इसको भारतीय संस्कृति में
धर्म ,अर्थ ,काम, मोक्ष के रूप दर्शाया गया है
धर्म को प्रथम स्थान पर रखा गया है
धर्म अर्थात अच्छे गुणों को धारण करना
वर्तमान में धर्म को लोगो ने पूजा पाठ तीर्थ यात्रा
वर्तमान में धर्म को लोगो ने पूजा पाठ तीर्थ यात्रा
कर्म काण्ड को मान लिया है
सभी धर्म प्रेमी लोग कर्म काण्ड तीर्थ यात्रा में लगे है
किसी ने धर्म के मर्म को समझने का प्रयास नहीं किया है
मंदिर ,पूजा पाठ ,तीर्थ यात्रा ,तो सकारात्मक ऊर्जा ग्रहण करने के साधन है
मंदिर ,पूजा पाठ ,तीर्थ यात्रा ,तो सकारात्मक ऊर्जा ग्रहण करने के साधन है
मूल रूप से धर्म तमो गुण से सतो गुण की और अग्रसर होना है
इस हेतु जीवन में समग्र आचरण शुध्द होना आवश्यक है
शुध्द आचरण के कई अंग हो सकते है
शुध्द आचरण के कई अंग हो सकते है
जिनमे सत्य ,अहिंसा ,अपरिग्रह ,अस्तेय,ब्रहचर्य ,यम ,नियम ,संयम , आहार ,विहार ,प्रत्याहार, धारणा, ध्यान इत्यादि शामिल है
हम उक्त अंगो में कितने अंग अपनी दिन चर्या में शामिल कर पाए है
हम उतने ही धार्मिक है
उपरोक्त अंगो को धारण किये जाने से
व्यक्ति में सतोगुण की वृध्दि होती है
सतोगुण में ईश्वर का निवास होता है
इसलिए व्यक्ति स्वत ईश्वरीय तत्व का सामीप्य महसूस करने लगता है द्वितीय स्थान पर अर्थ अर्थात धन का महत्त्व है
धन की महत्ता को श्री सूक्त में बताया गया है
धन कितने प्रकार का होता उल्लेख किया है
उसी के अनुसार लक्ष्मी जी के आठ रूपों का उल्लेख है
व्यक्ति धर्म के अनुरूप आचरण करते हुए धन का उपार्जन करता है उसी व्यक्ति को अष्ट लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है
नहीं तो देखने में यह आता है
जिस व्यक्ति के पास सम्पत्ति रूप धन होता है उसे पुत्र धन नहीं होता
जिसके पास उक्त दोनों धन होते है
जिसके पास उक्त दोनों धन होते है
उसे यश प्राप्त नहीं होता ,स्वास्थ्य रूपी धन नहीं होता
तीसरे स्थान पर काम का स्थान रखा गया है
इसका आशय यह है की व्यक्ति जिसके पास आठो प्रकार के धन होते है उसे भौतिक जगत के भोग विलास भाते है
अन्यथा सम्पत्ति रूपी धन पाकर बहुत से सम्पन्न व्यक्ति जीवन के आनंद से वंचित ही रह जाते है
चौथे स्थान पर मोक्ष को रखा गया है
चौथे स्थान पर मोक्ष को रखा गया है
आशय यह है की जिस व्यक्ति ने धर्म के अनुरूप आचरण करते हुए आठो प्रकार के धन को पा लिया हो और भौतिक जगत के सभी सुखो का आनंद प्राप्त कर लिया हो
उस व्यक्ति के मन में कोई विषय वासना ,किसी प्रकार की तृष्णा नहीं रहती है मोह के बंधन नहीं रहते
ऐसा व्यक्ति असमय वृध्दावस्था एवं मृत्यु को प्राप्त नहीं होता है और वह प्राणी
जन्म मरण के बंधन से मुक्त होकर परमात्म तत्व में विलीन होकर मोक्ष मार्ग को प्राप्त होता है
जन्म मरण के बंधन से मुक्त होकर परमात्म तत्व में विलीन होकर मोक्ष मार्ग को प्राप्त होता है
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