उत्सव धर्मिता बहुत अच्छी है
व्यक्ति को उत्सव प्रिय होना चाहिए
उत्सव से व्यक्ति में उमंगें आती है
उमंग और उत्साह की स्फूर्ति से
व्यक्ति ऊर्जा से भरपूर हो जाता है
उत्सव सार्वजनिक रूप से मनाया जाए तो
सामाजिक जीवन में
आनंद का संचार होने लगता है
परन्तु सार्वजनिक रूप से
उत्सव मनाने के पीछे जो उद्देश्य थे
वे धीरे धीरे विस्मृत होते जा रहे है
निरंतर नवीन कुरीतिया
और गलत परम्पराये स्थान लेने लगी है
उत्सव के बहाने
जबरन चन्दा वसूली ने उत्सव के
आध्यात्मिक महत्व को
समाप्त कर दिया है
उत्सवो के नाम पर महिलाओ से
छेड़ खानी कन्याओ के प्रति
अश्लील व्यवहार
नव युवको की उद्दंडता ने
हमारी शुचित सांस्कृतिक परम्पराओ
धर्मिक मान्यताओं को
तोड़ने का प्रयास ही किया है
सड़को पर भीमकाय प्रतिमाऔ के नाम पर
मार्ग पर अतिक्रमण और
देर रात्रि तक कोलाहल पूर्ण वातावरण
निर्मित कर हम आवगमन को
अवरोधित ही नहीं करते है
अपितु अस्वस्थ और वृध्द व्यक्तियो के
ह्रदय व्यथित करने के साथ
विद्यार्थियों के अध्ययन में भी
बाधा कारित करते है
उत्सव वह है हमें अपने उत्स से जोड़े
वह नहीं जो पारस्परिक सम्बन्धो को तोड़े
इसलिए हमारी यह नैतिक जिम्मेदारी है कि
हम उत्सव धर्मिता को बचाये
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