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Monday, October 29, 2012

शरद पूनम की अति भायी

कोमल कोपल पर ठहरी बुँदे
निशा  की उमस में इतराती है
उषा से ऊर्जा  ले  रूप पाती है
पाकर ठंडक वह हिम लाती है
दूब की हरीतिमा  है उसकी माई
दूब के भीतर से ही वह बन पाई
खग ,भ्रमर भी अब खुशिया लाये
सर्दी के भीतर रह पल मुस्काये
शरद के संग संग अब मन गाये
चेतनता को पा हम बन पाये
सूरज से शीतलता सकुचाई
शीतलता भीतर तक अब आई
प्राणों ने दीप्ती है चमक पाई
शरद पूनम  की अति भायी
हर पल के भीतर खुशबू छाई

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