महाभारत में एक प्रसंग आता है
जब अर्जुन वनवास काल के दौरान अपने मानस पिता इन्द्र के यहाँ स्वर्ग में गये थे
अपने मानस पुत्र के कष्टों को दूर करने के लिए इन्द्रराज ने अर्जुन के लिए स्वर्ग में मनोरंजन एवम सुख सुविधा के सारे प्रबंध किये थे
इन्द्र की सभा में नृत्य करने वाली अप्सरा उर्वशी थी
जो नृत्य संगीत में अत्यंत कुशल होकर सुन्दरता की प्रतिमूर्ति थी
इन्द्र ने अपने मानस पुत्र अर्जुन की सेवा हेतु अपनी अप्सरा उर्वशी को भेजा
इन्द्र ने अपने मानस पुत्र अर्जुन की सेवा हेतु अपनी अप्सरा उर्वशी को भेजा
इंद्र के आदेशानुसार उर्वशी अर्जुन की सेवा हेतु अर्जुन के समक्ष उपस्थित हुई
अर्जुन धीर वीर ही नहीं अपितु जितेन्द्रिय चरित्र का दृढ व्यक्ति थे
अर्जुन धीर वीर ही नहीं अपितु जितेन्द्रिय चरित्र का दृढ व्यक्ति थे
उन्होंने उर्वशी को यह निवेदन किया की चूँकि वह इंद्र की सेविका होकर उनकी उपभोग में आनेवाली महिला है
इंद्र उसके मानस पिता होने से उर्वशी उसकी माता के सामान है
इसलिए वे माता सामान स्त्री से किसी प्रकार से स्त्री-पुरुष के सम्बन्ध नहीं बना सकते
इस पर उर्वशी अप्सरा कुपित हो गई एवम अर्जुन को नपुंसकता का श्राप दिया
इस पर उर्वशी अप्सरा कुपित हो गई एवम अर्जुन को नपुंसकता का श्राप दिया
जो परम वीर अर्जुन ने सहर्ष स्वीकार किया किन्तु स्वर्ग जैसी जगह पर पतित कर्म करने से स्वयं को रोका
पश्चातवर्ती घटनाक्रम में अज्ञातवास के दौरान नपुंसकता का श्राप अर्जुन को काम आया
पश्चातवर्ती घटनाक्रम में अज्ञातवास के दौरान नपुंसकता का श्राप अर्जुन को काम आया
और उन्होंने विराट राज्य की राजकुमारी उत्तरा को नृत्य एवम संगीत का प्रशिक्षण दिया
अज्ञातवास पूर्ण होने पर जब विराट के राजा ने जब उत्तरा से विवाह करने करने का प्रस्ताव अर्जुन के समक्ष रखा
तो अर्जुन जैसे पराक्रमी वीर ने फिर चारित्रक प्रबलता दर्शाई
और उन्होंने विराटराज के प्रस्ताव को यह कह कर इनकार कर दिया की उन्होंने उत्तरा को शिक्षा दी है
इसलिए उत्तरा एवम उनके मध्य गुरु शिष्य के सम्बन्ध बन चुके है
गुरु के शिष्या से विवाह नैतिक दृष्टि से उचित नहीं है
वीर अर्जुन जिन्होंने भले ही सुभद्रा ,गंधर्व कन्या ,नागकन्या ,द्रोपदी से विवाह कर बहु विवाह किये हो
वीर अर्जुन जिन्होंने भले ही सुभद्रा ,गंधर्व कन्या ,नागकन्या ,द्रोपदी से विवाह कर बहु विवाह किये हो
किन्तु उन्होंने जो रिश्तो की मर्यादा स्थापित की है वह अत्यंत दुर्लभ है
वर्तमान में भी यह कथा प्रासंगिक होकर अनुकरणीय है
आशय यह है की उत्तम श्रेणी के पुरुष उत्तम स्थान पर सुविधाए पाकर पतित नहीं होते है
आशय यह है की उत्तम श्रेणी के पुरुष उत्तम स्थान पर सुविधाए पाकर पतित नहीं होते है
अपितु पवित्र स्थान पर आचरण की पवित्रता बनाए रखते है
जो व्यक्ति रिश्तो का आदर करते है ऐसे व्यक्ति को ही सभी प्रकार की विद्याये तथा कुशलताए प्राप्त होती है
और उन्हें वासुदेव श्रीकृष्ण एवम इंद्र देव जैसे देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है
Arjun krm yogi tha aur har prkar se sresth tha isi karan pachon pandvo mai se bhagvan ne Arjun ka chunav kiya aap ke is lekh se ye baat spast hai ki kyo bhagvan ne Arjun ko chuna
ReplyDelete