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Sunday, March 4, 2012

PRSANSA

एक राजा था उसे अपनी प्रसंसा सुनने मैं बड़ा आनंद मिलता, राजा के मंत्री और दरबारी बड़े धूर्त थे और इस बात से परिचित थे की राजा अपनी प्रसंसा सुनने के लिए कोई भी काम बिना विचारे कर देगा. और ये उनके लिए बड़े ही  फायदे की बात थी, जो भी राजा एसे  मंत्रियो से घिरा होता है उसका व उसके राज्य का पतन निश्चित होता हैं. 
खेर.   कथा के अनुसार एक दिन राजा अपने चापलूस मंत्रियो, दरबारियों से घिरा था. तभी नगर के कुतो ने रोना शुरू  कर दिया. राजा को ये शोर पसंद नहीं आया और उसने अपने मंत्रियो से पूछा ये कुते आज क्यों रो रहें ये क्या इन्हें हमारा शासन  पसंद नहीं  राजा  ने ये बात सिर्फ इसलिए कही ताकि सभी उसके शासन  की प्रसंसा करे.
 नहीं नहीं महाराज आप तो बहुत ही  कुशल शासक है हम सभी आपके सनिद्य मैं धन्य हैं l 
तो फिर ये क्यों रो रहें हैं ? महाराज ये कह रहें  है की ये बहुत भूके है और आप बड़े दयालु है ये आप से भोजन मांग रहें हैं राजा ने कहा  तो इन्हें भोजन दे दिया जाये और इसके लिए जितने भी धन की आवश्यकता ho राजकोष से ले लिया जाये मंत्रियो ने एक बड़ी पूंजी कोष से निकली और आपस मैं बाँट  ली व  राजा की प्रसंसा की राजा बहुत खुश हुआ मंत्री राजा की मुर्खता पर मंद मंद मुस्कराए.
अगले दिन कुते फिर रोने लगे राजा ने फिर पूछा अब ये क्यों रो रहें है. अब इन्हें क्या चाहिए महाराज ये कह रहें है की आपने  इन्हें भोजन तो दे दिया पर कपडे नहीं दिए बहुत ठण्ड  है इसलिय बेचारे ओड़ने के लिए कम्बल मांग रहें हैं. तो देर किस बात की हैं कोष से जितना धन चाहिए ले जाओ और इनकी मांग पूरी करो सभी ने कोष से धन निकाल कर अपना अपना हिस्सा बाँट  लिया और राजा की प्रसंसा की या यु कहें की राजा की मुर्खता पर व्यंग किया  जो धन राज्य के विकास के लिए था राजा उस धन को अपनी प्रसंसा सुनने के लिए बिना कुछ सोचे बर्बाद कर रहा था कुतो की तो आदत होती है रात को रोना खेर अगली रात फिर कुते रोये राजा फिर बोला अब ये क्या कह रहें हैं. मंत्री बोले राजन ये कह रहें की आप ने भोजन दिया कपडे दिए पर इनका परिवार है और इनके पास रहने के लिए घर नहीं हैं ये आप से घर मांग रहें हैं फिर वही  सब हुआ सबने अपना अपना हिस्सा बांटा  और प्रसंसा के दो शब्द कह कर राजा की इस आदत का मजाक उड़ाया इस तरह चलता रहा कुते रोते रहें और मंत्री दरबारी राज कोष को लुटते रहें राज कोष का dhan भी समाप्त हो गया अब मंत्रियो ने सोचा इस किस्से को समाप्त कर देना चाहिए एक दिन कुते फिर रोये राजा ने फिर वही सवाल किया _ सबने राजा की तारीफ करते हुए कहा कुछ नहीं महाराज ये सब अब बहुत खुश है संतुस्ट है और आप की प्रसंसा कर रहें है सभी आपको धन्यवाद दे रहें हैं ........................................................................अब ना वो राजा रहा ना उसका राज  रहा क्यों की पतन होने पर कुछ शेष नहीं रहता राजा को अपनी प्रसंसा सुनने का शोंक था चाहें वो झूट ही क्यों ना हो और यही दोष उसके व उसके राज्य के पतन का कारन बना  दुनिया धूर्त लोगो से भरी हुई हैं और वो अपने लाभ के लिए आपकी  प्रसंसा अवस्य करेंगे.

1 comment:

  1. Prashansaa se prernaa bhi milati hai
    prashansaa se patan bhi hotaa hai

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