बात केवल समझने की है हो सकता है जिसे हम पागल समझते है वो अपनी धून में मगन कोई ज्ञानी हो और जिसे हम ज्ञानी माने बैठे है वो कोई धुर्त हो जिसने रटंत विद्या सिद्ध कर रखी हो और विद्वता का छद्म आडंबर ओढ रखा हो
यह अंतर बड़ा ही सूक्ष्म होता है
अंतर केवल दृष्टिकोण का है....
यह भी संभव हे की जिसे हम आज सुख मान रहे हे वो निकट भविष्य में असंतोष देने वाली क्षणिक मृगतृष्णा हो और जिसे हम आज दुखः समझ रहे हे वो दुःख के रूप में वो गुरू हो जो हमारे भविष्य को सँवारने के लिए हमारा वर्तमान में तांडन कर रहा है जैसे कोई कुम्हार घड़ा बनाने के लिए चक्के पर उसे घुमाता हे उसे पीटता है और अंत में वही घड़ा अपने में शीतल जल धारण कर लोगों को जीवन देकर पूजनीय बन जाता है
इस अंतर को समझना हम पर निर्भर करता है और यह भी की हम उस अंतर को समझना चाहते भी हे या नहीं
ये एक फाईन लाइन होती हे जो सत् - असत् में भेद करती है हमारा दृष्टिकोण जितना समग्र होगा हमारे लिए उस अंतर को देख पाना उतना ही सरल होगा
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