प्रत्येक काल में एक वर्ग होता है शासक
दूसरा वर्ग होता है शासित
शासक वर्ग नियम विधान निर्मित करता है
जिसका पालन शासित वर्ग को करना होता है दूसरा वर्ग होता है शासित
शासक वर्ग नियम विधान निर्मित करता है
शासक वर्ग स्वयं उन नियमो का पालन नहीं करता यही कारण वर्ग संघर्ष को जन्म देता है
प्राचीन काल में शासक वर्ग देवता कहलाते थे
जो तत्समय नियम विधान पाप पुण्य कर्म धर्म को परिभाषित कर समाज को अधिनियमित करते थे
किन्तु ऐसे कई उदाहरण मिलते है
जिनमे देवताओं ने उन नियमो का पालन नहीं किया जिनका निर्माण उन्होंने किया था
ऐसा आज भी होता है की समाज का प्रभावशाली वर्ग नियम विधियों का पालन नहीं करता है
प्रत्येक समय समाज में कुछ लोग इस विषमता के विरुद्ध खड़े हुए
प्राचीन काल में जिन्हें दानव ,राक्षस ,असुर कहा गया उनका यह आग्रह था
की नियमो का देवता भी उसी तरह पालन करे जिस प्रकार मानव पालन करते है
मानव को वे कमजोर प्राणी मानते थे जो देवताओं की कृपा पर आश्रित रहते थे
असुर संस्कृति उस समय अत्यधिक समृद्ध थी
असुर अर्थात राक्षस किसी की कृपा पर आश्रित न रह कर स्वयं के पुरुषार्थ पर विश्वास करते थे
इसलिए धन वैभव से समृद्ध तथा सैन्य दृष्टि से शक्तिशाली थे
उन्होंने अनेक बार देवताओं को पराजित भी किया था
किन्तु कई बार उन्होंने नैतिकता का अतिक्रमण भी किया
जिसके दुष्परिणाम उन्हें समय समय पर भोंगने पड़े इसका आशय यह नहीं की वे पूरी तरह से गलत थे
राक्षस त्रिदेवो में से ब्रह्मा जी एवम शिवजी की साधना पर ज्यादा विश्वास करते थे
जो उनकी दृष्टि में निष्पक्ष देव थे
आज राक्षस जैसी मनोवृत्ति के लोग समाज देश में विद्यमान में उनके तर्क तथा मानसिकता को समझने की आवशयकता है तथा समाज में शासक एवम शासित में भेद समाप्त करने की आवश्यकता है
इसी से समाज में से आक्रोश का भाव समाप्त किया जा सकता है तथा समाज में शांति समृद्धि एवम स्थायित्व स्थापित किया जा सकता है
@आज राक्षस जैसी मनोवृत्ति के लोग समाज देश में विद्यमान में उनके तर्क तथा मानसिकता को समझने की आवशयकता है तथा समाज में शासक एवम शासित में भेद समाप्त करने की आवश्यकता है
ReplyDeleteसही कह रहे हैं आप।