गुरु पूर्णिमा पर शिष्य अपने अपने
गुरुओ की पूजा करते है
बहुत से गुरु इस पर्व पर
शिष्यों को दीक्षा प्रदान करते है
बहुत ऐसे व्यक्ति जिनके कोई गुरु नहीं है
वे सद्गुरु की खोज में लगे रहते है
परन्तु जितना मुश्किल है सद्गुरु का मिल पाना
उतना ही मुश्किल है
एक अच्छे गुरु की योग्य शिष्य की तलाश कर पाना
बहुत से गुरु शिष्यों की संख्या में विश्वास करते है
शिष्यों की गुणवत्ता में नहीं
बहुत से गुरु यह गर्व अनुभव करते है
की कोई नामी व्यक्ति उनका शिष्य है
महत्वपूर्ण यह है गुरु की आध्यात्मिक साधना कितनी है
वह कितना ज्ञानी है
इसी प्रकार से महत्व इस बात का भी है की
शिष्य की आध्यात्मिक साधना क्या है
यदि एक ऐसा व्यक्ति जिसकी कोई आध्यात्मिक साधना नहीं है
और धनी और प्रतिष्ठित हो तो
उसे जो भी गुरु मिलेगा
वह उस गुरु पर भार ही होगा
गुरु की आध्यात्मिक शक्ति का क्षरण ही करेगा
इसके विपरीत एक ऐसा शिष्य जिसके अध्यात्म का स्तर उन्नत हो
वह अपने से अल्प स्तर के व्यक्ति को गुरुता प्रदान करता है
तो ऐसे शिष्य की आध्यात्मिक शक्तिया क्षीण होगी
इसलिए एक सद्गुरु को संभावना से
परिपूर्ण शिष्य की तलाश रहती है
यह उसी प्रकार से है जिस प्रकार से एक अच्छे विद्यालय को
अच्छे छात्रों की तलाश रहती है
No comments:
Post a Comment