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Friday, December 9, 2011

शेषसायी विष्णु





पोराणिक ग्रन्थों मे एक चित्र भगवान शेषसायी विष्णु का देखने मे आता है 
आखिर  क्या कारण है कि कोई देवता जो सर्प को शैया बना कर गहन निन्द्रा मे लेटा हो 
और उनके चरणों मे देवी लक्ष्मी सेवारत हो और नाभी से ब्रह्म देव अंकुरित हो रहे हो 
उपरोक्त चित्र क्या हमारे तार्किक मन को सोचने को बाध्य नही करता 
हमारे महर्षियों ने कोई परिकल्पना तो की होगी 
जिसके आधार पर उक्त चित्र निर्मित हुआ 
इस प्रश्न का उत्तर मेरा मन मष्तिस्क यह देता है कि
यदि व्यक्ति जीवन मे ऐसी स्थिति हो की वह विकट परिस्थितियो से घिरा तो उसे क्या करना चाहिये 
जैसे भगवान विष्णु के सिर पर अनेक फनधारी शेषनाग होना यह दर्शाता है कि 
यदि काल ही नही महाकाल सिर  खडा हो घबराने बजाय भगवान विष्णु तरह शीतल मष्तिस्क से चिन्तन करते हुये कार्ययोजना बना कर अपनी रचनात्मक व्रत्ती बनाये रखे 
परिणाम स्वरुप रचनात्मकता से उसी प्रकार से कर्म फल अंकुरित होगा 
जैसे विष्णु भगवान की नाभि से ब्रह्म देवता अंकुरित हुये 
ऐसी स्थिति मे शेषनाग जैसे सहस्त्र फणधारी नाग रूपी महाकाल 
ऐसे सृष्टि  रचना के देवता को देखकर फड-फडाते रहे 
किन्तु चिन्तन पुरुष को भगवान विष्णु को क्षति पहुचाने के स्थान पर उनकी शैया बन गये
ऐसे विलक्षण पुरुष के चरणों उपलब्धियों एवम भौतिक सम्पत्तयों को तो होना ही था 
इसलिये भगवान विष्णु के चरणों मे महादेवी महालक्ष्मी सेवारत हुई


1 comment:

  1. such a great thing,
    such hai vyakti ka nazriya he drsya ko paribhasit karta hai.
    warna kon soch sakta tha ki kisi bhi mandir devalya main lagne wale bhagwan narayan ke is chitra ka mul arth ye hai.

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