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Friday, March 15, 2013

नाग और शिव


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 शिव जी के गले में जहरीला नाग होता है 

जो निरंतर अपनी जिव्हा को लपलपा कर आस पास के वातावरण में व्याप्त वातारण से संवेदनाये ग्रहण करता है
  नाग के वैसे तो कई दांत होते है
परन्तु विषैले दो ही दांत होते है
 निरंतर नित्य हम शिव जी के दर्शन कर 
उनका ध्यान कर चिन्तन में उनको बसाए रखते है
 कभी हमने उनके गले लिपटने वाले नाग को 
व्यवहारिक जीवन से जोड़ कर नहीं देखा है
यदि हम वास्तविक जीवन में उसके निहितार्थ देखे तो 

मानव मन में विद्वेष घृणा से युक्त विषैले
 विचारों की प्रधानता रहती है 
शिव जी का उपरोक्त चित्र यह दर्शाता है की 
व्यक्ति को मन से नाग के सामान विषैले
 विद्वेष युक्त विचारों को बाहर निकाल देना चाहिए 
ऐसा नहीं किये जाने पर हमारा समस्त चिंतन
 विषाक्त  कलुषित और एक पक्षीय हो जाता है 
जो जीवन में नकारात्मक  परिणाम देता है  
श्रेष्ठ और वांछित परिणाम को हम जीवन में 
सकारात्मक सोच से ही प्राप्त कर सकते है 
नाग के विषैलेपन का कारण दो विष दन्त होते है
 व्यवहारिक जीवन में व्यक्ति को मानसिक पीड़ा 
पहुंचाने के लिए दो विष वचन ही पर्याप्त होते है
इसलिए किसी प्रकार के उदगार को व्यक्त करने के लिए वातावरण पूरी तरह परखने के पश्चात ही

 शब्द तोल कर बोलना चाहिए  
अन्यथा बिना सोचे समझे अनर्गल प्रलाप करने वाले 
व्यक्ति को विरोधी पक्ष उसी प्रकार कुचलते देते है 
जैसे अकारण डसने वाले नाग को 
लोग असमय लोग कुचलते कर मार डालते है 

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