व्यक्ति कितना ही कमजोर हो
वह खुद को शक्तिशाली ही समझता है
व्यक्ति कितना ही मूर्ख हो
वह खुद को बुध्दिमान समझता है
व्यक्ति कितना ही अल्पज्ञानी हो
वह स्व यम को विद्वान समझता है
व्यक्ति कितना ही अकुशल हो
वह स्व यम को प्रवीण समझता है
व्यक्ति कितना ही कटु भाषी हो
वह स्व यम को मृदु भाषी मानता है
व्यक्ति कितना ही अशिष्ट और असभ्य हो
वह स्व यम को शिष्ट और दूसरो को अशिष्ट समझता है
चाहे संतान कितनी मुर्ख हो
माता पिता को दुनिया में सम्पूर्ण प्रतिभा
अपनी संतान में दिखाई देती है
व्यक्ति कितना ही दुष्ट हो
वह विश्व में सबसे अधिक धर्मात्मा स्व यम को मानता है
व्यक्ति कितना ही कायर हो
दुनिया का वीर पुरुष स्व यम को मानता है
इस दुनिया में ऐसी कोई स्त्री नहीं होगी
जो कुरूप होने के बावजूद स्व यम को सुन्दर न माने
ऐसा इसलिए है कि
व्यक्ति स्व यम का परिक्षण नहीं करना चाहता है
अपनी आलोचना उसे बुरी लगती है
दुसरे व्यक्तियो द्वारा रखी गई परीक्षा प्रणाली उसे अधूरी लगती है
इसलिए स्व यम के आलोचक स्व यम बनो
भ्रान्तियो के आधार पर ही न सपने बुनो
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