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Sunday, December 23, 2012

अव्यक्त व्यथा


वर्तमान में समाज में
ऐसी महिलाओं की संख्या बढती जा रही है
जिन्हें किन्ही कारणों से उनके पति द्वारा परित्यक्त कर दिया गया है
ऐसी महिलाओं के साथ नन्हे बच्चे हो तो स्थिति विकट हो जाती है महिला और बच्चो के सम्मुख जीवन मरण का प्रश्न खडा हो जाता है परिस्थतियो से समझौता करना उनकी नियति बन जाती है
कालान्तर में जाकर ऐसी महिलाओं पर
जार कर्म के आरोप लगा दिए जाते है
वस्तुत: क्या ऐसे पतियों का महिला पर जार कर्म का आरोप लगाने का क्या अधिकार शेष रह जाता है ?
जिसने अपनी पत्नी और बच्चो का समुचित भरण पोषण न कर आजीविका के मूलभूत साधन तक छीन लिए हो
पति और पत्नी के मध्य संताने सेतु का कार्य करती है
संतानों के प्रति उपेक्षा यदि किसी जनक द्वारा की जाती है
तो संतानों के ह्रदय में अपने पिता के प्रति विद्रोह उत्पन्न होना स्वाभाविक है
ऐसे पिटा जो अपनी संतानों की उपेक्षा कर देते है
उनका समाज में कही भी सम्मान जनक स्थान नहीं रह जाता है
तथा ऐसी संतानों के माता पिता के मध्य सुलह की संभावना भी क्षीण रह जाती है
शनै शनै ऐसा दायित्वबोध से विहीन पति
और पिता परिवार और समाज में अपनी उपयोगिता खो देता है
उसका देहिक रूप से विद्यमानता अनौचित्य पूर्ण हो जाती है
हमारे में ऐसे पुरुषो की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हो रही है
जो अपने जीने के अर्थ खो चुके है
सामान्य रूप से व्यक्ति अपने लिए
अपने परिवार अपने समाज के लिए
अपने देश के लिए जीवन व्यतीत करता है
जो व्यक्ति न तो देश के लिए समाज के लिए
न परिवार के लिए अपना जीवन की सार्थकता प्रमाणित न कर पाया हो वह व्यक्ति स्वयं के उत्थान के लिए कुछ प्रयास कर रहा होगा
इसमें संशय है

1 comment:

  1. आप का ये लेख उन पतियों पर प्रहार हैं जो अपनी कोई भी जिम्मेदारी नही निभाते और उन महिलाओ के लिए सम्बल हैं जो इन परिस्थितियों मैं जिम्मेदारी निभाने की कोशिस करती हैं"

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