व्यक्ति कितना गुणवान हो
उसकी एक त्रुटि सारे जीवन को कलंकित कर देती है
व्यक्ति कितना ही पतित हो उसका एक शुभ कर्म
उसके जीवन की दिशा बदल देता है
रावण कितना गुणवान था विद्वान और एक अच्छा शासक था
उसका राज्य लंका अभेद्य और प्राकृतिक रूप सुरक्षित था
सम्पूर्ण राज्य मे धन धान्य पर्याप्त मात्रा मे था
अर्थात कोई व्यक्ति निर्धन और दुर्बल नहीं था
उसके राज्य में पराक्रमी और बलवान योध्द्दा थे
उसके राज्य में पराक्रमी और बलवान योध्द्दा थे
फिर भी एक गलती ने उसे पतन के मार्ग की और धकेल दिया
इसके विपरीत डाकू रत्नाकर
कितना निर्दयी क्रूर और पतित व्यक्ति था
एक शुभ कर्म ने उसके जीवन की दिशा बदल दी और वह
महर्षि वाल्मीकि के रूप विख्यात हुआ
पर प्रश्न यह है की शुभ कर्म भी
इस स्तर का होना चाहिए की
वह शेष पतित कर्मो के भार को कम कर दे
और कोई भी दोष की तीव्रता
इतनी अधिक नहीं होनी चाहिए की
वह व्यक्ति के सदगुणो की आभा को मंद कर दे
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