कोई व्यक्ति घनिष्ठ हो और अति विशिष्ट हो ।
उस व्यक्ति से मिलने का क्या तरीका हो सकता है ।
इसका बेहतरीन उदाहरण भगवान श्रीकृष्ण एवम सुदामा मिलन का प्रसंग है ।
सुदामा जो श्रीकृष्ण के बाल सखा थे ने फिर भी ने द्वार पालों से जाकर कहा कि वे श्रीकृष्ण जो मिलना चाहते है और उनका नाम सुदामा है ।
द्वार पाल उनकी दीन-हीन अवस्था देख कर स्तब्ध रहे ।
किन्तु सुदामा अनुमति मिलने तक वे प्रतिक्षा करते रहे ।
लम्बे समय की प्रतिक्षा के पश्चात वे श्रीकृष्ण के द्वार पर आने पर ही महल के भीतर गये ।
सुदामा की इसी शिष्टतापूर्ण व्यवहार एवम मित्रता का परिणाम था कि भगवान श्रीकृष्ण नंगे दौडते हुये द्वार पर सुदामा को लेने आये।
जबकि वर्तमान मे देखने मे यह तथ्य आता है कि
जब कोई घनिष्ठ व्यक्ति किसी महत्वपूर्ण पद पर पहुच जाता है ।
तो उसके मित्र निकट सम्बंधी शिष्टाचार की सारी हदे लांघ कर लोगो के सामने
रौब झाडने के लिये सीधे विशिष्ट व्यक्ति से मिलते है तथा ऐसी हरकते करते है कि
जिससे सारा वातावरण विषाक्त हो जाता है ।
परिणाम यह होता है कि प्रथम द्रष्टि मे ही उस विशिष्ट और घनिष्ठ व्यक्ति के मन मे क्षोभ उत्पन्न होता है ।
और मिलने वाला व्यक्ति जिस अपेक्षा से मिलने जाता है उसे न तो सही प्रकार से व्यवहार मिल पाता है ।
तथा उसका समाधान भी नही हो पाता है ।
सुदामा ने श्रीकृष्ण से मिलने के समय न तो आतुरता दिखाई और न ही अपनी पीडा प्रकट की ।
श्रीकृष्ण भगवान ने उनकी अवस्था को देखकर उनकी मनोदशा व उनकी वास्तविक स्थितियो को समझ लिया ।
करुणा सागर श्रीकृष्ण ने सुदामा घर पहुचते उसके पहले ही उसका समाधान कर दिया ।
यह घनिष्ठ विशिष्ट मित्रता के साथ की गई शिष्टता का ही तो परिणाम था ।
अन्यथा मात्र घनिष्ठता मे कि गई उद्दंडता सुदामा का कहा भला कर पाती ।
No comments:
Post a Comment