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Wednesday, February 20, 2013

कल्पना और सच्चाई






  कई बार व्यक्ति कल्पना को ही सच समझने लगता है  और वही उसके लिए सच्चाई बन जाती हैं यहा तक की वास्तविक जीवन मैं उसकी कोई रूचि ही शेष नही रहती वह अपनी उन्ही कल्पनाओ को अपना वास्तविक जीवन बना लेता हैं और उसी में खुश रहता हैं 
कल्पना और स्वप्न  दोनों मे ज्यादा अंतर  नहीं हें कल्पना हमारी सोच पर हमारी रचना होती हें और सपना हमारे दिमाग की रचना होती हैं जिसे हम नही हमारा दिमाग रचता हैं उन पर हमारा बस नही हें इसीलिए सपने अच्छे व बुरे किसी भी रूप मे आ जाते हें ये हम तय नही कर सकते और कुछ लोग उन सपनों को ही हकीकत की संज्ञा दे दे ते है वो सपनों में ही जीने लगते हे उसमें कुछ बुरा भी नही, पर वास्तिवक जीवन को भुलाकर कल्पना और सपनों मे जीना खुद अपने को छलना हें क्योकि अगर सच में प्यास लगी हो तो सपनों और कल्पनाओ के जल से वो प्यास नही बुझ सकती उस प्यास को तो वही जल मिटा सकता हैं जिसका अस्तित्व सच में  हो ना की कल्पना में 
इसी  तरह कुछ  लोग भ्रम में जीने लगते हैं अपने चारो और भ्रम का ऐसा मायाजाल रच लेते हें और उसी को सच मान बैठते है जबकि वो उसके लिए सही नही हैं और जब कोई उसका अपना उसका हितेषी उसे सच्चाई का बोध करता हें तो वह उसे नही मानता और उस हितेषी को ही गलत साबित करने लगता हैं और तो और उस पर क्रोधित भी हो जाता हैं।
पर इस में खुद उसका ही अहित हें यदि किसी चीज़ को पाना हैं तो कल्पना लोक मैं उसकी रचना करना गलत हें उसके लिए कर्म करना पड़ता हें परिश्रम करना पड़ता हें पसीना बहाना पड़ता हें तब जाकर वह वस्तु या लक्ष्य मिलता हें अच्छा समय कभी नही आता उसका इंतज़ार करना और तब तक कल्पनाओ में जीना मुर्खता हैं उसे तो पुरुषार्थ के बल पर लाया जा सकता हैं 
क्योकि कल्पना और स्वप्न मैं जीना ठीक उसी तरह हैं जेसे कोई जन्मांध रंगों की व्याख्या करे।

2 comments:

  1. Kalpnaa ke binaa rachanaa rachi jaa nahi sakati

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    1. aap ka kthn uchit hain,
      lekhin yha jis vishya ko uthaya gya hain wo vykti ke nakaratmk paksh ko chitrit krta hain ke kis prkar vykti vastvik jivan ko bhulakr klpna lok main jine lgta hain aur is main koi srjinsheelta nhi na hi racna nirmaan ho skta hain wo kewl wha ret ke mehl hi bna skta hain.

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