एक व्यक्ति ज्योतिषी के पास पहुंचा
और प्रश्न किया की मेरा कल कैसा होगा ?
ज्योतिषी ने जन्म कुंडली के आधार पर
कई प्रकार की कल गणनाएं की
और तरह तरह के विधि विधान बताये
फिर भविष्य वाणी की
कई प्रकार के किन्तु परन्तु लगाए
वही व्यक्ति एक संत के पास पहुंचा
और उसने संत से यही प्रश्न किया
की महाराज बताइये मेरा कल कैसा होगा
संत ने जबाब दिया "जैसे तुम्हारे आज कर्म है,
तुम्हारा कल वैसा ही होगा ,
जैसे तुम्हारे भूतकाल में कर्म रहे है ,वैसा तुम्हारा वर्तमान है ,
तुम भूतकाल के अपने कर्मो पर दृष्टिपात करो
,फिर वर्तमान में अपनी स्थिति के सम्बन्ध में विचार करो"
कल भी तुम सत्कर्म न कर भविष्य वक्ताओं के पीछे
अपना भविष्य खराब कर रहे थे
आज भी तुम कठोर परिश्रम न कर
अपना भविष्य भविष्यवक्ताओं के पीछे घूम कर खराब कर रहे हो
हमारा आज हमारे भूत और भविष्य का दर्पण है
यदि हम स्वयं हमारी वर्तमान स्थिति को देख पायेगे तो
हमारे भूत काल के सारे कर्म याद आयेगे
और हम हमारे वर्तमान के कर्मो को श्रेष्ठ बना पायेगे
तो भविष्य में को हम सुखद बना पायेगे
ऐसा सुनते ही उस व्यक्ति को
अपनी गलती का अहसास हो गया उसने जान लिया था
संत और भविष्य वक्ता में क्या अंतर होता है
भविष्य वक्ता केवल भविष्य के बारे में बताता है
और उसमे भी कई प्रकार के किन्तु परन्तु लगाता है
जबकि संत भूत भविष्य के साथ वर्तमान को भी बताता है
और वह त्रिकाल दर्शी कहलाता है
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