त्रिदेव ब्रह्मा विष्णु महेश के कार्यो में मूलभूत अंतर क्या है
सामान्य रूप से कहा जाता है ब्रह्मा सृष्टि का निर्माण करते है
विष्णु जी पालन तथा शिव जी संहार करते है
किन्तु यह उनके कार्यो का अधूरा परिचय है
किन्तु यह उनके कार्यो का अधूरा परिचय है
वैसे ब्रह्मा जी के कार्यो परिचय के सम्बन्ध यह कहना महत्वपूर्ण होगा की शब्द को ब्रह्म की संज्ञा दी गई है
ब्रहमा जी ने समय समय पर राक्षसों को वचन देकर वरदान दिए है
इसलिए उनको वचन का देवता भी कहा जा सकता है
बोलचाल की भाषा में किसी महत्वपूर्ण वाक्य को ब्रह्म वाक्य कहा जाता है
अर्थात वह वाक्य जो सत्य हो अटल हो तथा फलीभूत हो
शब्द में ब्रहम होने का मतलब यह है की जो भी हम बोलते है वह शब्द सुनने वाले पर उच्चारित शब्द के अनुसार प्रतिक्रिया करता है
चाहे वह सकारात्मक प्रतिक्रिया करे या नकारात्मक प्रतिक्रिया करे यह उस शब्द की प्रकृति पर निर्भर करता है
इसलिए शब्द में ही ब्रह्म अर्थात ब्रह्मा जी का वास होता है
दुसरे स्थान पर विष्णु का सम्बन्ध कर्म से होता है
दुसरे स्थान पर विष्णु का सम्बन्ध कर्म से होता है
इसका तात्पर्य यह है की जब तक सृष्टि है तब तक जीवन है
कर्म के बिना जीवन जड़ है कर्म ही जीवन में चेतनता प्रदान करता है
चेतना कई प्रकार की हो सकती है जहा चेतना है वहा कर्म है जहा कर्म है फल है
सत्कर्म में ईश्वर का अर्थात विष्णु भगवान् का वास होता है
इसलिए भगवान् विष्णु के सभी अवतारों ने कर्म की आराधना पर बल दिया है
कर्म शील व्यक्ति के साथ भगवान् विष्णु का आशीर्वाद होता है
भगवान शिव सहिष्णुता तथा उत्तरदायित्व,प्रबंधन के देवता है
भगवान शिव सहिष्णुता तथा उत्तरदायित्व,प्रबंधन के देवता है
भगवान् शिव ने माता गंगा के अतिरिक्त ऐसे जीव जन्तुओ तथा भूत प्रेत पिशाचो पशुओ के प्रति भी उत्तरदायित्व का निर्वहन किया जिन्हें सभी देवगण ने त्यक्त कर रखा था
समस्त राक्षसों के भी आराध्य देव शिव रहे है
जहा तक सहिष्णुता का बात की जाय शिव जी जैसा सहिष्णु देव मिलना असम्भव है
जहा तक सहिष्णुता का बात की जाय शिव जी जैसा सहिष्णु देव मिलना असम्भव है
सामान्य रूप से जिस व्यक्ति को कही सम्मान नहीं मिलता उसे उसके ससुराल में तो सम्मान तो मिलता ही है
किन्तु शिव जी को उनके ससुराल में सार्वजनिक रूप से ससुर द्वारा अपमानित किया गया फिर भी वे मौन रहे
अंत में उनकी पत्नी माता सती को क्रोध आने पर जब हवन कुण्ड माता सती ने आत्मदाह किया
किन्तु शिव जी को उनके ससुराल में सार्वजनिक रूप से ससुर द्वारा अपमानित किया गया फिर भी वे मौन रहे
अंत में उनकी पत्नी माता सती को क्रोध आने पर जब हवन कुण्ड माता सती ने आत्मदाह किया
तब जाकर शिव जी धैर्य टूटा इसलिए धैर्य सहिष्णुता एवम दायित्व का पाठ भगवान् शिव से हमें ग्रहण करना चाहिए
शिव जी प्रबंधन में अद्वितीय थे इसलिए भिन्न भिन्न प्रकार के प्राणी उनके साथ होने के बावजूद उन्होंने सभी के लिए गणा अध्यक्षों की नियुक्ति कर रखी थी
और स्वयं तपस्या रत रहते थे
आशय यह है की वर्तमान जीवन में कोई व्यक्ति शब्द को सिध्द कर हर वचन का मुल्य समझता है तथा वाणी के माध्यम से शब्द को मुख से बहार निकालता है
उसकी जिह्वा एवम कंठ में सरस्वती का वास होता है अर्थात शब्द ब्रह्म की अनुगामिनी वाणी स्वरूपा सरस्वती होती है
कोई यदि जीवन को सत्कर्मो को करते हुए सृजनरत रहता है तो उसे लक्ष्मी स्वरूपा लक्ष्मी की प्राप्त होती है
लक्ष्मी के बल पर पुन नव कर्मो में रत होता जाता है तो लक्ष्मी बहु गुणित होती जाती है
इसलिए कर्म के देवता विष्णु की अनुगामिनी लक्ष्मी माता को कहा जाता है
जो व्यक्ति सहिष्णुता पूर्वक तथा कुशलता पूर्वक अपने दायित्वों का निर्वहन कुशल प्रबंधन के माध्यम से भलीभांति करता है वह अद्भुत शक्ति का अनुभव करता है
उसे असीम बहु आयामी शक्तिया प्राप्त होती है वह शिव में समाहित होकर शक्ति संपन्न हो जाता है
Kya baat hai is Chintan se Vyakti ko apne jivan ke samast chrano mai Bhagwan Sri Brhma,Vishnu,aur Mahesh, ki bhati apne Dayitvo ka palan karna chahiye aur Falswarup Maa Sarswati,Lakshmi,aur ma Shakti ka Aashis ko prapt karna chahiye.
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