कोमल कोपल पर ठहरी बुँदे
निशा की उमस में इतराती है
उषा से ऊर्जा ले रूप पाती है
पाकर ठंडक वह हिम लाती है
दूब की हरीतिमा है उसकी माई
दूब के भीतर से ही वह बन पाई
खग ,भ्रमर भी अब खुशिया लाये
सर्दी के भीतर रह पल मुस्काये
शरद के संग संग अब मन गाये
चेतनता को पा हम बन पाये
सूरज से शीतलता सकुचाई
शीतलता भीतर तक अब आई
प्राणों ने दीप्ती है चमक पाई
शरद पूनम की अति भायी
हर पल के भीतर खुशबू छाई
निशा की उमस में इतराती है
उषा से ऊर्जा ले रूप पाती है
पाकर ठंडक वह हिम लाती है
दूब की हरीतिमा है उसकी माई
दूब के भीतर से ही वह बन पाई
खग ,भ्रमर भी अब खुशिया लाये
सर्दी के भीतर रह पल मुस्काये
शरद के संग संग अब मन गाये
चेतनता को पा हम बन पाये
सूरज से शीतलता सकुचाई
शीतलता भीतर तक अब आई
प्राणों ने दीप्ती है चमक पाई
शरद पूनम की अति भायी
हर पल के भीतर खुशबू छाई
No comments:
Post a Comment