व्यक्ति कितना ही अकिंचन हो निर्धन हो
उसके पास भी क्षमताये और साधन है
यह बात अलग है कि
व्यक्ति को अपने में निहित क्षमताओ और साधनो का ज्ञान नहीं होता
जिन व्यक्तियो को स्वयम कि क्षमताओ और साधनो का ज्ञान नहीं होता
वे सदा अभावो ,असुविधाओ का रोना रोते रहते है
प्रश्न यह है कि
व्यक्ति को स्वयं में निहित क्षमताओ और साधनो का ज्ञान कैसे हो ?
इस हेतु क्या उपाय किये जाए ?
बिना ईश्वरीय कृपा के यह सम्भव नहीं है
ईश्वरीय कृपा सभी को प्राप्त नहीं होती है
जीवन से पलायन करने से नहीं
ईश्वरीय कृपा ईश्वर द्वारा दिए गए जीवन में आस्था प्रगट करने से होती है
प्रत्येक विषय और व्यक्ति के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण
अपनाने से आस्था प्रगट होती है
बहुत से लोग यथार्थ में हम देखते है
जिनके पास संसाधनो कि कोई कमी नहीं है
पर्याप्त क्षमताये विदयमान है परन्तु उन्हे इस तथ्य कि जानकारी नहीं है
हमारे चित्त में आत्मा में अन्तः करण में थोड़ा सा भी ईश्वरीय प्रकाश है
उस परम दीप्ती और आलोक से हमारे भीतर कि चेतना जाग्रत होने लगती है
जो हमारी क्षमताओ का समुचित उपयोग
और उसका विस्तार करने में सहायक होती है
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