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Sunday, January 2, 2022

अभिमान

सौंदर्य का अभिमान महिला को चरित्रहीन और ज्ञान का अभिमान व्यक्ति को मूर्ख बनाता है । धन का अभिमान व्यक्ति को कृपण और बल का अभिमान  व्यक्ति को अत्याचारी बनाता है । पद का अभिमान अधिकारी को निकृष्ट और भ्रष्ट बनाता है और सिध्दि का अभिमान तपस्या का क्षरण करता है । 
      स्वाभिमान व्यक्ति को स्वालम्बी कर्मठ और ईमानदार बनाता है ।अभिमान समृध्दि सामर्थ्य और वैभव के पलों में पैदा होता है और जैसे ही व्यक्ति सामर्थ्य समृध्दि से विहीन होता है वह  अभिमान से शून्य हो जाता है ।अभिमान तब पैदा होता है ।अपात्र व्यक्ति को बिना परिश्रम के धन और पद की प्राप्ति होती है ।बिना तपस्या के सिध्दि की प्राप्ति होती है ।बिना गुरु के ज्ञान की प्राप्ति होती है ।
             व्यक्ति में अभिमान की तब उत्पत्ति होती है । जब अनायास ही उसे सफलता प्राप्त होती है ।   पात्रता होने पर व्यक्ति को जब धन वैभव पद सिध्दियां प्राप्त होती है ।तब वह अभिमान से शून्य होकर उनका सदुपयोग करता है । जब महिला में आंतरिक गुणों का अभाव होता है ।तब वह अपने तनिक सौंदर्य को झूठी प्रशंसा के कारण अत्यधिक मान लेती है और झूठे प्रशंसको के प्रति आकृष्ट भी हो जाती है ।
            जब व्यक्ति पद के अभिमान से ग्रस्त हो जाता है तो वह उसकी झूठी प्रशंसा करने वाले व्यक्तियों से प्रभावित हो जाता है , इसका लाभ उठाकर लोग उस व्यक्ति की क्षमता का अपने हित उपयोग करने लगते है । ऐसे व्यक्ति के समस्त निर्णय दूसरे लोगो की धारणाओं पर आधारित होते है । स्वयम का विवेक शून्य हो जाता है 
             स्वाभिमान का जनक संघर्ष और जननी विपदा है । स्वाभिमानी व्यक्ति कितने ही अभावो में घिरा हो वह अपने ईमान की कीमत पर कभी समझौता नही करता । अभिमानी व्यक्ति स्वाभिमान व्यक्ति को झुकाने के लिए सदैव प्रयत्नरत रहते है। स्वाभिमान चरित्र का निर्माता है ।वही अभिमान चारित्रिक पतन का कारक ।इसलिए अभिमानी नही स्वाभिमानी बनो

1 comment:

  1. सटीक विश्लेषण ...सन्तुलन आवश्यक,

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