक्ता सम्पन्न व्यक्ति को मुर्ख बना अपनी सत्ता की रोटिया सेंक सके ?
हमारे देश में तो आर्थिक दरिद्रता का कभी उपहास नहीं बनाया गया एसे कई व्यक्ति हुये जो आर्थिक रूप से भलें ही गरीब रहे हो पर उनकी मानसिक सम्पन्नता ने उन्हे लोकपूजक बना दिया आप स्वयं उन नामों को भलीभातीं जानते है
दुसरी शारिरिक गरीबी में यहा यह स्पष्ट कर दूं की में विकलागंता को शारिरिक गरीबी की श्रेणी में नही रखता क्योकि विकलांगता व्यक्ति की गति कम कर सकती हे पर उसे रोक नही सकती एसे भी कई उदाहरण मिल जायेगे जहॉ शारिरिक चुनौति के बावजुद लोगों ने असम्भव कार्य कर दिखाये है
अत: शारिरिक गरीबी वह है जो व्यक्ति को ईश्वर प्रद्त इस अनमोल सम्पदा के प्रति उदासीन रवैया रखने के परिणाम स्वरूप द्रष्टिगत होता है खैर विषय बहुत लम्बा है और समय कम ..............
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Monday, May 11, 2015
गरीबी ??
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सुन्दर और सामयिक
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